हर किसी को अगुआ होना चाहिए इस भावार्थ में कि वह कुछ लोगों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, सभी माता-पिता को अपने बच्चों की अगुआई स्वयं करना चाहिए। इस पाठ्यक्रम में हम जिन सिद्धांतों का अध्ययन करते हैं, वे उन स्वाभाविक अगुआई के पदों पर बैठे व्यक्ति की सहायता करेंगे। जबकि, यह पाठ्यक्रम मुख्य रूप से उन स्वाभाविक पदों से परे अगुआई के सिद्धांतों पर केंद्रित है जिन्हें हर व्यक्ति को भरना चाहिए।
एक व्यक्ति के अगुआ बनने की चाहत के पीछे कई तरह के उद्देश्य हो सकते हैं। सबसे उचित उद्देश्य सेवा करने की इच्छा होती है ।
[1]प्रशिक्षण किसी व्यक्ति को ज्ञान और योग्यताओं में दूसरों से श्रेष्ठ बना सकता है। उसे लगने लगता है कि वह मान्यता में अन्य लोगों से श्रेष्ठ है। वह दूसरों से न केवल अपनी स्थिति के कारण, बल्कि श्रेष्ठता की भावना के कारण विशेष व्यवहार की आशा करने लगता है।
प्रेरित पौलुस ने चेतावनी दी, “ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है” (1 कुरिन्थियों 8:1)। पौलुस के अर्थ यह नहीं था कि ज्ञान एक बुरी चीज़ है या यह अपने आप में हानिकारक है। संदर्भ में, वे एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात कर रहे थे जो कुछ बातें जानता था परन्तु जिस तरह से वह अपने ज्ञान का उपयोग करता था उसमें प्रेम की भावना नहीं थी।
प्रशिक्षण एक व्यक्ति को परमेश्वर के राज्य के लिए अधिक प्रभावशाली बना सकता है, परन्तु केवल तभी जब उसकी इच्छा विनम्र-भाव से सेवा करने की हो।
“प्रतिष्ठा चाहने वाला एक व्यक्ति बहुत कुछ प्राप्त नहीं कर सकता।”
- सैम वाल्टन
एक अगुआ होना
एक व्यक्ति कैसे अगुआ बनता है? याद रखें, हम केवल अधिकारिक पद की बात नहीं कर रहे हैं। अगुआ वह व्यक्ति होता है जिसका प्रभाव होता है, ऐसा व्यक्ति जिसका लोग अनुसरण करते हैं।
कुछ लोग दूसरों को प्रभावित करने की स्वाभाविक क्षमता के साथ पैदा होते हैं। वे आत्मविश्वास दिखाते हैं, वे समाधान खोजने में तेज़ होते हैं, और लोग सहज रूप से उनका अनुसरण करते हैं। क्योंकि ये विशेषताएँ विद्यमान होती हैं, इसलिए आप मान सकते हैं कि कुछ लोग अगुआ बनने के लिए पैदा होते हैं और दूसरे नहीं। जबकि, ऐसे कई तरीके हैं जिनसे लोग अगुए बनते हैं।
एक पुरानी यूक्रेनी किंवदंती के अनुसार, एक युवक एक पुरोहित के पास गया और बोला, "फादर, मैंने सपना देखा कि मैं 10,000 लोगों का नेता हूँ। क्या यह सच होगा?" पुरोहित ने कहा, "अब बस यही कमी है कि 10,000 लोग यह सपना देखें कि आप उनके नेता हैं।"
अगुआ बनाने वाले कारक
कोई व्यक्ति इनमें से किसी एक या इनके संयोजन के कारण अगुआ बन सकता है। जबकि, इनमें से कोई भी कारक किसी व्यक्ति को दीर्घकालिक प्रभावशाली अगुआ बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है, यदि वह अन्य क्षेत्रों में अत्यधिक कमज़ोर है।
(1) प्रत्यक्ष स्वाभाविक योग्यता
एक व्यक्ति जो आत्मविश्वास से भरा हुआ हो वह हर सथान पर तुरंत अगुआ बन सकता है। भले ही, यदि वह अपनी बनाई गई उम्मीदों को पूरा करने में विफल रहता है, तो वह अगुआई करना जारी नहीं रख पाएगा। यहां तक कि स्वाभाविक योग्यता वाले व्यक्ति को भी प्रभावशाली बने रहने के लिए अगुआई के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
(2) संकट के प्रति प्रत्युत्तर
कई अगुए किसी समस्या के प्रत्युत्तर में सामने आए हैं। एक बड़ा संकट एक अगुए को उजागर कर सकता है। संकट के प्रति प्रतिक्रिया बुलाहट की भावना या जिम्मेदारी की भावना से आती है जो उस व्यक्ति के विपरीत है जो सिर्फ देखता है और शिकायत करता है।
संकट एक सशक्त अगुए के लिए अवसर लाता है, परन्तु संकट बीत जाने के बाद अगुआई करने के लिए अन्य गुण भी आवश्यक होते हैं। कभी-कभी एक व्यक्ति जो संकट में अच्छी अगुआई करता है, वह अन्य परिस्थितियों में अच्छी अगुआई करने में सक्षम नहीं हो पाता है।
(3) दीर्घकालिक विश्वसनीयता
कभी-कभी कोई व्यक्ति अगुआ इसलिए होता है क्योंकि वह वर्षों से विश्वसनीय और वफ़ादार रहा है। लोग उस पर भरोसा करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वह संस्था के प्रति समर्पित है।
(4) अर्जित की हुई निपुणता
कोई व्यक्ति अगुआ इसलिए बन सकता है क्योंकि उसने किसी विशेष क्षेत्र में ज्ञान और निपुणता को प्राप्त किया है। वह केवल कुछ स्थितियों में और कुछ समस्याओं को हल करने में ही अगुआई कर सकता है।
(5) अगुआई करने के सीखे हुए सिद्धांत
कोई भी व्यक्ति इस पाठ्यक्रम में अध्ययन किए गए सिद्धांतों से अगुआई करना सीख सकता है। जबकि, प्रशिक्षण किसी व्यक्ति को उच्च स्तर पर प्रभावशाली अगुआ नहीं बना सकता जब तक कि उसके पास कोई स्वाभाविक योग्यता न हो।
(6) दिव्य बुलाहट
परमेश्वर ने प्रेरित, भविष्यद्वक्ता, सुनानेवाले, रखवाले, और उपदेशक को बुलाया है (इफिसियों 4:11)। कलीसिया में उनकी अगुआई करने का प्रभाव होता है, कभी-कभी विशेष पदों पर। कभी-कभी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं जब परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाता है जिसके पास स्वाभाविक योग्यता नहीं होती है, परन्तु परमेश्वर हमेशा एक व्यक्ति को वह योग्यताएँ देता है जो परमेश्वर के बुलावे को पूरा करने के लिए आवश्यक होती हैं।
यदि लोग देखते हैं कि एक अगुआ किसी उद्देश्य के लिए समर्पित है और परमेश्वर उसकी सहायता करता है, तो वे उस उद्देश्य के लिए उसका अनुसरण कर सकते हैं जिस पर वे विश्वास करते हैं। अपनी विश्वासयोग्यता बनाए रखने के लिए, यह आवश्यक है कि वह योग्यता, विश्वसनीयता और चरित्र का प्रदर्शन करे।
पवित्रशास्त्र में अगुआई के लिए कारक
आइये हम देखें कि पविशास्त्र में कई पुरुषों ने अपनी अगुआई कैसे आरम्भ किया।
एलीशा: परिवर्तनकाल में अगुआई
एलिय्याह के बाद एलीशा को परमेश्वर ने इस्राएल का प्रमुख भविष्यद्वक्ता बनने के लिए चुना था। एक भविष्यद्वक्ता से दूसरे भविष्यद्वक्ता तक नेतृत्व के परिवर्तन का वर्णन 1 राजाओं 19:19-21 और 2 राजाओं 2:1-15 में किया गया है।
परमेश्वर की बुलाहट एक स्पष्ट कारक था जिसने एलीशा को एक अगुआ बनाया। जबकि, अन्य महत्वपूर्ण विवरण भी हैं। एलीशा स्वयं को सेवकाई के लिए समर्पित करने के लिए एक बड़ा खेत छोड़ने को तैयार था। परमेश्वर की बुलाहट एलीशा के लिए धन से ज़्यादा महत्वपूर्ण थी। गेहजी, जो बाद में एलीशा का सहायक बना, उसने धन के प्रति अपने प्रेम के कारण सेवकाई का अपना अवसर खो दिया (2 राजाओं 5:20-27)।
एलीशा अपने प्रशिक्षण के भाग के रूप में सेवक बनने के लिए तैयार था। उसने नम्रतापूर्वक पानी ढोने और आग जलाने जैसे कामों में नबी की सेवा की (2 राजाओं 3:11)। इस इच्छा के बिना, वह सेवकाई में सफल नहीं हो पाता।
एलीशा उस बूढ़े भविष्यवक्ता जानता था, एलिय्याह ने परमेश्वर की शक्ति से अद्भुत काम किए थे। उसने तीन वर्ष तक बारिश रोक दी थी। उसने दुष्ट राजा और रानी की मृत्यु की भविष्यवाणी की थी। उसने आकाश से आग के लिए प्रार्थना की थी। एलीशा जानता था कि उसकी भावी ज़िम्मेदारी मानवीय तरीकों से प्रशिक्षण द्वारा पूरी नहीं की जा सकती। वह जानता था कि उसे परमेश्वर के आत्मा का अभिषेक अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
परमेश्वर द्वारा एलिय्याह को उठा लेने के बाद, एलीशा ने एलिय्याह का वस्त्र उठाया और उसे पानी पर मारा और कहा, “एलिय्याह का परमेश्वर यहोवा कहाँ है?” (2 राजाओं 2:14)। युवा भविष्यवक्ता यह देखने के लिए उत्सुक थे कि क्या नए अगुए की सेवा में परमेश्वर की शक्ति होगी। जब उन्होंने चमत्कार देखा, तो उन्होंने कहा, “एलिय्याह में जो आत्मा थी, वही एलीशा पर ठहर गई है” (2 राजाओं 2:15)। उन्होंने परमेश्वर की शक्ति को एलिय्याह से एलीशा में स्थानांतरित होते देखा।
अगुआई की ज़िम्मेदारियाँ आवश्यक रूप से पुराने अगुओं से युवा अगुओं को हस्तांतरित होती हैं। जबकि, परमेश्वर की शक्ति अपने आप ही हस्तांतरित नहीं होती है। विश्वास के बिना अगुओं की एक नई पीढ़ी परमेश्वर की शक्ति खो देगी और मानवीय तरीकों पर निर्भर हो जाएगी।
गिदोन: संकट के समय अगुआई
गिदोन अपने देश या अपने गोत्र में अगुआ नहीं था। हर वर्ष फसल के समय उसके देश को लूटा जाता था। गिदोन को स्थिति बदलने का कोई विचार नहीं था; जब परमेश्वर का दूत उसके पास आया तो वह भोजन छिपाने का प्रयास कर रहा था। वह बस जीवित रहने और अपनी स्थिति को संभालने का प्रयास कर रहा था। यह एक अगुए का व्यवहार नहीं है।
परमेश्वर ने गिदोन को एक “शूरवीर सूरमा” कहा क्योंकि परमेश्वर जानता था कि वह क्या कर सकता है (न्यायियों 6:12)। गिदोन को आश्चर्य हुआ कि परमेश्वर उसे चुनेगा और उसने पुष्टि करने के लिए कई चिन्ह माँगे.
गिदोन ने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया जब उसने मूर्ति पूजा के स्थान को नष्ट कर दिया और परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाया। उसके इस कार्य से उस समय धार्मिक सुधार तो नहीं हुआ, परन्तु लोगों को मूर्तियों की शक्ति पर संदेह हुआ।
गिदोन पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर था। उसने परमेश्वर के आदेश का पालन करते हुए अपनी सेना के ज़्यादातर लोगों को वापस भेज दिया। गिदोन ने आक्रमण करने की एक अनोखी योजना बनायी और परमेश्वर ने उसे बड़ी जीत दिलायी।
बड़े दुख की बात है कि गिदोन की जीत के बाद उसने लोगों को परमेश्वर की सेवा करने के लिए प्रेरित नहीं किया, बल्कि मूर्तिपूजा की ओर मुड़ गया। यदि कोई अगुआ लंबे समय तक सुसंगत नहीं रहता है, तो वह परमेश्वर के लिए अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करने में विफल रहेगा।
नहेम्याह: दर्शन के साथ अगुआई
नहेम्याह एक यहूदी व्यक्ति था जो घर से दूर बेबीलोन के राजा के लिए काम करता था। उसने यरूशलेम की स्थिति के बारे में सुना। शहर पर बहुत पहले ही कब्ज़ा कर लिया गया था। दीवारें टूट चुकी थीं, जिसका अर्थ था कि लोग आक्रमणकारियों की दया पर थे।
नहेम्याह ने कार्रवाई करने की व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी महसूस की। ज़्यादातर लोग इस खबर पर बिना किसी प्रतिक्रिया के दुःखी होते। वे स्थिति को बदलने में सक्षम होने की उम्मीद नहीं करेंगे। एक अगुआ ज़िम्मेदारी महसूस करता है क्योंकि उसे लगता है कि स्थिति को बदलना संभव है। क्योंकि वह कर सकता है, वह जानता है कि उसे ऐसा करना चाहिए।
नहेम्याह ने परमेश्वर के हस्तक्षेप के लिए प्रार्थना की। नहेम्याह जानता था कि परमेश्वर की सहायता के बिना पुनर्निर्माण संभव नहीं था। एक मसीही अगुआ दुनिया को अपने दृष्टिकोण के अनुसार बदलने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि परमेश्वर के दृष्टिकोण के अनुसार बदल रहा है। उसका भरोसा परमेश्वर पर आधारित है, मनुष्य पर नहीं।
परमेश्वर ने एक विशेष अवसर दिया। राजा ने नहेम्याह की समस्या में रुचि दिखाई। इससे हम जो सिद्धांत सीखते हैं वह यह नहीं है कि हमें सहयता के लिए शक्तिशाली लोगों की आवश्यकता है। सिद्धांत यह है कि यदि लक्ष्य परमेश्वर की योजना है, तो परमेश्वर लक्ष्य को पूरा करने के लिए विशेष अवसर देगा।
नहेम्याह यरूशलेम पहुंचा और वहां के अगुओं को अपना दर्शन समझाया। दर्शन की शुरुआत एक व्यक्ति से हुई, परन्तु शीघ्र ही अन्य लोगों ने भी इसे साझा करना शुरू कर दिया। एक अगुआ यह आशा नहीं कर सकता कि हर कोई दर्शन को तुरंत समझ जाएगा। समर्थन कुछ लोगों से ही शुरू होता है।
कुछ लोगों का साथ होना ज़रूरी है जो दर्शन को साझा करते हैं; अन्यथा, अगुआ किसी की अगुआई नहीं कर रहा है। दर्शन को एक समर्पित समूह द्वारा अपनाया जाना चाहिए। दर्शन को अपनाना उससे सहमत होने और यह आशा करने से कहीं ज़्यादा है कि यह हो सकता है। जो लोग दर्शन को साझा करते हैं, उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि यह उनका अपना दर्शन है।
दर्शन के प्रति समर्पण ने एक समुदाय का निर्माण किया। उन्हें सीखना था कि कैसे एक साथ रहना है, एक-दूसरे का समर्थन करना है और दर्शन के प्रति विश्वासयोग्य रहना है।
नहेम्याह एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण है जो अगुआ बन गया, जबकि मूल रूप से इन समस्याओं के लिए उसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं थी। उसने किसी पद से शुरुआत नहीं की, बल्कि बदलाव लाने के उत्साह के साथ शुरुआत की। वह अपने दर्शन के कारण अगुआ बन गया।
राजा शाऊल: एक पद से अगुआई
इस्राएल देश का पहला राजा शाऊल था। वह पिछले राजा के उदाहरण का अनुसरण नहीं कर सकता था। वह एक किसान था और उसे किसी भी तरह के शासक के रूप में कोई अनुभव नहीं था।
जब उसे नियुक्त किया गया, तब कोई सेना नहीं थी और कोई सरकारी कर्मचारी नहीं था। कोई अधिकारिक न्यायाधीश नहीं थे, कोई सरकारी कार्यालय नहीं थे और सरकार का संचालन करने के लिए कोई टैक्स नहीं थे। राजा नियुक्त होने के बाद, शाऊल की भूमिका इतनी अस्पष्ट थी कि वह एक किसान के रूप में खेत में काम करना जारी रखता था।
तभी एक संकट आ पड़ा (1 शमूएल 11)। इस्राएल के साथ लगते एक छोटे से राष्ट्र पर इस्राएल के शत्रुओं ने हमला कर दिया। कोई भी नए राजा को बताने के लिए खेतों में नहीं गया क्योंकि उन्हें आशा नहीं थी कि वह कुछ करेगा। शाऊल को यह खबर दिन के अंत में मिली जब वह खेत में काम करके घर आया।
शाऊल ने शक्ति और निर्णय के साथ काम किया। उसने एक चौंकाने वाले तरीके से संदेश भेजा: बैलों के खून से सने टुकड़ों के साथ, जिनसे वह हल चला रहा था (1 शमूएल 11:7)। कल्पना कीजिए कि एक भागता हुआ संदेशवाहक एक आदिवासी सरदार के घर पहुँचता है। वह एक बैल के खून से सने पैर को ज़मीन पर फेंकता है और घोषणा करता है, "राजा शाऊल का कहना है कि जो कोई भी इस आपात स्थिति में मदद करने नहीं आएगा, उसके बैलों के साथ ऐसा ही किया जाएगा।"
हज़ारों लोग एक साथ आए और उन्होंने बड़ी जीत प्राप्त की। इस जीत ने शाऊल को एक मज़बूत अगुए के तौर पर स्थापित किया।
शाऊल एक ऐसे अगुए का उदाहरण है जिसने पद से शुरुआत की। वह शुरू में अगुआ नहीं बनना चाहता था; परन्तु चूँकि उसके पास पद था, इसलिए उसे ज़िम्मेदारी का एहसास हुआ।
► संकट के समय शाऊल का प्रत्युत्तर गिदोन के प्रत्युत्तर से किस तरह भिन्न था?
सम्भावित अगुए के गुण
आप एक सम्भावित अगुए के रूप में स्वयं का मूल्यांकन कैसे कर सकते हैं? सम्भावित अगुए के गुणों की इस सूची का अध्ययन करें। यदि आप इनमें से कुछ में कमज़ोर हैं, तो आप उन्हें परमेश्वर की सहायता से विकसित कर सकते हैं। जैसे-जैसे आप इन क्षेत्रों में विकास करेंगे, आप अपनी अगुआई को मज़बूत करेंगे।
एक प्रभावशाली अगुआ...
1. अपने जानने वालों पर प्रभाव रखता है।
2. स्वै-अनुशासन रखता है।
3. अपनी पहले की ज़िम्मेदारियों को पूरा कर चुका है।
4. नई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार है।
5. लोगों से अच्छे संबंध रखता है।
6. दूसरों की सेवा करने को तैयार है।
7. पहल करता है।
8. विश्वासयोग्य रहता है।
9. तनाव को संभाल सकता है।
10. क्रोध से अभिभूत नहीं होता।
11. आशावादी भावना रखता है।
12. निराशाओं से उबर सकता है।
13. आत्मविश्वास रखता है।
14. सत्यनिष्ठा रखता है।
15. परमेश्वर के करीब हो रहा है।
16. व्यक्तिगत समस्याओं से कमज़ोर नहीं पड़ता है।
17. सीखने का मादा रखता है और सीखते रहने की इच्छा रखता है।
18. समस्याओं को हल करने में सक्षम है।
19. वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं है।
20. बदलाव करने को तैयार है।
21. विशाल दृष्टिकोण रखता है।
22. यह देख सकते हैं कि आगे क्या किया जाना चाहिए।
आरम्भ करना
क्या होगा यदि आप ऐसी संस्था में काम कर रहे हैं जहाँ आप मुख्य अगुआ नहीं हैं?
क्या होगा यदि आपकी संस्था के अगुए की सीमाएँ हैं जो उसे इस पाठ्यक्रम में आपके द्वारा सीखे जा रहे सिद्धांतों का पालन करने से रोकती हैं?
कभी-कभी एक युवा, विकासशील अगुआ निराश हो जाता है क्योंकि उसे लगता है कि वह अगुआई के उन सिद्धांतों को लागू नहीं कर सकता जो वह जानता है। उसे लगता है कि उसकी क्षमताएँ सीमित हैं क्योंकि वह अधिकार की स्थिति में नहीं है।
कभी-कभी जब एक युवा अगुआ को कुछ प्रशिक्षण मिलता है, तो वह अपनी कलीसिया या संस्था को तुरंत सुधारने की आशा करता है। अपने नए ज्ञान के कारण, वह पुराने अगुओं के व्यवहारों में कई दोष देखता है। जबकि, उसे यह दिखाकर विश्वास प्राप्त करना चाहिए कि वह उनकी चिंताओं को साझा करता है और सेवा करना चाहता है। पौलुस ने कहा कि लोगों को आपकी जवानी को तुच्छ जानने से रोकने का तरीका यह है कि आप एक अच्छा उदाहरण बनें “वचन, और चाल–चलन, और प्रेम, और विश्वास, और पवित्रता में” (1 तीमुथियुस 4:12)। यदि कोई युवा व्यक्ति बहुत ज़्यादा हठधर्मी है, यह दिखाने का प्रयास कर रहा है कि उसके विचार काम करेंगे, तो वह अगुओं को उस पर अविश्वास करने पर मजबूर कर देता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि वह उनकी चिंताओं को नहीं समझता और उनकी बात नहीं सुनता। यदि कोई युवा अगुआ वरिष्ठ अगुओं को यह दिखाने के लिए समय निकालता है कि वह उनकी चिंताओं की परवाह करता है, तो वे उस पर ज़्यादा ज़िम्मेदारी के साथ भरोसा करेंगे।
एक जो व्यक्ति अगुआ बनने की आशा करता है, उसे अगुआई के सिद्धांतों को लागू करने के लिए अधिकार के पद पर नियुक्त होने तक इंतजार नहीं करना चाहिए। वह उन सिद्धांतों को लागू कर सकता है जो जिम्मेदारियों को पूरा करने, विश्वास बनाने, अपने ज्ञान को बढ़ाने, कौशल का अभ्यास करने, विश्वसनीयता के लिए प्रतिष्ठा प्राप्त करने और अपने व्यक्तिगत लाभ के बजाय संस्था की सफलता के लिए अपना समर्पण दिखाता हैं। ये बातें उसके ऊपर के अगुओं सहित सभी पर उसका प्रभाव बढ़ाती हैं।
याद रखें, अगुआ केवल प्रभावशाली व्यक्ति होता है। ऐसी कई बातें हैं जो बिना किसी अधिकारिक पद के भी आपके प्रभाव को बढ़ाती हैं।
यह सोचने में जल्दबाजी न करें कि अगुआ बनने के लिए आपको एक नयी संस्था शुरू करनी होगी। आप जहाँ हैं, वहाँ बहुत कुछ कर सकते हैं।
आपकी पदवी चाहे जो भी हो, आप युवा अगुओं और टीम के सदस्यों को प्रोत्साहित कर सकते हैं और सलाह दे सकते हैं। यह कार्य संस्था में आपके काम के एक औपचारिक हिस्से के रूप में किया जा सकता है, या यह उन लोगों के साथ अनौपचारिक रूप से किया जा सकता है जो आपकी सहायता की सराहना करते हैं।
अपनी संस्था के अंदर या बाहर दूसरों से सलाह लेने का प्रयास करें। अधिकांश अगुए अपनी बुद्धिमत्ता साझा करने में खुश होते हैं। आपको अगुआई के विशेष पहलुओं पर सलाह दी जा सकती है; सलाहकार को हर क्षेत्र में एक आदर्श उदाहरण होने की ज़रूरत नहीं है। यदि वह कुछ क्षेत्रों में कुशल है, तो वह आपसे कम उम्र का भी हो सकता है।
निष्कर्ष
► इस पाठ के कारण आप अपने लक्ष्यों या गतिविधियों में किस प्रकार के परिवर्तन होने की आशा करते हैं?
पाठ 4 के कार्य
1. इस पाठ से जीवन बदलने वाली धारणा का सारांश देते हुए एक लेख लिखें। समझाएँ कि यह क्यों महत्वपूर्ण है। इससे क्या लाभ हो सकता है? इसे न जानने से क्या हानि हो सकती है?
2. व्याख्या करें कि आप इस पाठ के सिद्धांतों को अपने जीवन में कैसे लागू करेंगे। यह पाठ आपके लक्ष्यों को कैसे बदलता है? आप अपनी गतिविधियों को कैसे बदलने की योजना बनाते हैं?
3. इस पाठ में बताए गे “अगुआ बनाने वाले कारक” और “सम्भावित अगुए के गुण” का अध्ययन करें। अगली कक्षा सत्र की शुरुआत में याद करके कई कारकों और गुणों को लिखने के लिए तैयार रहें।
4. अगले सत्र से पहले, पढ़ें यूहन्ना 13:1-17। लिखें कि यह भाग हमें अगुआई के विषय क्या बताता है।
SGC exists to equip rising Christian leaders around the world by providing free, high-quality theological resources. We gladly grant permission for you to print and distribute our courses under these simple guidelines:
No Changes – Course content must not be altered in any way.
No Profit Sales – Printed copies may not be sold for profit.
Free Use for Ministry – Churches, schools, and other training ministries may freely print and distribute copies—even if they charge tuition.
No Unauthorized Translations – Please contact us before translating any course into another language.
All materials remain the copyrighted property of Shepherds Global Classroom. We simply ask that you honor the integrity of the content and mission.