बहुत से लोग व्यस्त रहते हैं परन्तु वे जो कर रहे हैं उसके बारे में अधिक नहीं सोचते। वे मानते हैं कि उन्हें जो करना है उसके बारे में सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है।
► क्या होता है यदि कोई व्यक्ति प्राथमिकताओं के बारे में गंभीरता से नहीं सोचता?
इन कथनों पर विचार करें:
हम जो काम कर रहे हैं, उससे भी अच्छे काम होते हैं।
हम जिस तरह से कम कर रहे हैं उसे करने के और भी अच्छे तरीके हैं।
हम जो परिणाम प्राप्त कर रहे हैं, उससे बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
► यदि ये कथन सत्य हैं, तो हम अच्छे से काम करना कैसे सीखेंगे?
हमारे कार्य उद्देश्यपूर्ण होने चाहिए। हमें यह सोचने के लिए समय निकालना चाहिए कि हमें क्या करना चाहिए और इसे करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है, ताकि हम वह सब प्राप्त कर सकें जो हमें करना चाहिए। हमारी प्राथमिकताओं और कार्यों का चिंतन इच्छानुरूप होना चाहिए। जॉन मैक्सवेल, के अनुसार, सोच का सामान्य स्तर है इस प्रकार है:
[2]अधिक फलदायक बनने के लिए, हमें सबसे पहले अपने उद्देश्यों और रणनीतियों के बारे में सोचने के लिए समय निकालना चाहिए। हमें अच्छे प्रश्न पूछने, दूसरों की सलाह स्वीकार करने और अपनी प्राथमिकताओं को अलग रखने के लिए तैयार रहना चाहिए ताकि हम सही लक्ष्य प्राप्त कर सकें।
हम सही कामों को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से करना चाहते हैं; हमें अपनी प्राथमिकताओं के बारे में सोचना आरम्भ करना चाहिए।
जब आप अपनी प्राथमिकताओं को जानते हैं, तो कई निर्णयों को लेना आसान हो जाता है। प्राथमिकताएँ आपके लक्ष्यों और आपके लक्ष्यों तक पहुँचने के तरीके को निर्धारित करती हैं। प्राथमिकताएँ आपको अवसरों को पहचानने और उनमें से चुनने में सक्षम बनाती हैं। जिस व्यक्ति की प्राथमिकताएँ स्पष्ट नहीं होतीं, वह उन अवसरों से विचलित हो जाएगा जो सही लक्ष्यों से संबंधित नहीं हैं।
[1]John Maxwell, How Successful People Think से लिया गया है (New York: Center Street, 2009), 82-83.
► ऐसी कौन सी प्राथमिकताएँ हैं जो हर मसीही को रखनी चाहिए?
एक मसीही के लिए, कुछ प्राथमिकताओं को व्यक्तिगत चुनाव का मार्गदर्शन करना चाहिए।
सबसे पहले, आपका व्यक्तिगत उद्धार और परमेश्वर के साथ संबंध ही सबसे बड़ी प्राथमिकता है। आपको कभी भी ऐसी किसी बात पर विचार नहीं करना चाहिए जिससे यह समझौता हो जाए। इसके बजाय, आपको हर बात में परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए।
हम अपने जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा के बारे में कुछ बातें जानते हैं।[1] हम जानते हैं कि परमेश्वर चाहता है कि हम अच्छे बनें और अच्छा करें। इसलिए, किसी भी निर्णय पर विचार करते समय, हमें वह कार्य चुनना चाहिए जो अच्छा होने और अच्छा करने के अनुरूप हो। हमें स्वयं को ऐसी परिस्थितियों में नहीं डालना चाहिए जहाँ हम अपने हृदय और कार्यों में पवित्र बने रहने की संभावना नहीं रखते हैं, या अच्छे काम करने की संभावना नहीं रखते हैं।
यह सिद्धांत ऐसे निर्णयों पर लागू होता है जैसे कि हम कहाँ रहते हैं, हम कहाँ काम करते हैं, हम किससे विवाह करते हैं, हम कौन सी शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, हम कौन सा व्यवसाय करते हैं, हम किस चर्च में शामिल होते हैं, हम कौन सा मनोरंजन चुनते हैं, और हमारे कौन से मित्र हैं। एक मसीही को कभी भी ऐसी नौकरी नहीं करनी चाहिए, कोई व्यवसाय नहीं चलाना चाहिए, या ऐसी संस्था या संगठन का नेतृत्व नहीं करना चाहिए जो परमेश्वर के वचन के विरुद्ध हो। परमेश्वर के वचन की सच्चाई और हमारे लिए उसकी इच्छा हर निर्णय में निर्णायक कारक होनी चाहिए।
दूसरा, सेवकाई के जीवन के लिए परमेश्वर की बुलाहट आप पर अधिकार रखती है। इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर आपके जीवन की दिशा तय करता है। वह आपको आपके लक्ष्यों से दूर करके आपके लिए अपने लक्ष्यों की ओर मोड़ सकता है। आपको याद रखना चाहिए कि आपको केवल परमेश्वर की इच्छा में ही पूर्णता मिलेगी। आपको अपने लक्ष्यों को प्राथमिकता देते हुए परमेश्वर की इच्छा को अपने जीवन का दूसरा केंद्र नहीं बनाना चाहिए।
एक व्यक्ति को पास्टर बनने की बुलाहट महसूस हुई, परन्तु उसे यकीन नहीं था कि वह अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेगा। उसे एयरपोर्ट पर एक अच्छी नौकरी की पेशकश की गई और उसने उसे स्वीकार करने का फैसला किया। उसे रविवार को काम करना था और वह चर्च नहीं जा सकता था, परन्तु उसने कहा, "एयरपोर्ट पर यह काम मेरा चर्च है।" वह जानता था कि वह पास्टर बनने के लिए परमेश्वर की बुलाहट का पालन नहीं कर रहा था, परन्तु उसे विश्वास नहीं था कि यदि वह नौकरी छोड़ देता है तो परमेश्वर उसकी मदद करेगा। उसने एयरपोर्ट पर 30 साल तक काम किया। अंत में, वह मासिक पेंशन के साथ सेवानिवृत्त हुआ और अपने बुढ़ापे में परमेश्वर के लिए कुछ करने का फैसला किया। क्या उसकी प्राथमिकताएँ सही थीं?
यीशु ने कहा, “मेरा भोजन यह है कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूँ और उसका काम पूरा करूँ” (यूहन्ना 4:34)। इसका क्या अर्थ है यदि परमेश्वर की इच्छा ही आपका भोजन है? भोजन वह है जो आपको संतुष्ट करता है और आपको ऊर्जा देता है। भोजन की भूख आपको प्रेरित करती है। हमारी सर्वोच्च प्रेरणा परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति होनी चाहिए। हमें हमारे लिए उनकी योजना का पालन करके सबसे अधिक संतुष्ट और ऊर्जावान होना चाहिए।
अगली दो प्राथमिकताओं के महत्व के क्रम पर सभी मसीही सहमत नहीं हैं।
मसीहियों के लिए तीसरी प्राथमिकता है परिवार। बाइबल हमें बताती है कि जो व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं करता, वह अविश्वासी से भी बुरा है (1 तीमुथियुस 5:8)। अपने परिवार के प्रति अगुए की जिम्मेदारी केवल आर्थिक सहायता ही नहीं है, बल्कि उनका आत्मिक पोषण और अन्य आवश्यकताएं भी हैं।
सेवा कार्य को पारिवारिक आवश्यकताओं के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। आपके लिए परमेश्वर की इच्छा आपकी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के साथ संघर्ष में नहीं है, क्योंकि पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ आपके लिए परमेश्वर की इच्छा का हिस्सा हैं। कभी-कभी जिन लोगों ने सेवकाई में महान कार्य किए हैं, वे अपने परिवार की देखभाल में अच्छे उदाहरण नहीं रहे हैं। एक व्यक्ति जो सोचता है कि उसे अपनी सेवकाई के कारण अपने परिवार को अनदेखा करना चाहिए, वह गलत है।
यहोशू एक प्रवासी राष्ट्र का अगुआ था जो विभिन्न धर्मों से प्रभावित था। जब वे उस देश में आए जिसका वादा परमेश्वर ने किया था, तो उनके लिए परमेश्वर की वाचा के प्रति जिम्मेदारी जताने का समय आ गया था। यहोशू ने उनसे कहा कि वे तय करें कि वे परमेश्वर की सेवा करेंगे या नहीं, परन्तु उसने अपनी जिम्मेदारी जताने से पहले मतदान का इंतज़ार नहीं किया। उसने कहा कि वे जो भी चुनें, वह और उसका परिवार प्रभु की सेवा करेंगे (यहोशू 24:15)। यह दृढ़ विश्वास पर आधारित मजबूत अगुआ था। यदि राष्ट्र ने किसी दूसरे देवता की उपासना करने का फैसला किया, तो यहोशू अब उनका अगुआ नहीं रहेगा; वह परमेश्वर के प्रति अपनी वफ़ादारी से समझौता करने को तैयार नहीं था। उसके साहस और दृढ़ विश्वास ने राष्ट्र को सही चुनाव करने के लिए प्रभावित किया।
चौथी प्राथमिकता स्थानीय कलीसिया है। कलीसिया मसीह की देह और संसार में परमेश्वर की परिपूर्णता है (इफिसियों 1:23)। परमेश्वर अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कलीसिया को तैयार करता है (इफिसियों 4:11-13)। कलीसिया के द्वारा परमेश्वर की सदा महिमा होगी (इफिसियों 3:21)। इसलिए, एक मसीही को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसकी प्रतिभाएँ और सेवकाई बुलाहट कलीसिया से स्वतंत्र हैं। यदि वह स्थानीय कलीसिया का समर्पित सदस्य नहीं है, तो वह अपने जीवन के लिए परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को पूरा नहीं कर रहा है।
अपनी प्राथमिकताओं को अपने जीवन में लागू करना
यह कहना आसान है कि इन चार प्राथमिकताओं का हमारे जीवन पर सबसे ज़्यादा प्रभाव होना चाहिए। जब हम जीवन की ज़िम्मेदारियों का सामना करते हैं, तो इनमें से प्रत्येक पर पर्याप्त ध्यान देना ज़्यादा मुश्किल होता है।
► अपनी प्राथमिकताओं का लगातार पालन करना कठिन क्यों है?
कभी-कभी हम परिवार, सेवकाई और व्यवसाय के विवरणों में व्यस्त हो जाते हैं, और हम अपनी प्राथमिकताओं के विषय सोचने के लिए समय नहीं निकालते। गतिविधि चिंतन का परिणाम होनी चाहिए। यदि आप रुकने और सोचने में बहुत व्यस्त हैं, तो आप शायद गलत काम कर रहे हैं। हो सकता है कि आप अपनी उन प्राथमिकताओं के अनुसार काम नहीं करते जो आप कहते हैं कि आपकी हैं।
[1]जॉन वेस्ले ने इस पैराग्राफ में यह सिद्धान्त सिखाए
Pपरेटो सिद्धांत
परेटो सिद्धांत का नाम विल्फ्रेडो पेरेटो के नाम पर रखा गया था, जो एक इतालवी अर्थशास्त्री थे जिन्होंने देखा कि 80% भूमि पर 20% आबादी का स्वामित्व था। उन्होंने देखा कि उनके बगीचे में उत्पादित 80% मटर 20% फली से आए थे। उन्होंने देखा कि ये प्रतिशत कई चीजों से मेल खाते हैं। अन्य लोगों ने इस सिद्धांत को अगुआई, समय और व्यवसाय पर लागू किया।
किसी कंपनी में 20% सेल्समैन 80% बिक्री करते हैं।
20% ग्राहक 80% खरीददारी करते हैं।
20% ग्राहक 80% शिकायतें करते हैं।
20% मेडिकल रोगी 80% मेडिकल संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं।
20% छात्र शिक्षक का 80% समय लेते हैं।
20% कलीसिया के सदस्य चर्च का 80% काम करते हैं।
20% कलीसिया के सदस्य 80% आर्थिक सहायता देते हैं।
अधिकांश लोगों के लिए, उनके 20% प्रयास उनकी 80% सफलता का कारण बनते हैं। अधिकांश लोगों को अपने प्रयासों पर बेहतर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है। उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावी गतिविधियों पर ज़्यादा समय और सबसे कम प्रभावी गतिविधियों पर कम समय बिताने की ज़रूरत है।
► यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह धारणा समझ में आ गई है, एक दृश्य चित्रण का उपयोग करें। कक्षा के अगुए को दो बड़े वर्ग बनाने चाहिए। प्रत्येक वर्ग को 20% और 80% में विभाजित करें। अब एक वर्ग से दूसरे वर्ग की ओर इशारा करके चित्रण करें। एक कंपनी में 80% लोग (पहले वर्ग के बड़े हिस्से की ओर संकेत करें) 20% (दूसरे वर्ग के छोटे हिस्से की ओर संकेत करें) काम करते हैं। 20% लोग (पहले वर्ग के छोटे हिस्से की ओर संकेत करें) 80% (दूसरे वर्ग के बड़े हिस्से की ओर संकेत करें) काम करते हैं।
जो अगुआ बहुत व्यस्त रहता है, उसे शायद कुछ काम बंद करने की ज़रूरत होती है। आप कम नुकसान के साथ क्या कम कर सकते हैं?
अधिकांश पास्टर अपना 20% समय 80% लोगों पर और 80% समय 20% लोगों पर खर्च करते हैं। प्रश्न यह है कि क्या वे सही लोगों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं? आम तौर पर, हम अपना ज़्यादातर समय उन लोगों पर खर्च करते हैं जो सबसे ज़्यादा समस्याओं से जूझ रहे हैं। हम सबसे कम समय उन लोगों को देते हैं जिनमें सबसे ज़्यादा संभावनाएँ हैं, क्योंकि वे पहले से ही अच्छा कर रहे हैं। हमें अपना समय उन लोगों पर लगाना चाहिए जो सबसे ज़्यादा प्रतिक्रिया देते हैं।
► फिर से वर्गों को देखें। आपकी 80% गतिविधियाँ 20% परिणाम प्राप्त करती हैं। आपकी 20% गतिविधियाँ 80% परिणाम प्राप्त करती हैं। अपनी ज़िम्मेदारियों और कार्यों की सूची बनाएँ। क्या आपकी कुछ गतिविधियाँ कम परिणाम देती हैं? आपको कौन सी गतिविधियाँ और करनी चाहिए?
अत्यावश्यकता और महत्व का संतुलन
कुछ लोग बहुत व्यस्त रहते हैं और उन्हें लगता है कि वे अपना सारा काम कभी नहीं कर सकते। वे हर काम को अपने हाथ में ले लेते हैं और उन्हें लगता है कि सभी काम ज़रूरी हैं। उन्हें चिंता होती है कि वे उन लोगों को निराश करेंगे जो उन पर निर्भर हैं, परन्तु वे हर काम समय पर पूरा नहीं कर पाते। वे अक्सर थके हुए और तनावग्रस्त रहते हैं। वे योजना बनाने, प्रशिक्षण और विकास के लिए समय नहीं निकाल पाते, क्योंकि उनके पास हमेशा कोई न कोई ज़रूरी काम होता है। हमें तात्कालिकता और महत्व के बीच संतुलन की ज़रूरत
किसी व्यक्ति की गतिविधियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।[1]
अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण चीजें हमारा ध्यान आसानी से खींच लेती हैं। इस श्रेणी में संदेश तैयार करना, किसी मेडिकल इमरजेंसी में मदद करना और तत्काल ज़रूरतों के लिए पैसे जुटाना शामिल है।
वे जो कार्य अत्यावश्यक हैं, परन्तु महत्वपूर्ण नहीं हैं, वे आमतौर पर उन जिम्मेदारियों से संबंधित होते हैं जिन्हें हमने लिया है और जिन्हें हमें नहीं करना चाहिए। कभी-कभी वे व्यक्तिगत परियोजनाएँ होती हैं जो सेवा से संबंधित नहीं होती हैं। वे व्यावसायिक गतिविधियाँ हो सकती हैं जो बहुत अधिक लाभ नहीं दे रही हैं या बेहतर प्राथमिकताओं से बहुत अधिक समय ले रही हैं। ये गतिविधियाँ अत्यावश्यक हो सकती हैं क्योंकि उन्हें समय पर पूरा करना होता है, फिर भी वे जो लाभ दे रही हैं उसके लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं।
वे जो गतिविधियाँ अत्यावश्यक नहीं हैं और महत्वपूर्ण नहीं हैं, वे किसी महत्वपूर्ण ज़रूरत को पूरा नहीं करती हैं। यदि वे न की जाएँ, तो कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। कभी-कभी वे ऐसे कार्यक्रमों से संबंधित होते हैं जो अब वह पूरा नहीं कर पाते जो वे पहले करते थे।
ऐसी गतिविधियाँ जो अत्यावश्यक नहीं हैं परन्तु महत्वपूर्ण हैं, अक्सर नकार दी जाती हैं। ये ऐसी चीज़ें हैं जो कि जल्दी खत्म नहीं हो सकती परन्तु इनका दीर्घकालिक महत्व होता है। उदाहरण हैं अकादमिक अध्ययन (शिक्षक या छात्र के रूप में), विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण, भवन निर्माण और लिखित सामग्री तैयार करना। चूँकि ये चीज़ें आज पूरी नहीं की जा सकतीं और इनसे हमें आज कोई लाभ नहीं होगा, इसलिए हम उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो ज़्यादा ज़रूरी हैं। एक अगुआ को उन चीज़ों में समय और संसाधन निवेश करने चाहिए जिनका भविष्य में महत्व होगा। जितना संभव हो, यह निवेश रोज़ाना होना चाहिए।
संस्था के लिए आवश्यक कार्यों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
विकास संस्था को नये अवसरों और वृद्धि की ओर आगे ले जाता है।
प्रबंधन वर्तमान कार्य को बनाए रखता है।
यदि कोई अगुआ जानबूझकर विकास पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है, तो वह अपना सारा समय और ध्यान प्रबंधन पर लगा देगा। एक बुद्धिमान कहावत है: "चीख़ने वाले पहिये को तेल मिलता है।" यह हमारी उन समस्याओं पर ध्यान देने की प्रवृत्ति को संदर्भित करता है जो हमें अभी परेशान करती हैं।
कुछ अगुए एक समस्या से दूसरी समस्या पर जाते हैं, परन्तु भविष्य में कभी निवेश नहीं करते। जो संगठन लंबे समय तक सफल होते हैं वे आमतौर पर वे होते हैं जो खोज, विकास और प्रशिक्षण में समय और संसाधन लगाते हैं। एक संगठन जो भविष्य में निवेश नहीं करता है, वह परिस्थितियों के बदलने पर अपनी प्रभावशीलता खो देगा।
► प्रत्येक छात्र को अपनी सभी गतिविधियों और जिम्मेदारियों की सूची बनानी चाहिए। फिर ऊपर दिए गए चार्ट की तरह चार वर्ग बनाएं और गतिविधियों को वर्गों में विभाजित करें। विचार करें: आप किन चीजों को नज़र अंदाज़ कर रहे हैं जो महत्वपूर्ण हैं परन्तु जरूरी नहीं हैं? क्या आप उन चीजों पर समय बर्बाद करते हैं जो महत्वपूर्ण नहीं हैं और जरूरी नहीं हैं?
[1]यह विचार यहां से लिया गया है Stephen Covey, 7 Habits of Highly Effective People: The Ultimate Revelations of Steven Covey, (New York: KMS Publishing, 2011).
सौंपा जाना
एक अगुआ यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होता है कि सब कुछ हो जाए, परन्तु उसे सब कुछ स्वयं करने की ज़रूरत नहीं है। उसे दूसरों को ज़िम्मेदारियाँ सौंपनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना अभी भी उसका काम है कि काम अच्छी तरह से किया जाए। उसे टीम के सदस्यों और संभावित टीम के सदस्यों के लिए लगातार प्रशिक्षण और विकास की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वे भविष्य में और अधिक कर सकें।
कोई कार्य इसलिए नहीं सौंपा जाता कि वह महत्वहीन है। उसे इसलिए सौंपा जाता है कि कोई और उसे कर सकता है या उसे करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है, और इसलिए कि वह ऐसा काम नहीं है जिसे अगुए को ही करना चाहिए।
कुछ काम दूसरों को नहीं सौंपे जा सकते, क्योंकि उन्हें केवल अगुआ ही कर सकता है। वह संस्था का प्रतिनिधित्व करता है और उसके लिए ऐसे तरीके से बोलता है जैसा कोई और नहीं कर सकता। उसे भविष्य के बारे में भी चिंतित होना चाहिए। उसे अवसरों, खतरों और आने वाले बदलावों को ज़्यादातर लोगों की तुलना में बेहतर तरीके से देखना चाहिए।
ऐसे विशेष भी कार्य हो सकते हैं जिनके लिए अगुए के पास विशेष योग्यताएँ होती हैं; इसलिए, वह आमतौर पर उन कार्यों को दूसरों को नहीं सौंपता। जबकि, अगुए को ऐसे कार्य अपने पास नहीं रखने चाहिए जिन्हें दूसरों को सौंपा जा सकता है। कुछ अगुए दूसरों के काम से कभी संतुष्ट नहीं होते और सारा काम स्वयं ही करना चाहते हैं ताकि काम अच्छे से हो जाए।
कुछ अगुए सब कुछ करने का प्रयास करते हैं और दूसरों को काम सौंपना पसंद नहीं करते। जब वे काम सौंपते हैं, तो वे काम को बहुत बारीकी से देखते हैं और सभी निर्णय स्वयं लेते हैं। यह अच्छी अगुआई नहीं है। एक अच्छा अगुआ ऐसे लोगों की टीम बनाता है जो अपनी ऊर्जा और विचारों का निवेश करते हैं। टीम के सदस्य लक्ष्य निर्धारित करते हैं, तरीके विकसित करते हैं और निर्णयों में भाग लेते हैं।
एक अच्छा अगुआ केवल कार्य ही नहीं सौंपता; वह अगुआई भी सौंपता है। वह दूसरों को गतिविधियों की अगुआई करने देता है। यदि वह उन्हें बताता है कि क्या करना है और कैसे करना है, तो वह उन्हें अगुआई नहीं करने दे रहा है। अगुआई की यह शैली संभावित अगुओं को आकर्षित और विकसित नहीं करती है।
जब कोई अगुआ अपनी प्राथमिकताएं तय करता है, तो उसे कुछ प्रश्नों पर विचार करना चाहिए:
1. “कौन मेरी सहायता कर सकता है?” यदि ऐसे कई काम हैं जो दूसरे कर सकते हैं परन्तु स्वयं नहीं करते, तो आप सही तरीके से अगुआई नहीं कर रहे हैं।
2. "ऐसे कौन से कार्य हैं जो मेरे बिना नहीं किए जा सकते?" अगुए को उन कामों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उदाहरण के लिए टीम विकास, दर्शन निर्माण और दीर्घकालिक योजना बनाना। ये काम अगुए को अकेले नहीं करने होते, परन्तु आम तौर पर अगुए के बिना ये काम नहीं किए जा सकते।
त्याग
कुछ लोग सोचते हैं कि अगुए के पास बहुत से विशेषाधिकार होते हैं। उन्हें लगता है कि उसका अधिकार उसे जो चाहे करने की अनुमति देता है। वास्तविकता यह है कि अगुआ अपने अधिकारों का त्याग करता है ताकि समूह सफल हो सके। जब तक समूह सफल नहीं होता, तब तक अगुआ सफल नहीं होता।
जैसे-जैसे अगुए का पद बढ़ता है, उसके अधिकार कम होते जाते हैं और उसकी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं। उदाहरण के लिए, व्यवसाय के सबसे निचले स्तर पर, एक व्यक्ति निश्चित घंटे काम करता है, निश्चित कार्य करता है, और उसे उसकी ज़िम्मेदारी से परे बातों के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है[1]।
संस्था के उच्च स्तर पर, एक अगुआ असीमित घंटे काम करता है और उसे जो भी आवश्यक हो, वह प्रदान करना चाहिए। उसे कई व्यक्तिगत विशेषाधिकारों को छोड़ना पड़ सकता है। कई बार ऐसा होता है जब वह आराम करना चाहता है, परन्तु वह संस्था की सेवा करने के लिए त्याग करता है। कई अगुओं को दिन या रात के किसी भी समय समस्याओं के लिए बुलाया जाता है।
जैसे-जैसे किसी व्यक्ति की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती हैं, वह संस्था में ज़्यादा से ज़्यादा फ़ैसले ले सकता है; परन्तु वह व्यक्तिगत विशेषाधिकारों को छोड़ देता है। इस प्रक्रिया को इस चित्र के द्वारा दर्शाया गया है। चित्र के निचले हिस्से में, एक व्यक्ति के पास कम ज़िम्मेदारियाँ होती हैं परन्तु उसके पास कई अधिकार होते हैं, क्योंकि वह तय कर सकता है कि उसे कितना काम करना है। जैसे-जैसे उसकी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती हैं, उसके निजी अधिकार कम होते जाते हैं।
एक एथलीट का उदाहरण लें। एक बहुत सफल एथलीट प्रसिद्धि और धन का आनंद ले सकता है। जबकि, वह सख्त आहार का पालन करता है, व्यायाम करता है, और हर दिन घंटों अपने कौशल का अभ्यास करता है। एक महान संगीतकार का जीवन भी ऐसा ही होता है।
जो व्यक्ति चिकित्सा या उच्च स्तर पर शिक्षण के क्षेत्र में स्वयं को तैयार करता है, उसे अध्ययन में कई वर्ष बिताने पड़ते हैं। वह दूसरों की तरह अपना समय और पैसा खर्च नहीं कर सकता। वह कई मनोरंजन और मनोरंजन कार्यक्रमों से चूक जाता है। वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं को बुनियादी आवश्यकताओं से भी वंचित कर सकता है।
व्यवसाय आरम्भ करने का प्रयास करने वाले व्यक्ति को उस उद्देश्य के लिए संसाधन समर्पित करने होते हैं। वह अपनी कमाई का सारा पैसा खर्च नहीं कर सकता। वह भविष्य के लाभ के लिए निवेश करता है। वह अपने दोस्तों की तरह चीज़ों पर पैसा खर्च नहीं करता। उसके दोस्त उसकी सावधानी के लिए उसकी आलोचना कर सकते हैं, परन्तु भविष्य में उसके पास उनसे ज़्यादा होगा।
जो व्यक्ति भविष्य का अगुआ होगा, उसे अभी से अपने भविष्य में निवेश करना चाहिए। त्याग की शुरुआत विकास के चरण से होती है। अपने भविष्य में विकास और निवेश करना चुनें। प्रशिक्षण, सेवा अभ्यास और अगुओं के साथ समय बिताने को प्राथमिकता दें।
आपकी ज़िम्मेदारियाँ महत्वपूर्ण नहीं लग सकती हैं, परन्तु वे लोगों के साथ काम करने की आपकी क्षमता को विकसित करती हैं और आपको विश्वसनीयता के लिए प्रतिष्ठा बनाने का अवसर देती हैं।
► निम्नलिखित पैराग्राफ़ पर चर्चा करें। कथनों का क्या अर्थ है? कुछ अनुप्रयोग क्या हैं?
सफलता के लिए बलिदान की पुष्टि, महत्व के लिए सुरक्षा, भविष्य की संभावनाओं के लिए आर्थिक लाभ, व्यक्तिगत विकास के लिए तत्काल खुशी, ध्यान के लिए अन्वेषण और उत्कृष्टता के लिए स्वीकार्यता का त्याग करें।[2]
अपनी प्राथमिकताओं का उद्देश्यपूर्ण ढंग से अभ्यास करें। “किसी चीज़ को आदत बनने से पहले, उसे अनुशासन के रूप में अभ्यास करना चाहिए।”[3]
प्रेरित पौलुस ने एक पहलवान के समर्पण का वर्णन किया है। पहलवान त्याग करते हैं क्योंकि वे सफल होने के लिए अत्यधिक प्रेरित होते हैं (1 कुरिन्थियों 9:25-27)। पौलुस इस बात पर जोर देते हैं कि वे सांसारिक, अस्थायी सम्मान के लिए ऐसा कर रहे हैं; हमें अनंत पुरस्कार के लिए काम करना चाहिए। हमारी प्रेरणा उनसे अलग है, परन्तु यह कम नहीं होनी चाहिए।
[2]John Maxwell, For Everything You Gain, You Give Up Something: Lesson #22 from Leadership Gold (Nashville: Thomas Nelson, 2012)
[3]Ken Blanchard and Phil Hodges, The Servant Leader: Transforming Your Heart, Head, Hands, and Habits (Nashville: Thomas Nelson, 2003), 85
निष्कर्ष
► इस पाठ के कारण आप अपने लक्ष्यों या गतिविधियों में किस प्रकार के परिवर्तन होने की आशा करते हैं?
पाँच सारांश कथन
1. प्राथमिकताएं आपके लक्ष्यों और उन तक पहुंचने के लिए आपके द्वारा चुने गए तरीके को निर्धारित करती हैं।
2. प्राथमिकताएं आपको अवसरों को पहचानने और उनमें से चयन करने में सक्षम बनाती हैं।
3. आपको केवल परमेश्वर की इच्छा में ही पूर्णता मिलेगी।
4. एक अच्छा अगुआ केवल कार्य ही नहीं सौंपता; वह अगुआई भी सौंपता है।
5. जैसे-जैसे अगुए का पद बढ़ता है, उसके अधिकार कम होते जाते हैं और जिम्मेदारियां बढ़ती जाती हैं।
पाठ 7 के कार्य
1. इस पाठ से जीवन बदलने वाली धारणा का सारांश देते हुए एक लेख लिखें। समझाएँ कि यह क्यों महत्वपूर्ण है। इससे क्या लाभ हो सकता है? इसे न जानने से क्या हानि हो सकती है?
2. व्याख्या करें कि आप इस पाठ के सिद्धांतों को अपने जीवन में कैसे लागू करेंगे। यह पाठ आपके लक्ष्यों को कैसे बदलता है? आप अपनी गतिविधियों को कैसे बदलने की योजना बनाते हैं?
3. पाठ 7 के लिए पाँच सारांश कथन याद करें। अगले कक्षा सत्र की शुरुआत में उन्हें याद से लिखने के लिए तैयार रहें।
4. अगले सत्र से पहले, पढ़ें 1 शमूएल 13-15। शाऊल की अगुवाई में आनेवाली कुछ समस्याओं की सूची बनाइए।
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