यह कोई रहस्य नहीं है कि पुरुष और स्त्रियाँ कई मायनों में भिन्न होते हैं! कई पुरुष अपनी भावनाओं को व्यक्त करते समय संघर्ष करते हैं, जबकि कई स्त्रियाँ भावनाओं की अभिव्यक्ति को वास्तविक बातचीत का हिस्सा मानती हैं। पुरुष अधिक जोखिम लेते हैं, जबकि स्त्रियाँ आमतौर पर सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहती हैं। पुरुष स्वाभाविक रूप से शारीरिक सुन्दरता के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं, जबकि अधिकतर स्त्रियाँ स्वाभाविक रूप से भावनात्मक घनिष्ठता के प्रति अधिक आकर्षित होती हैं। और भी बहुत सी भिन्नताएँ सूचीबद्ध की जा सकती हैं।
लिंग के बीच सामान्य भिन्नताओं के अलावा, पति और पत्नी के व्यक्तित्व में भी भिन्नताएँ होती हैं। हो सकता है कि किसी एक को लोगों के साथ रहना अच्छा लगता हो, परन्तु दूसरे को अकेलापन अच्छा लगता हो। छोटी-छोटी पसन्द होती हैं, जैसे घर में कितनी रोशनी होनी चाहिए या कमरे में कितना तापमान होना चाहिए। कई विवाहों में इस बात को लेकर असहमति से परेशानियाँ आती हैं कि पैसा कैसे खर्च किया जाना चाहिए। ये भिन्नताएँ आवश्यक रूप से चारित्रिक भिन्नताएँ नहीं हैं; वे केवल व्यक्तित्व और राय का भिन्नता हो सकते हैं।
क्योंकि विवाह एक पुरुष और स्त्री को जोड़ता है, कई बार लोग सोचते हैं कि भिन्नताएँ समाप्त हो जानी चाहिए। एक व्यक्ति को शायद यह लग सकता है कि उसके जीवनसाथी की भिन्नताएँ ऐसे दोष हैं, जिन्हें सुधारा जाना चाहिए। प्रत्येक जीवनसाथी निरन्तर दूसरे जीवनसाथी की राय, आदतों और पसन्द को बदलने का प्रयास कर सकते हैं।
यह सच है कि प्रत्येक व्यक्ति को एक सम्बन्ध के कारण विकसित होना और बेहतर बनाना चाहिए। हालाँकि, कभी-कभी एक व्यक्ति को बदलने का हमारा प्रयास उस व्यक्ति के व्यक्तित्व पर हमला होता है। स्वस्थ विवाह में, प्रत्येक पति-पत्नी एक-दूसरे से प्रेम करने, आदर करने, सराहना करने और सेवा करने की आदत बनाते हैं।
► पुरुषों और स्त्रियों के बीच के कौन सी अन्य भिन्नताएँ होती हैं? उनके व्यक्तित्व में ऐसे कौन सी अन्य भिन्नताएँ हैं, जिन्हें लोगों को स्वीकार करना चाहिए?
सेवा करने का चुनाव करना
गैरी थॉमस अपनी पुस्तक, पवित्र विवाह (Sacred Marriage) में कहते हैं,
एक अच्छा विवाह वह चीज़ नहीं है, जो आपको मिलती है, यह वह चीज़ है, जिसके लिए आप काम करते हैं। इसमें संघर्ष करना पड़ता है। आपको अपने स्वार्थ को क्रूस पर चढ़ाना चाहिए। आपको समय-समय विरोध करना चाहिए, और कभी-कभी अपराध को मानना चाहिए। क्षमा का अभ्यास करना आवश्यक है। यह निस्संदेह कठिन काम है, परन्तु अन्त में इसका फल मिलता है। अन्त में, यह सुंदरता, विश्वास और आपसी सहयोग के सम्बन्ध का निर्माण करता है।[1]
थॉमस ने ओटो पाइपर को उद्धृत किया:
यदि विवाह… कई लोगों के लिए एक निराशाजनक अनुभव है, तो इसका कारण उनके विश्वास में पाई जाने वाली[उदासीनता] है। लोगों को यह सच्चाई अच्छी नहीं गलती कि परमेश्वर की आशीष केवल तभी मिल सकती और उसका आनन्द केवल तब लिया जा सकता है, जब इन बातों को निरन्तर खोजा जाता है (मत्ती 7:7; लूका 11:9)। इसलिए, विवाह एक उपहार होने साथ एक ऐसा कार्य भी है, जिसे पूरा किया जाना चाहिए।[2]
विवाह अक्सर केवल इसलिए सफल नहीं हो पातीं क्योंकि पति और पत्नियाँ एक-दूसरे की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करने के बजाय अपनी-अपनी आवश्यकताओं के बारे में सोचते हैं।
हम एक-दूसरे की अत्यावश्यक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते। हमारा स्वर्गीय पिता ही हमारी लालसाओं और इच्छाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर सकता है, और यीशु इसलिए ही आया था। उसका उद्देश्य हमारा उद्धार करना, हमें अपने आत्मा – अर्थात् पवित्र आत्मा - से भरना है और हमें एक गहरे और संतोषजनक सम्बन्ध में लाना है, ताकि हम परमेश्वर को “हे अब्बा, हे पिता” कह सकें (रोमियों 8:14-15; गलातियों 4:6)।
हालाँकि, विवाह के लिए परमेश्वर का एक उद्देश्य यह है कि यह सेवकपन के लिए एक प्रशिक्षण भूमि हो; उस प्रकार का सेवकपन जिसे हम यीशु में देखते हैं (यूहन्ना 13:14)। परमेश्वर प्रत्येक पति या पत्नी में एक सेवक का ऐसा विनम्र मन विकसित करना चाहता है, जिसे दूसरे की चिन्ता है (फिलिप्पियों 2:3-8)।
कुछ सबसे सुन्दर, खुशहाल विवाहों का अस्तित्व इसलिए हैं, क्योंकि एक पति या पत्नी ने स्वयं को भूलकर बीमारी, असफलता, दुःखद घटना या दुःख की असामान्य रूप से कठिन परिस्थिति में दूसरे की सेवा करने का चुनाव किया। कुछ पति गवाही देते हैं कि उन यदि उनकी पत्नियों ने उनके लिए प्रार्थना नहीं की होती, उन्हें क्षमा नहीं किया होता, उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया होता, और जब वे सबसे अप्रिय थे, तब उनसे बिना शर्त प्रेम नहीं किया होता तो उनका जीवन निराशाजनक रूप से नष्ट हो गया होता। कुछ पत्नियाँ गवाही देती हैं कि यह उनके पति का धीरज और समझ थी, जिसने उन्हें शोषण करने वाले पिता या अन्य आघात से हुई भावनात्मक क्षति से उबरने में सक्षम बनाया। क्योंकि हम एक पतित, पापी संसार में रहते हैं, जिसमें सारी सृष्टि कराहती है (रोमियों 8:22), हर विवाहित व्यक्ति घाव और जख्मों के निशान लेकर चलता है। परन्तु परमेश्वर का अनुग्रह हमें एक-दूसरे की देखभाल करने और एक-दूसरे के घावों पर पट्टी बान्धने में सक्षम बना सकता है!
हममें से प्रत्येक जन्म से ही स्वार्थी था। हम स्वाभाविक रूप से दूसरों की आवश्यकताओं की तुलना में अपनी आवश्यकताओं के बारे में अधिक चिंतित रहते हैं। परमेश्वर का बचाने वाला और पवित्र करने वाला अनुग्रह हममें वास करने वावे पवित्र आत्मा के द्वारा उस हद तक बदल सकता है, जब तक हम ऐसे लोग न बन जाएँ, जो दूसरों की आवश्यकताओं को अपनी आवश्यकताओं से पहले रखते हैं। विवाह तब फलते-फूलते हैं, जब प्रत्येक पति-पत्नी एक-दूसरे की आवश्यकताओं और इच्छाओं का ध्यान रखते हैं।
► सेवा करने का चुनाव करने का क्या अर्थ होता है?
[1]गैरी थॉमस Gary Thomas, पवित्र विवाह (Sacred Marriage) (Grand Rapids: Zondervan, 2000),133 ।
परमेश्वर ने पुरुषों और स्त्रियों को अलग-अलग आवश्यकताओं और इच्छाओं के लिए बनाया किया है। इसका अर्थ है कि एक पुरुष को यह नहीं मानना चाहिए कि उसकी पत्नी उन्हीं बातों से खुश होगी, जो उसे खुशी देती हैं। एक पत्नी को यह नहीं मानना चाहिए कि उसका पति भी वैसा ही व्यवहार चाहता है, जैसा व्यवहार वह चाहती है। निःसन्देह, दयालुता और शिष्टाचार के कुछ तरीके दोनों के लिए एक जैसे ही होने चाहिए, फिर भी पुरुषों और स्त्रियों में से प्रत्येक की कुछ अनोखी आवश्यकताएँ होती हैं।
यदि हम पुरुषों और स्त्रियों की विशेष आवश्यकताओं को समझ पाएँ, तो हम समझ सकते हैं कि जीवनसाथी की आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जा सकता है। यह दुःखद है कि पति-पत्नी के बीच कई विवाद और चर्चाओं से समस्याओं का समाधान इसलिए नहीं हो पाता, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे की आवश्यकताओं को समझने में असफल रहता है। प्रत्येक व्यक्ति इसलिए क्रोधित और नाराज हो सकता है, क्योंकि दूसरा उसी बात को नहीं समझता है।
सभी लोगों को प्रेम और आदर की आवश्यकता होती है, परन्तु पुरुषों और स्त्रियों के बीच भिन्नता होता है। स्त्री की मुख्य आवश्यकता प्रेम है, और पुरुष की मुख्य आवश्यकता आदर है।[1]
► आपने पुरुषों और स्त्रियों की आवश्यकताओं के बीच यह भिन्नता कैसे देखी है?
[1]डॉ. इमर्सन एगेरिच (Dr. Emerson Eggerich) की पुस्तक प्रेम और आदर (Love and Respect) इस खण्ड में अत्याधिक सहायक रही है।
एक पति अपनी पत्नी को प्रेम कैसे दिखाता है
इफ़िसियों 5:25, 28 में लिखा है, “हे पतियों, अपनी-अपनी पत्नी से प्रेम रखो जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया, इसी प्रकार उचित है कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे…”
एक पति को अपनी पत्नी को अक्सर बताना चाहिए कि वह उससे प्रेम करता है और यह नहीं मान लेना चाहिए कि उसे यह पता है। उसे अपने प्रेम को शब्दों से बढ़कर दिखाना चाहिए। उसे उन तरीकों से प्रेम दिखाना चाहिए, जो उसकी पत्नी के लिए महत्वपूर्ण हों। पति को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसकी पत्नी को इसलिए प्रेम महसूस करना चाहिए, क्योंकि वह उन तरीकों से प्रेम दिखाता है, जो उसके स्वयं के लिए महत्वपूर्ण हैं। उसकी आवश्यकताएँ उससे अलग होती हैं।
(1) एक पति अपनी पत्नी को सुरक्षा प्रदान करके प्रेम करता है।[1]
एक पत्नी जानना चाहती है कि पति उसकी शारीरिक और भावनात्मक रूप से रक्षा करता है। पति को पड़ोसियों के साथ किसी भी झगड़े से निपटना चाहिए। पति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घर एक सुरक्षित स्थान हो। जब दूसरे लोग, यहाँ तक कि रिश्तेदार भी उसकी आलोचना करते हैं, तो उसे उसके बचाव में बोलना चाहिए। उसे अपनी पत्नी से अपनी बात मनवाने के लिए उस पर हमला नहीं करना चाहिए या उसे किसी भी तरह से शारीरिक चोट नहीं पहुँचानी चाहिए। उसे अपने परिवार की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने का पूरा प्रयास करना चाहिए। यदि एक पति पैसों के विषय में लापरवाह है, तो उसकी पत्नी को लगता है कि उसे अपने परिवार की आवश्यकताओं की परवाह नहीं है।
पतियों के लिए आर्थिक बातें
पैसों की समस्या विवाह में झगड़े का सबसे बड़ा कारण होती है। पतियों,
लाभ के लिए कोई बेईमानी या अनैतिक काम करने से इनकार करें; याद रखें आप परमेश्वर के अधिकार के अधीन हैं।
अपना दशमांश कलीसिया को दें, क्योंकि आप परमेश्वर पर भरोसा करते कि वह आपको आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
रोज़गार के सर्वोत्तम विकल्प की खोज करें, परन्तु अभी के लिए अप्रिय काम करने के लिए तैयार रहें।
चाहे आप नौकरीपेशा हों या नहीं, अपनी और दूसरों की सहायता करने के लिए हर दिन करने के लिए काम की खोज करें।
आज पैसे उधार लेकर कल का पैसा न व्यर्थ न गवाएँ।
जब आप मौज-मस्ती के लिए पैसा खर्च करते हैं, तो उसमें अपनी पत्नी और बच्चों को भी शामिल करें।
अपने घर के किराये जैसे नियमित खर्चों के लिए नियमित रूप से बचत करें।
आराम के लिए पैसा खर्च करने के बजाय अपनी स्थिति को अच्छा बनाने के लिए पैसा निवेश करें।
(2) एक पति अपनी पत्नी के लिए स्वयं को आरक्षित रखकर उससे प्रेम करता है।
एक पति को स्वयं को नैतिक रूप से पवित्र रखना चाहिए और अपनी पत्नी से प्रसन्न रहना चाहिए, “प्रिय हरिणी या सुन्दर सांभरनी के समान उसके स्तन सर्वदा तुझे सन्तुष्ट रखें, और उसी का प्रेम नित्य तुझे आकर्षित करता रहे (नीतिवचन 5:19)।” यदि कोई पति अन्य स्त्रियों के साथ अनुचित या अनैतिक सम्बन्ध रखता है या अपवित्र मनोरंजन की वस्तुओं का प्रयोग करता है, तो उसकी पत्नी स्वयं अप्रिय महसूस करती है।
(3) एक पति अपनी पत्नी को समझने का प्रयास करके उससे प्रेम करता है।
एक पति अपनी पत्नी को समझने में हमेशा सफल नहीं होगा, परन्तु उसे उसकी बात सुनने और उसे जानने के लिए समय निकालना चाहिए। पवित्रशास्त्र पतियों से कहता है, “वैसे ही हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो, और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के वरदान के वारिस हैं…” (1 पतरस 3:7)। यदि कोई पति अपनी पत्नी की भावनाओं और विचारों का उपहास करता है, तो उसकी पत्नी को प्रेम महसूस नहीं होता है। वह चाहती है कि वह उसकी चिन्ता को समझने का प्रयास करे, भले ही उसकी बातें उसे तर्कसंगत न लगें।
क्योंकि परमेश्वर ने पति को घर का मुखिया बनाया है (इफिसियों 5:23), इसलिए पति पर घर का अगुवाई करने की जिम्मेदारी है (1 तीमुथियुस 3:4-5)। हालाँकि, पति-पत्नी को समय निकालकर तब तक चर्चा करनी चाहिए, जब तक वे अधिकतर निर्णयों पर सहमत न हो जाएँ। पति को अपनी पत्नी की भावनाओं और विचारों पर विचार किए बिना कोई भी निर्णय लेने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। यदि वे किसी विषय पर सहमत नहीं हो सकते हैं, तो पति को निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ सकती है, परन्तु उसे इस बात का दुःख होना चाहिए कि वे सहमत होने में असफल रहे। आमतौर पर एकता की कमी पति के लिए एक चेतावनी होती है। स्त्रियों के पास अक्सर वह बुद्धि और विवेक होता है, जिसकी पुरुषों को अच्छे निर्णय लेने के लिए आवश्यकता होती है।
► एक छात्र को समूह के लिए इफिसियों 4:2-3, 15-16 पढ़ना चाहिए। ये आयतें पति-पत्नी के सम्बन्ध पर कैसे लागू होती हैं?
(4) एक पति अपनी पत्नी की सराहना करके उससे प्रेम करता है।[2]
कई पत्नियों को लगता है कि उनके पति उनके काम की सराहना नहीं करते। पति को अपनी पत्नी के प्रति आभार प्रकट करना चाहिए। उन्हें उस प्रयास को पहचानना चाहिए जो वह अपने परिवार के लिए करती है। उसे कभी भी अन्य लोगों की उपस्थिति में उसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए। [3] उसे उसके चरित्र, सुन्दरता और क्षमताओं की प्रशंसा करनी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो उसे उसके लिए अच्छे वस्त्र पहनने की व्यवस्था करनी चाहिए। एक पत्नी को तब प्रेम महसूस नहीं होता जब उसे लगता है कि उसके पति को उसके रूप-रंग की परवाह नहीं है।
जब एक पति अपनी पत्नी की आलोचना करता है, तो वह उसे यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि वह एक व्यक्ति के रूप में अधूरी है और यह बात उसे हतोत्साहित कर सकती है। पौलुस विश्वासियों से कहता है, “किसी को बदनाम न करें, झगड़ालू न हों; पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें” (तीतुस 3:2)। यदि आलोचना आवश्यक है, तो एक पति को यह स्वीकार करने मेंअत्याधिक सावधानी बरतनी चाहिए कि उसके मन में उसकी पत्नी की सराहना उसकी आलोचना से अधिक है। उन्हें उन स्त्रियों के उदाहरण देने से बचना चाहिए, जो विभिन्न गुणों में उसकी पत्नी से अच्छी हैं।
(5) एक पति सम्बन्ध के लिए समय निकालकर अपनी पत्नी से प्रेम करता है।
जीवन को एक साथ साझा करने के लिए बातचीत के समय की आवश्यकता होती है। सम्बन्ध शब्दों के द्वारा गहरे होते हैं (नीतिवचन 16:24, नीतिवचन 20:5)। जीवनसाथियों को उन बातों के बारे में बात करनी चाहिए, जो उनके दिनों में होती हैं। उन्हें अपनी मित्रता, अपनी भावनाओं, अपनी इच्छाओं और अपनी चिन्ताओं के बारे में बात करनी चाहिए। एक पत्नी को प्रेम तब महसूस होता है, जब उसका पति बात करने और सुनने के लिए समय निकालता है। जब वह काम से थका हुआ घर आता है, तो हो सकता है कि उसका मन घर की समस्याओं के बारे में बात करने या सुनने का न हो, परन्तु उसे इस आवश्यकता की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यदि एक पति शारीरिक घनिष्ठता चाहता है, परन्तु भावनात्मक घनिष्ठता के लिए उपलब्ध नहीं है, तो पत्नी को लगता है कि उसका इस्तेमाल हो रहा है और उससे प्रेम नहीं किया जा रहा है।
(6) पति अपनी पत्नी की निर्ब लताओं में धीरज रखकर उससे प्रेम करता है।
1 पतरस 3:7 सिखाता है, “वैसे ही हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो, और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो…” अधिकतर स्त्रियाँ अधिकतर पुरुषों की तरह शारीरिक रूप से उतनी मजबूत नहीं होती हैं। इसके अलावा, अधिकतर स्त्रियाँ अधिकतर पुरुषों की तुलना में भावनात्मक पीड़ा और संकट के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। एक पुरुष को अपनी पत्नी को दिलासा देना चाहिए और प्रोत्साहित करना चाहिए। उसे सीखना चाहिए कि उसका तनाव कैसे दूर किया जाए। जब वह थकी हुई, तनावग्रस्त या चिंतित हो तो उसे उससे कोई माँग करने से बचना चाहिए।
(7) एक पति अपनी पत्नी की व्यावहारिक आवश्यकताओं को पूरा करके उससे प्रेम करता है।
जिस तरह एक पुरुष अपने काम के लिए सर्वोत्तम औज़ार और अपना काम करने के लिए एक अच्छी जगह चाहता है, उसी तरह उसे अपनी पत्नी को भी एक अच्छा वातावरण प्रदान करना चाहिए। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घर की मरम्मत की जाए और उसमें वे साजों-सामान हों जिनकी उसकी पत्नी को आवश्यकता है।
जब पति अपनी पत्नियों से प्रेम करते हैं, तो उसके परिणाम
अधिकतर पतियों को पता चलता है कि जब वे अपनी पत्नियों से प्रेम दिखाते हैं, तो उनकी पत्नियाँ खुशी और सहयोग के साथ प्रत्युत्तर देती हैं। स्त्रियों को तब खुशी महसूस होती है, जब उनके पति उनके प्रति समर्पित होते हैं और ऊपर सूचीबद्ध तरीकों से उनके प्रति प्रेम दिखाते हैं। पुरुषों को अपने विवाह से सबसे अधिक लाभ तब मिलता है जब वे अपनी पत्नियों को प्रेम दिखाते हैं (इफिसियों 5:28)। हालाँकि, पुरुषों को परिणाम की गारंटी नहीं होती है। कुछ अपवाद भी हैं। मनुष्य को जो चाहिए, केवल उसे पाने के लिए प्रेम का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। उसे अपनी आवश्यकताओं के बारे में चिन्ता करने के बजाय परमेश्वर को प्रसन्न करने और अपनी पत्नी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रेम दिखाना चाहिए।
कुछ पत्नियाँ पिछले अनुभवों से भावनात्मक रूप से आहत हो जाती हैं, और हो सकता है कि वे अपने पतियों के प्रेम का प्रत्युत्तर तुरन्त न दें। प्रेम जताने की ये विधियाँ प्रयोग के तौर पर कुछ दिनों तक आजमाने की तकनीक नहीं है। एक पति को इन तरीकों से निरन्तर प्रेम दिखाते रहना चाहिए, क्योंकि उसके मन में परमेश्वर और अपनी पत्नी के लिए प्रेम है। मसीह भी इसी विश्वासयोग्यता और स्व-बलिदान की प्रतिबद्धता के साथ कलीसिया से प्रेम करता है।
[1]इस सत्य से सम्बन्धित कई वचन हैं, जिनमें इफिसियों 5:28-31, कुलुस्सियों 3:19 (भावनात्मक सुरक्षा), 1 तीमुथियुस 5:8 (भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति), नहेम्याह 4:13-14 (शारीरिक सुरक्षा) और 1 तीमुथियुस 2:14 (आत्मिक सुरक्षा) शामिल हैं।
[3]विवाह के संदर्भ में, यह इफिसियों 4:29-32 में; 5:25-29 और मत्ती 7:12 हमारे लिए दिए गए परमेश्वर के निर्देश का एक अनुप्रयोग है।
एक पत्नी अपने पति के प्रति कैसे आदर दिखाती है
इफिसियों 5:33 आज्ञा देता है, “पर तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपने पति का भय माने।”
मनुष्य को आदर की आवश्यकता होती है। अधिकतर पुरुष अन्य लोगों द्वारा पसंद किए जाने के बजाय उनका आदर किए जाने का चुनाव करेंगे। परमेश्वर ने पुरुषों को अपने परिवारों की रक्षा, सहयोग और अगुवाई करने के लिए बनाया है। एक पिता और पति की पदवी आदर पाने के लिए कुछ भी करने से पहले ही आदर का पात्र है। एक पत्नी को अपने पति के प्रति आदरपूर्वक व्यवहार करना चाहिए भले ही उसके कार्य गलत हों। उसे उसके साथ परमेश्वर के स्वरूप में बने एक व्यक्ति के रूप में व्यवहार करना चाहिए, जो तब भी महत्वपूर्ण है जब वह अपने अधिकार का पूरी तरह से प्रयोग नहीं करता है (इफिसियों 5:23)। इसका अर्थ यह नहीं है कि वह उसे नहीं बता सकती कि वह उसके कार्यों या निर्णयों से असहमत है, परन्तु उसे उसके साथ अनादर का व्यवहार नहीं करना चाहिए।
जब एक पत्नी अपने पति के अधिकार के प्रति स्वतंत्र रूप से समर्पित होकर उसका आदर करती है, तो वह यीशु के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करती है (इफिसियों 5:22, 31-33)।
कुछ पत्नियाँ सोचती हैं कि वे अपने पतियों से तब भी प्रेम करती हैं जब वे उनके साथ अनादरपूर्वक व्यवहार करती हैं—अपने मित्रों के सामने उनकी आलोचना करती हैं, गुप्त व्यवहार करती हैं और आहत करने वाले शब्दों का इस्तेमाल करती हैं। उन्हें समझना चाहिए कि कोई भी स्नेह अनादर की भरपाई नहीं कर सकता।
अधिकतर स्त्रियों में छोटे बच्चे की माँ बनने की तीव्र इच्छा होती है। उनमें बच्चे की आवश्यकताओं का ध्यान रखने की स्वाभाविक क्षमता और स्वाभाविक इच्छा होती है। कल्पना कीजिए कि एक स्त्री को तब कैसा महसूस होगा यदि कोई उससे कहे कि, “तुम एक बच्चे की देखभाल करने में सक्षम नहीं हो।” इसी तरह, पुरुषों में रक्षा करने, आवश्यकताएँ पूरी करने और अगुवाई करने के प्रति प्रबल झुकाव होता है। जब एक पुरुष की पत्नी उससे कहती है कि वह उन बातों को करने में असमर्थ है, तो उसे लगता है कि एक पुरुष के रूप में वह असफल है।
एक पत्नी को यह समझना चाहिए कि ऐसे अन्य पुरुष भी होंगे, जिनका व्यक्तित्व उसके पति अधिक मजबूत होगा, वे अधिक पैसा कमाएँगे, या उसके पति से ऊँचे पद पर आसीन होंगे। उसे दूसरों से तुलना करके अपने पति को असफल होने का एहसास नहीं कराना चाहिए। जैसा कि हम इफिसियों 5:21-33 से जानते हैं, एक पत्नी अपने पति के साथ एक तन बन जाती। जब कोई पत्नी उसकी आलोचना करती है या दूसरों से उसकी तुलना करती है, तो वह उन दोनों और उनके सम्बन्ध को नुकसान पहुँचाती है।
► एक छात्र को समूह के लिए नीतिवचन 31:11-12, 26 पढ़ना चाहिए। ये आयतें हमें इस विषय में क्या सिखाती हैं कि एक धर्मी पत्नी अपने व्यवहार और शब्दों में अपने पति के साथ कैसा व्यवहार करती है?
(1) एक पत्नी पुष्टि भरे शब्दों से अपने पति का आदर करती है।
एक पत्नी को अपने पति की क्षमता का समर्थन करना चाहिए। एक पत्नी अपने पति से जो सकारात्मक शब्द कहेगी, उनमें आदर स्पष्ट होगा। अधिकतर पुरुषों पर शब्दों का गहरा प्रभाव पड़ता है। वे या तो बनाएँगे या ढा देंगे (नीतिवचन 14:1)। वे या तो प्रोत्साहित करेंगे या निर्बल करेंगे। वे या तो उसके आत्मविश्वास को मजबूत करेंगे या उसकी आत्मा को ही तोड़ देंगे (नीतिवचन 18:21)। एक पुरुष हर उद्यम में सफल नहीं हो सकता है या कुछ पदों पर रहने में सक्षम नहीं हो सकता है, परन्तु उसकी पत्नी को उसके परिवार के लिए घर और सुरक्षा प्रदान करने के उसके प्रयासों का समर्थन करना चाहिए। उसे विचार रखने और नई चुनौतियों का प्रयास करने के विषय हतोत्साहित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
► छात्रों को समूह के लिए नीतिवचन 15:4 और नीतिवचन 16:24 पढ़ना चाहिए।
(2) एक पत्नी समर्पण के के द्वारा अपने पति का आदर करती है (1 पतरस 3:5)।
एक पत्नी की अधीनता का अर्थ यह नहीं है कि वह अपने पति से तुच्छ है। इसके बजाय इसका अर्थ यह है कि उनकी भूमिकाएँ अलग-अलग हैं। त्रिएकत्व में भी हम देखते हैं कि पुत्र पिता के प्रति समर्पण करता है, हालाँकि पुत्र स्वभाव या सामर्थ्य या किसी गुण में पिता से छोटा नहीं है।
यह सिद्धान्त कुछ पत्नियों के लिए आसान नहीं होता है, विशेषकर यदि उनका पति परमेश्वर के वचन के अनुसार नहीं चलता है, या यदि वह उनके प्रति दयालु नहीं है। कुछ पत्नियों को लगता है कि वे अपने लिए या अपने परिवार के लिए अपने पति से अच्छा निर्णय ले सकती हैं। कभी-कभी पत्नी सही होती है और पति गलत। हालाँकि, यदि कोई पत्नी अपने पति के प्रति तभी समर्पण करती है, जब वह उससे सहमत होती है, तो वह अधिकार को ले रही है और वास्तव में अधीनता में नहीं है। अधीन रहने का अर्थ दूसरे को निर्णय लेने की अनुमति देना होता है।
पतरस ने पत्नियों से कहा है,
हे पत्नियो, तुम भी अपने पति के अधीन रहो, इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों तुम्हारा श्रृंगार दिखावटी न हो, अर्थात् बाल गूँथना, और सोने के गहने, या भाँति भाँति के कपड़े पहिनना, वरन् तुम्हारा छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्जित रहे, क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है। (1 पतरस 3:1, 3-4)।
बहुत सी कठिन परिस्थितियाँ आती हैं। कई पत्नियाँ प्रश्न पूछती हैं। “यदि वह मुझसे _______ करने के लिए कहेगा तो क्या मुझे यह करना होगा?” यह पाठ विभिन्न प्रकार की स्थितियों के बारे में नहीं बता सकता है। हालाँकि, अधीनता की समस्या अक्सर इसलिए नहीं होती, क्योंकि एक पति ऐसे काम करवाना चाहता है, जिन्हें एक पत्नी को नहीं करनी चाहिए। एक पत्नी शायद इसलिए अधीन नहीं रहना चाहती, क्योंकि उसे यह है कि यदि उसने ऐसा किया तो उसका पति बुद्धि से काम नहीं करेगा। हो सकता है कि पति प्रेम करने वाला और दयालु न हो। हो सकता है कि एक पत्नी निर्णय लेने की स्वतंत्रता को छोड़ना न चाहती हो। पत्नी का व्यवहार अनाज्ञाकारिता से भरा हो सकता है। पत्नी अपने पति के दया रहित कामों या गलतियों के उदाहरणों का इस्तेमाल सामान्य रूप से उसके अधिकार को अस्वीकार करने के बहाने के रूप में करती है। यह परमेश्वर के वचन की आज्ञाओं का उल्लंघन है।
बाइबल हमें बताती है कि एक धर्मी, आज्ञाकारी पत्नी अपने पति को प्रभु के लिए जीत सकती है। हमें इस बात की गारंटी नहीं दी गई है कि एक पति एक अच्छी पत्नी के कारण विश्वासी बन ही जाएगा, परन्तु यदि उसकी मसीही पत्नी उद्दंड है, तो उसके विश्वासी बनने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। एक पत्नी आदरपूर्ण व्यवहार करके अपने पति से अत्याधिक कृपा प्राप्त कर सकती ह, परन्तु उसके ऐसा करने का मुख्य कारण नहीं होना चाहिए। उसे अपने पति का आदर करना चाहिए, क्योंकि वह उसके आदर के योग्य और क्योंकि वह परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहती है।
नीतिवचन 12:4 कहता है, “भली स्त्री अपने पति का मुकुट है, परन्तु जो लज्जा के काम करती वह मानो उसकी हड्डियों के सड़ने का कारण होती है।” यदि कोई पत्नी अपने मित्रों के सामने अपने पति के साथ अनादर भरा व्यवहार करती है, तो यह उसके पति के आदर को उससे छीन लेगा, जिसे वह कभी भी बहाल नहीं कर पाएगी। पुरुष उन अन्य पुरुषों की प्रशंसा करते हैं, जिनकी पत्नियाँ समर्पित होती हैं। पुरुष उन अन्य पुरुषों पर तरस खाते हैं, जिनकी पत्नियाँ अनादर करने वाली होती हैं।
(3) पत्नी अपने पति की आवश्यकताओं पर ध्यान देकर उसका आदर करती है (नीतिवचन 31:15, 21, 25, 27)।
जब एक पत्नी अपने पति को खुश करने के लिए भोजन तैयार करने और घर की देखभाल करने की विशेष बातें सीखती है, तो वह सम्मानित महसूस करता है। यदि वह उसके लिए अपनी आदतें बदलने से इनकार करती है, तो उसे लगता है कि उसकी पत्नी के लिए उसका कोई महत्व नहीं है।
यदि कोई पत्नी काम या मित्रों या कलीसिया या मनोरंजन में व्यस्त है और अपने पति की बातें सुनने या उसकी आवश्यकताओं पर ध्यान देने के लिए समय नहीं निकालती है, तो उसे लगता है कि उसकी पत्नी के लिए उसका कोई महत्व नहीं है।
उत्पत्ति 2:18 सिखाता है, फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उससे मेल खाए।”
(4) पत्नी शारीरिक स्नेह देकर अपने पति का आदर करती है।
अधिकतर पुरुषों को यौन संतुष्टि कुछ स्त्रियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होती है। एक स्त्री तब तक यौन गतिविधियों में रुचि नहीं ले सकती, जब तक कि उसकी भावनाएँ और मनोदशा इसके प्रति इच्छुक न हो, जो कि एक पुरुष की इच्छा से अक्सर कम ही होता है। इसका अर्थ यह है कि एक पति अक्सर असंतुष्ट हो सकता है, जबकि उसकी पत्नी को उसकी आवश्यकता की समझ नहीं है। वह अपने द्वारा अनुभव किए गए या देखे गए पिछले शोषण के कारण पुरुष की यौन इच्छा से भी घृणा कर सकती है। एक पति को अपनी पत्नी के प्रति धीरजवन्त और समझदार बनने का प्रयास करना चाहिए। परन्तु एक पत्नी को यह एहसास होना चाहिए कि अपने पति की यौन आवश्यकताओं को पूरा करना उसके लिए तब भी अच्छा होता है, जब उसे स्वयं इसकी आवश्यकता महसूस न हो रही हो। यदि एक पुरुष अपनी पत्नी के प्रति विश्वासयोग्य और समर्पित है, और अन्य स्त्रियों के साथ गलत सम्बन्ध नहीं रखता है, तो जब उसकी पत्नी उसकी आवश्यकताओं की परवाह नहीं करती है, तो उसे नाराजगी महसूस हो सकती है। एक पति की अपनी वैवाहिक प्रतिबद्धता के प्रति विश्वासयोग्यता कभी भी उसकी शारीरिक संतुष्टि पर निर्भर नहीं होनी चाहिए, परन्तु उसकी पत्नी का उसकी यौन आवश्यकताओं पर ध्यान देना परीक्षा से उसके संघर्ष को कम कर सकता है।
श्रेष्ठगीत बताता है है, “मेरा प्रेमी मेरा है और मैं उसकी हूँ, हे मेरे प्रेमी, आ, हम खेतों में निकल जाएँ…वहाँ मैं तुझ को अपना प्रेम दिखाऊँगी। (श्रेष्ठगीत 2:16; श्रेष्ठगीत 7:11-12, जोर दिया गया है; 1 कुरिन्थियों 7:3-5 भी देखें)।
परमेश्वर के निर्देशों के उल्लंघन के परिणाम
इन अनुच्छेदों में दी गई बातें विवाह में होने वाले हर संघर्ष पर लागू नहीं होती हैं, परन्तु वे सामान्य हैं। ये बातें स्वाभाविक व्यवहारिक कारण-और-प्रभाव के चक्रों को दर्शाती हैं, जो तब घटित होते हैं, जब पति-पत्नी इसके बजाय कि (1) यह पहचाननें कि वे क्या महसूस कर रहे हैं, और (2) परमेश्वर की सच्चाई और यह याद रखें कि वह उनके लिए क्या चाहता है, और (3) बाइबल के तरीकों से प्रत्युत्तर देने में उनकी सहायता करने के लिए आत्मा पर निर्भर रहें , वे अपनी भावनाओं पर गैर- आत्मिक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं।
यदि कोई पत्नी आत्मा के अनुसार नहीं चल रही है और परमेश्वर के प्रेम को अपने भीतर कार्य नहीं करने दे रही है, तो वह स्वाभाविक तरीके से प्रतिक्रिया कर सकती है जो कि उसके विवाह को हानि पहुँच सकती है। यदि पत्नी को प्रेम महसूस नहीं होता, तो वह सुरक्षित महसूस नहीं करती। वह जिद्दी बनने लगती है और अपने पति के अधिकार का विरोध करना शुरू कर देती है, क्योंकि उसे इस बात का भरोसा नहीं होता कि वह उसका ध्यान रखेगा। जब वह ऐसा करती है, तो उसके पति को अपमानित महसूस होता है। यदि वह अधिकार जताने और आदर की माँग करने का प्रयास करता है, तो उसकी पत्नी और भी अधिक यह महसूस होता है कि वह उससे प्रेम नहीं करता है।
यदि कोई पति आत्मा के अनुसार नहीं चल रहा है और परमेश्वर के प्रेम को अपने भीतर कार्य नहीं करने दे रहा है, तो वह उस मनोभाव को अपनाने में असफल हो सकता है, जिससे उसके विवाह को मजबूत बन सकता है। जब पति अपमानित महसूस करता है, तो उसे दुःख होता है और क्रोध आता है। वह अपनी पत्नी को ठेस पहुँचाने वाली बातें कह सकता है। यदि वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है, तो वह चुप हो सकता है। वह अपनी पत्नी के निकट नहीं रहना चाहता या उसके सामने अपना खुलकर अपने मन की बातें नहीं बताना चाहता, क्योंकि उसे लगता है कि वह उसकी साथी नहीं है। जब वह ऐसा करता है, तो उसकी पत्नी को समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है। शायद उसने उसके साथ अपमानजनक व्यवहार इसलिए किया था, क्योंकि वह उसे यह एहसास दिलाने का प्रयास कर रही थी कि वह खुश नहीं है और उसे बदल जाना चाहिए। जब वह क्रोधित हो जाता है या उस पर ध्यान नहीं देता है, तो वह सोचती है कि वह इस बात को स्वीकार कर रहा है कि उसे उसकी भावनाओं की परवाह नहीं है। वह और भी अधिक अनादर करने वाली बन सकती है।
वैवाहिक सम्बन्ध बिगड़ जाने पर व्यक्ति परीक्षा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। पत्नी को अपने पति की अगुवाई के प्रति अधिक प्रतिरोधी होने की परीक्षा का सामना करना पड़ता है। वह दूसरों से उसके बारे में अपमानजनक बात करने के लिए लुभाती है। वह किसी ऐसे अन्य पुरुष का ध्यान का आनन्द लेने के लुभा सकती जो उसकी सराहना करता हुआ प्रतीत होता है। पति को अपनी पत्नी से दूर रहने के लिए लुभाता है, क्योंकि उसका व्यवहार उसे ठेस पहुँचाता है। उसका अपनी पत्नी के प्रति प्रेमपूर्ण कार्य करने का मन नहीं होता। वह किसी ऐसी अन्य स्त्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रलोभित हो सकता है, जो उसकी प्रशंसा करती है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने चुनावों के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह है। जीवनसाथी के किसी काम के कारण परमेश्वर एक व्यक्ति के पाप को क्षमा नहीं करेगा। परमेश्वर ने हमसे वह जीवन जीने की सामर्थ्य देनी प्रतिज्ञा की है, जिसे हमें जीना चाहिए। इस जानकारी का उद्देश्य एक व्यक्ति को अपने जीवनसाथी से आवश्यक चीज़ों की माँग करने के लिए प्रेरित करना या अपने पाप के लिए अपने जीवनसाथी को दोषी ठहराने के लिए प्रेरित करना नहीं है। इसका उद्देश्य यह है कि एक व्यक्ति परमेश्वर को प्रसन्न करे और उसके जीवनसाथी को जो चाहिए उसे देने की जिम्मेदारी का एहसास कर सके।
गलत लक्ष्य
कई बार व्यक्ति अपने जीवन को आसान बनाने का उपाय ढूँढ़ता है। एक पति अपनी पत्नी को बदल कर अपना जीवन आसान बनाना चाहता है। इसी तरह, एक पत्नी सोच सकती है कि यदि उसका पति बदल जाएगा, तो उसका जीवन अच्छा हो जाएगा। एक व्यक्ति परामर्शदाता या पास्टर या मित्रों से पूछता है कि दूसरे व्यक्ति को कैसे बदला जाए। जीवनसाथी बदलना सही लक्ष्य नहीं है। एक ऐसा व्यक्ति जो सम्बन्ध की तकनीकों का इस्तेमाल करके अपने जीवन को आसान बनाने का प्रयास करता है, वह परमेश्वर या दूसरे व्यक्ति के प्रति प्रेम से प्रेरित नहीं होता है।
कई बार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के दोषों को सुधारने के लिए वर्षों तक प्रयास करता रहता है। पर वह उन्हीं गलतियों की आलोचना करना कभी बन्द नहीं करते। भले ही प्रत्येक व्यक्ति में वास्तविक दोष क्यों न हों, प्रत्येक पति या पत्नी को अन्त में दोषों वाले जीवनसाथी को स्वीकार करना ही होगा। दोष शायद व्यक्तित्व के दोष, चारित्रिक दोष, या आत्मिक दोष (यहाँ तक कि पाप) भी हो सकते हैं। सम्बन्ध को दूसरे व्यक्ति के बदलने की इच्छा पर निर्भर नहीं होना चाहिए। वह बदलने में असमर्थ महसूस कर सकता है। उसके न बदलने का कारण चाहे जो भी, प्रत्येक जीवनसाथी को प्रेम और आदर दिखाना चाहिए, व्यक्ति को उसके दोषों के बावजूद भी महत्व देना चाहिए।
उपसंहार
परमेश्वर ने पुरुषों और स्त्रियों के स्वभाव को बनाया, और उसने मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विवाह को बनाया। हालाँकि, हम एक ऐसे संसार में रहते हैं, जहाँ विवाह और परिवार को पाप से अत्यधिक नुकसान होता है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने स्वयं के पापों और दूसरों के ऐसे पापों से, जिन्होंने हमें प्रभावित किया है, व्यक्तिगत् रूप से क्षतिग्रस्त है। हम परमेश्वर के अभिप्राय के अनुसार के विवाह का अनुभव उस अनुग्रह के बिना नहीं कर सकते हैं, जो हमें बदलता है और दूसरों पर अनुग्रह करने में हमारी सहायता करता है। हमें परमेश्वर के आत्मा की पवित्रता की आवश्यकता है, ताकि हमारे उद्देश्य पवित्र हों, प्रेम दृढ़ हो और हममें सेवा करने वाली नम्रता हो।
सामूहिक चर्चा के लिए
► इस पाठ में ऐसी कौन से सिद्धान्त ऐसे हैं, जो आपके लिए नए हैं? आप अपने दृष्टिकोण और व्यवहार को बदलने की योजना कैसे बनाएँगे?
► विवाहों को मजबूत करने के लिए कलीसिया क्या कर सकती है?
प्रार्थना
हे स्वर्गीय पिता,
इतनी सारी विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विवाह सम्बन्ध को बनाने के लिए धन्यवाद। हमें विवाह के लिए निर्देश देने के लिए धन्यवाद।
हमारी सहायता कर कि हम उस तरह प्रेम कर सकें और हमें उस देखभाल के लिए समझ प्रदान कर जैसी हमें करनी चाहिए। ऐसे परिवार बनाने में हमारी सहायता करे जो संसार में तेरे प्रेम का प्रदर्शन करते हैं।
तेरे अनुग्रह के लिए धन्यवाद जो वैसे प्रेम करने में हमारी सहायता करता है जैसा तू करता है।
आमीन
पाठ सम्बन्धी नियत कार्य
(1) 1 कुरिन्थियों 13:4-8 को याद करें। अगली कक्षा की शुरुआत में, अपनी स्मृति से उस परिच्छेद को लिखें या सुनाएँ।
(2) पति या पत्नी की आवश्यकताओं का वर्णन करते हुए दो पृष्ठ का एक लेख लिखें। जीवनसाथी के ऐसे व्यवहार के उदाहरण दें, जो उन आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करते हैं। आप जिन आवश्यकताओं पर चर्चा करते हैं, उनमें से प्रत्येक का सहयोग करने के लिए पवित्रशास्त्र के का इस्तेमाल करें।
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