इस पाठ्यक्रम में हम अधिकतर उस परिवार के बारे में जानेंगे जो एक ही घर में एक साथ रहता है। लोगों के विभिन्न संयोजनों से ऐसे समूह बनते हैं, जो एक घर में साथ रहते हैं और परिवार कहलाते हैं। एक माता या पिता वाले परिवार, तलाक के कारण विभाजित परिवार, दूसरे विवाह के कारण बनने वाले संयुक्त परिवार, ऐसे परिवार जिन्होंने बच्चों को गोद लिया है, कई पीढ़ियों वाले परिवार, और ऐसे परिवार जो अस्थायी रूप से अतिरिक्त बच्चों या वयस्कों की मेजबानी कर रहे हैं।
हममें से प्रत्येक की इस विषय में अपनी-अपन मानसिक सोच कि परिवार का क्या अर्थ होता है। परिवार के बारे में चर्चाएँ हमारे व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर हमारे भीतर विभिन्न भावनाएँ उत्पन्न करती हैं।
बचपन हमें कैसे प्रभावित करता है
हो सकता है कि आपके पास अपने बचपन की अद्भुत यादें हों, या हो सकता है कि आप बचपन के अनुभवों के कारण क्रोध से जूझ रहे हों। हो सकता है कि आपके परिवार के सदस्य अक्सर एक-दूसरे की सहायता करते हों और उन्हें प्रोत्साहित करते हों, या हो सकता है कि वे एक-दूसरे को अनदेखा करते हो और जब वे साथ होते हैं, तो उनमें केवल लड़ाई ही होती है। आप महसूस कर सकते हैं कि आपका परिवार आपके जीवन के लिए एक बड़ा आधार और सहायक साधन रहा है, या हो सकता है कि आपका घर किसी कैद, पीड़ादायी माहौल जैसा महसूस होता हो, जिससे आप बचने की लालसा रखते थे। हो सकता है जब आप ऐसे परिवारों को देखते हैं, जो आपसे बेहतर लगते हैं, तो आपको लगता है कि आपके परिवार आपकी आशाओं पर खरा नहीं उतरा।
हमारे परिवारों के बारे में हमारी समझ महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह जीवन के बारे में हमारी समझ और परमेश्वर कौन है की हमारी समझ को प्रभावित करती है। बाइबल परमेश्वर को अपने लोगों का पिता होने के बारे में बताती है। हमारे माता-पिता—विशेषकर हमारे पिता—के साथ हमारे सम्बन्ध हमारे स्वर्गीय पिता के बारे में हमारी सोच को आकार देते हैं। यदि हमारा मानव पिता अनुपस्थित, शोषण करने वाला, उपेक्षा करने वाला, माँग करने वाला, हेरफेर करने वाला, निष्क्रिय या किसी भी तरह से हानिकारक होता है, तो पिता के रूप में परमेश्वर की हमारी सोच को हानि होगा। जब तक हम परमेश्वर से उसके वचनों के द्वारा, यीशु के जीवन के द्वारा और उसके साथ अपनी व्यक्तिगत यात्रा के द्वारा परिचित नहीं हो जाते, तब तक हमारे लिए उसे एक भले पिता के रूप में देखना कठिन हो सकता है। वह वास्तव में एक भला पिता है, जो सक्रिय रूप से अपने बच्चों की रक्षा करता है और उनका पालन-पोषण करता है। वह अपने बच्चों को सुनता है और उनसे बात करता है, उनका मार्गदर्शन करता है और उनकी भलाई से प्रसन्न होता है। हम जैसे-जैसे परमेश्वर को जानेंगे वह हमें उसके विश्वास में हमारी समझ को फिर से अकार देने में हमारी सहायता कर सकता है।[1]
आत्मिक मतभेद हमें कैसे प्रभावित करते हैं
हममें से कुछ को हमारे परिवारों ने इसलिए त्याग दिया है, क्योंकि हम मसीह का अनुसरण करते हैं। यीशु ने कहा कि हमें उसके प्रति अपनी भक्ति के कारण अविश्वासी परिवार के सदस्यों के द्वारा सताए जाने की आशा रखनी चाहिए। कई स्थानों पर विश्वासियों को उनके अपने परिवार के सदस्यों द्वारा पकड़वा दिया जाता है, लज्जित किया जाता है, उनकी उपेक्षा की जाती है, उनसे दुर्व्यवहार किया जाता है, या उनके अपने ही परिवार के ऐसे सदस्यों को मार डाला जाता है, जिन्होंने मसीह को त्याग दिया है।
► एक छात्र को मत्ती 10:21-22, 28, 32-39 पढ़ना चाहिए।। इन आयतों को पढ़ने के बाद निम्नलिखित प्रश्नों पर चर्चा करें:
इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वासियों को क्या अपेक्षा करनी चाहिए?
यहाँ कौन सी प्रतिज्ञाएँ दी गई हैं?
विश्वासियों को सताव के बारे में कैसे सोचना चाहिए?
हममें से अन्य लोग शायद परिवार से सताव का अनुभव न करें परन्तु फिर भी अपने विश्वास के कारण अपने सम्बन्धों में परेशानियों का अनुभव कर सकते हैं। हो सकता है कि हमारे पारिवारिक सम्बन्ध तनावपूर्ण, दूर या सीमित हों क्योंकि विश्वासियों के रूप में हमारा जीवन हमारे परिवार के सदस्यों के जीवन से बहुत अलग है। हमें गलत समझा जा सकता है या हमारा अनादर किया जा सकता है। रिश्तेदार हमारी सेवा में बाधा डालने का प्रयास कर सकते हैं। यहाँ तक कि यीशु ने भी इन परेशानियों का अनुभव किया था (मरकुस 3:21, यूहन्ना 7:3, 5), इसलिए यदि हम भी ऐसा करते हैं, तो हमें इससे आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
[1]यह जानने के लिए कि परमेश्वर कौन है, आप परमेश्वर के विषय में अपनी समझ को कैसे नया कर सकते हैं, Shepherds Global Classroom के पाठ 4 आत्मिक निर्माण पर गौर करें।
आप और आपका परिवार
कुछ ही मिनटों में, आप अपने सहपाठियों को अपना परिचय देंगे, परन्तु आप सिर्फ अपना नाम नहीं बताएँगे, बल्कि आप अपने परिवार के संदर्भ में आप कौन हैं, इसके बारे में भी बताएँगे।
सबसे पहले, उन सभी विभिन्न पदवियों के बारे में सोचें जो आपके परिवार में हैं, जैसे बेटा या बेटी, पति या पत्नी, पिता या माता, चाचा या चाची, दादा या दादी। क्या आप अतिरिक्त पदवियों के बारे में सोच सकते हैं? आपके पास सम्भवतः कई पदवियाँ हो सकती हैं।
आपके परिवार में आपकी अन्य भूमिकाएँ या स्थान क्या-क्या हैं? क्या आप सबसे बड़े हैं या सबसे छोटे? क्या आप धन प्रदान करने वाले हैं? या ऐसे व्यक्ति हैं, जो घर की देखभाल करता है? किसी वृद्ध या विकलांग व्यक्ति की देखभाल करने वाले? अपने परिवार में अपनी अन्य भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में सोचें।
► अपने परिवार में अपने कई पदों और भूमिकाओं को सूचीबद्ध करते हुए, अपने सहपाठियों को अपना परिचय दें।
► अब, इस बारे में सोचने के लिए एक क्षण रुकें कि आपके पद और भूमिकाएँ इन बातों को कैसे प्रभावित करती हैं (1) अपने बारे में आपका दृष्टिकोण और (2) आप अपने परिवार में दूसरों को कैसे देखते हैं।
भले ही आप अपने निकटतम या विस्तारित परिवार के सदस्यों के बारे में कैसा भी क्यों न महसूस करते हों, तथापि वे आपके हैं। शायद आपका परिवार टूट गया है, उस पर ठेस और पीड़ा के निशान हैं। या हो सकता है कि लोग आपके परिवार से ईर्ष्या करते हों, क्योंकि आप परिपूर्ण परिवार लगते हैं: आपके पास एक अच्छा विवाह, बुद्धिमान और स्वस्थ बच्चे हैं, और प्रेम, शांति, और हंसी से भरा-पूरा घर है।
चाहे आपका परिवार कमज़ोर प्रतीत होता हो या मज़बूत, परमेश्वर आपके परिवार में दिलचस्पी रखता है और उसमें शामिल है। उसके पास आपके परिवार के लिए एक योजना है।
► अपने परिवार के सदस्यों (परिवार के सदस्यों की कम से कम 3-4 पीढ़ियों) के नाम लिखें। उदाहरण के लिए, आपके दादा-दादी के नाम (पहली पीढ़ी), आपके माता-पिता के नाम (दूसरी पीढ़ी), आपका और आपके भाई-बहनों का नाम (तीसरी पीढ़ी), आपके बच्चों या भतीजियों और भतीजों के नाम (चौथी पीढ़ी)।
उन लोगों के नाम के आगे एक सितारा बनाएँ जिनके साथ आपके घनिष्ठ और अच्छे सम्बन्ध हैं। उन लोगों के नाम के पास एक त्रिकोण बनाएँ जिनके साथ आपका सम्बन्ध सीमित है, और उन लोगों के नाम के चारों ओर एक वर्ग बनाएँ जिनसे आप किसी कारण से अलग हो गए हैं।
क्या ऐसे लोग हैं, जिन्हें आप अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं, यद्यपि वास्तव में उनका आपसे कोई सम्बन्ध नहीं है: तथापि वे लोग जो सभी पारिवारिक सभाओं और समारोहों में ऐसे शामिल होते हैं, जैसे कि वे परिवार ही हों? उनके नाम लिखें और उन पर गोला लगाएँ।
पहला मानव परिवार
► अपनी बाइबल में उत्पत्ति पुस्तक को खोले रखें क्योंकि हम आदम और हव्वा, और अब्राहम और सारा के जीवन का अध्ययन करेंगे।
पहला विवाह
आदम और हव्वा पहला मानव परिवार थे: एक पति और एक पत्नी, एक पुरुष और एक स्त्री विवाह में जुड़ गए। पहले विवाह में, आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है” (उत्पत्ति 2:23)।
अगली आयत विवाह की बाइबल आधारित परिभाषा बताती है: “इस कारण पुरुष अपने माता–पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे एक ही तन बने रहेंगे” (उत्पत्ति 2:24)। यही वाक्य नए नियम में मत्ती 19:5 और इफिसियों 5:31 में दोहराया गया है। एक पुरुष और एक स्त्री का एक-तन का मिलन एक बिना शर्त वाली प्रतिबद्धता है, और परमेश्वर और मनुष्य के सामने किया गया एक वादा है, जो जीवन भर बना रहता है।
विवाह एक तिहरा आश्चर्यकर्म है। यह एक जीवविज्ञान सम्बन्धी आश्चर्यकर्म है, जिसके द्वारा दो लोग वास्तव में एक तन बन जाते हैं; यह एक सामाजिक आश्चर्यकर्म है, जिसके द्वारा दो परिवार एक साथ जुड़ जाते हैं; यह एक आत्मिक आश्चर्यकर्म है, जिसके द्वारा यह यीशु मसीह और उसकी दुल्हन, यानी कलीसिया के मिलन को चित्रित करता है।[1]
[2]विवाह त्रिएकत्व के भीतर के सम्बन्ध को दर्शाता है
विवाह परमेश्वर के चरित्र और उसके सम्बन्धों को प्रकट करने के लिए बनाया गया है। परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र, और परमेश्वर पवित्र आत्मा सदैव एक दूसरे के साथ सम्बन्ध में रहे हैं और रहेंगे। प्रत्येक जन अपनी भूमिका में निराला है, परन्तु त्रिएकत्व के सभी जन स्थायी रूप से एक हैं और एक ही सार वाले हैं। त्रिएकत्व के जनों के बीच के सम्बन्धों में, हम एकता, घनिष्ठता, विश्वासयोग्यता और दृढ़ प्रेम को देखते हैं। बाइबल आधारित विवाह इस अद्भुत सम्बन्ध के अनुरूप होता है। परमेश्वर की योजना है कि प्रत्येक पति-पत्नी अपने प्रेम में पवित्र रहें और जीवन भर एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहें।
मानव विवाह को इन तरीक़ों से त्रिएकत्व के भीतर के सम्बन्धों को दर्शाना चाहिए:
विवाह एक दूसरे के प्रति बिना शर्त, विशेष प्रतिबद्धता होना चाहिए।
विवाह को एक स्वयं को देने वाले प्रेम का सम्बन्ध होना चाहिए।
विवाह को एक फलवन्त सम्बन्ध में होना चाहिए।
पहली आज्ञा
पहले विवाह के दौरान, जिसका विधि-संचालन स्वयं परमेश्वर ने किया था,
परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी। और परमेश्वर ने उनसे कहा, “फूलो–फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।” (उत्पत्ति 1:28)।
फूलो-फलो और बढ़ो बाइबल में परमेश्वर के द्वारा दी गई पहली आज्ञा है। विवाह को स्वयं को देने वाले प्रेम का फलदाई सम्बन्ध होने के लिए बनाया गया है। विवाह के भीतर प्रजनन से सृष्टिकर्ता की महिमा होती है, क्योंकि पति और पत्नी साथ मिलकर परमेश्वर के सृजनात्मक कार्य को आगे बढ़ाते हैं और पारिवारिक सम्बन्ध में और लोगों को लेकर आते हैं। यह कितना अद्भुत सौभाग्य और ज़िम्मेदारी है!
►एक छात्र को समूह के लिए भजन संहिता 127:3-5 पढ़ना चाहिए।। यह परिच्छेद बच्चों का वर्णन करने के लिए शब्द चित्रों का प्रयोग करता है। शब्द चित्र क्या होते है? इन शब्द चित्रों के आधार पर, हमें अपने बच्चों के विषय में क्या सोचना चाहिए?
बाइबल हमें दिखाती है कि बच्चे एक उपहार हैं, और अनमोल धन हैं। उन्हें केवल यौन सम्बन्धों का परिणाम नहीं समझा जाना चाहिए। चाहे बच्चे के गर्भाधारण के आसपास की परिस्थितियाँ चाहने योग्य या उचित हों या न हों, जीवन का दाता प्रत्येक बच्चे के गर्भाधारण और जन्म के विषय में सोचता है, जिसमें आप और मैं भी शामिल हैं। परमेश्वर का प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक उद्देश्य है, चाहे किसी के जन्म की परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों न हों।
हाँ बच्चे परमेश्वर की ओर से एक उपहार हैं, परन्तु वे माता-पिता का परमेश्वर को भी उपहार हैं।
क्या उसने एक ही को नहीं बनाया जब कि और आत्माएँ उसके पास थीं? और एक ही को क्यों बनाया? इसलिए कि वह परमेश्वर के योग्य सन्तान चाहता है। इसलिए तुम अपनी आत्मा के विषय में चौकस रहो, और तुम में से कोई अपनी जवानी की स्त्री से विश्वासघात न करे (मलाकी 2:15)।
बच्चे पवित्र अमानत होते हैं। परमेश्वर माता-पिता से अपेक्षा करता है कि वे अपने बच्चों का पालन-पोषण करें उसके उद्देश्यों को पूरा करें। परमेश्वर अपने राज्य को आगे बढ़ाने के लिए हमारे बच्चों का इस्तेमाल करना चाहता है (उत्पत्ति 18:19)। परमेश्वर ने हम पर भरोसा किया है कि हम अपने बच्चों को उसकी सेवा के जीवन के लिए तैयार करेंगे (व्यवस्थाविवरण 6:2)। हम उन्हें अपनी सेवा या अपने सपनों को पूरा करने के लिए नहीं पाल रहे हैं। हमें उन्हें उन तीरों के रूप में देखना चाहिए, जिन्हें परमेश्वर ने अपने निर्धारित लक्ष्य को भेदने के लिए छोड़ा है।
पतन और मानव परिवार का टूटापन
उत्पत्ति 3 में, अस्तित्व में रहा एकमात्र सिद्ध परिवार टूटने की स्थिति में आ गया और उसे एक उद्धारकर्ता की अत्याधिक आवश्यकता थी। आदम और हव्वा ने पाप किया और मृत्यु का शाप पूरी मनुष्यजाति पर आ गया। आदम और हव्वा का एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो गया, और वे परमेश्वर से अलग हो गए।
परिवार के लिए परमेश्वर की सिद्ध योजना बिगड़ गई क्योंकि लोगों ने शैतान के झूठ को मान लिया।
उत्पत्ति 4 पतित मानव परिवार के टूटेपन को प्रकट करना जारी रखता है।
उत्पत्ति 4:1 पर ध्यान दें, पहली गर्भावस्था और जन्म। यह आयत नौ महीने के समय पर बात करती है—यानी एक बच्चे के गर्भधारण और उसके जन्म के बीच का समय। यह कल्पना करने के लिए रुकें कि गर्भावस्था के वे नौ महीने हव्वा के लिए कैसे रहे होंगे, जिनमें उसने आदम के साथ अपने डर और खुशियाँ साझा करने का प्रयास किया। उसे सलाह देने वाला कोई नहीं था, उसके प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं था। उसका बढ़ता हुआ पेट, उसके बच्चे की लातें, और उसके संकुचन और पीड़ा के साथ जन्म प्रक्रिया, ये सभी किसी भी मानव माँ के लिए पहली बार का अनुभव थे। कोई आश्चर्य नहीं कि हव्वा ने कैन के जन्म के बारे में यह कहा कि, “मैं ने यहोवा की सहायता से एक पुरुष पाया है।” (उत्पत्ति 4:1)।
समय बीतता गया, और अगली आयत में हमें दूसरी गर्भावस्था और जन्म के बारे में पता चलता है। अब आदम और हव्वा का के परिवार में चार लोग हैं। उसी आयत के दूसरे भाग में उनके पुत्रों के व्यवसायों का सारांश है। आयत 3 के अनुसार, लड़के वयस्क हो गए हैं, और बाद की आयतों में हम पहली हत्या की दुःखद कहानी को पढ़ते हैं। आदम और हव्वा के सबसे बड़े बेटे ने क्रोध और ईर्ष्या के कारण अपने भाई की हत्या कर दी। क्या आप सदमे, दुःख, प्रश्नों, चोट और पीड़ा की कल्पना कर सकते हैं?
उन प्रश्नों पर आपका उत्तर हो सकता है, “हाँ! मैं इसकी कल्पना कर सकता हूँ। वास्तव में, मैंने भी कुछ ऐसा ही अनुभव किया है!” मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ कि: आप अकेले नहीं हैं। आपका परिवार छुटकारे के योग्य है! हर परिवार के लिए एक खुशख़बरी है।
गॉर्डन वेन्हम लिखते हैं,
…उत्पत्ति का संदेश... मानवीय पाप के बावजूद अनुग्रह की विजय की कहानी है, यानी यह पाप से टूटे हुए परिवारों में भी अनुग्रह की विजय की कहानी है। यह पुस्तक संसार की सृष्टि के साथ उच्च स्तर पर शुरू होती है और परमेश्वर के स्वरूप में मनुष्य जाति की सृष्टि के साथ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचती है और परमेश्वर ने घोषणा की कि उसने जो कुछ भी बनाया है, वह बहुत अच्छा है…। केवल अध्याय 3 के बाद ही चीज़ें गलत होने लगती हैं, अनाज्ञाक़ारीता, [झगड़े] और मृत्यु आज्ञाकारिता, सद्भाव और जीवन का स्थान ले लेती है। अध्याय 4 में परिस्थितियों और भी बुरी हो जाती हैं... और अध्याय 6 में अपने सबसे निचले पड़ाव तक पहुँच जाती हैं, जहाँ लिखा है कि पृथ्वी हिंसा से भरी गई है (उत्पत्ति 6:11, 13)।[4]
[1]एक महिला की अध्ययन बाइबल (The Woman’s Study Bible), (Thomas Nelson, Inc., 1995), 9।
[2]“विवाह एक महान वाचा करने वाले और वाचा के रक्षक के रूप में… परमेश्वर के चरित्र का प्रदर्शन है। एक वाचा में, सबसे महत्वपूर्ण तत्व सत्य के प्रति निष्ठा और खराई होते हैं, न कि भावना।”
- रॉबर्ट मैक्विलकिन, एन इंट्रोडक्शन टू बिब्लिकल एथिक्स
[3]यह बताना महत्वपूर्ण है कि प्रसव शाप का हिस्सा नहीं था। प्रसव में पीड़ा होना शाप का परिणाम है, परन्तु प्रसव हमेशा अगली पीढ़ी के निर्माण के लिए परमेश्वर की अद्भुत योजना रहा है। न ही काम कोई शाप था, बल्कि काम में कठिनाई होना ही शाप था। वास्तव में, परमेश्वर ने उत्पत्ति 1:28 में आदम और हव्वा को जो अन्य आज्ञाएँ दिन, वे संकेत करती हैं कि हम काम करने के लिए बने हैं! काम उन तरीकों में से एक है, जिनसे हम परमेश्वर के स्वरूप को प्रकट करते हैं।
[4]फैमिली इन द बाइबल में गॉर्डन वेन्हम का लेख (Wenham writing in Family in the Bible), रिचर्ड एस. हेस और एम. डेनियल कैरोल आर. द्वारा संपादित (edited by Richard S. Hess and M. Daniel Carroll R.), Grand Rapids, MI: Baker Academic, 2003, 29
अब्राहम के परिवार में टूटापन
उत्पत्ति में आगे, हम इब्री जाति के पिता अब्राहम के बारे में पढ़ते हैं (उत्पत्ति 11:27-25:11)।[1] परमेश्वर अब्राहम के परिवार के द्वारा उद्धारकर्ता को मानव परिवार में लाने वाला था।
उत्पत्ति 11 में अब्राम की वंशावली की सूची दी गई है, जो नूह के पुत्र शेम का वंशज था। उत्पत्ति 11:30 हमें बताता है कि अब्राम की पत्नी सारै बच्चे पैदा करने में सक्षम नहीं थी। वह आयत उसे पढ़ने वाले बहुत से लोगों के लिए आँसू, कुंठा, हृदय की पीड़ा, निराशा, व्यर्थता, क्रोध और दुःख की आयत है। यदि आप इस आयत में सारै के स्थान पर अपना नाम रख सकते हैं, तो जान लें कि आप अकेले नहीं हैं।
जो लोग बच्चे पैदा करना चाहते हैं, परन्तु वे बाँझपन का अनुभव कर रहे हैं, उनके लिए उत्पत्ति 1:28 और भजन संहिता 127:3-5 जैसे परिच्छेदों को पढ़ना अत्याधिक पीड़ा और दुःख का कारण बनता है। यह महसूस होना स्वाभाविक है कि संतानहीन होना एक दण्ड या शाप है।
सच्चाई तो यह है कि, आप परमेश्वर के लिए इसलिए कम महत्वपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि आपके पास बच्चे नहीं हैं। आपको भुलाया नहीं गया है। आपके बाँझपन का अर्थ यह नहीं है कि आपके परिवार में कोई दोष है। अन्य लोगों ने भी इसी गहरे दुःख का अनुभव किया है।
एक दम्पत्ति एक साथ और व्यक्तिगत् रूप से, बाँझपन में कैसे काम करता है, यह अत्याधिक महत्वपूर्ण है। मूर्खता से भरे निर्णय आगे भी समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं, जैसा कि हम अब्राम और सारै के जीवन में देखेंगे।
प्रतिज्ञा की बाट जोहना
अपने पिता की मृत्यु के बाद, अब्राम अपने परिवार का कुलपिता बन गया। परमेश्वर ने अब्राम से उसे एक बड़ी जाति बनाने की प्रतिज्ञा की (उत्पत्ति 12:2) और अब्राम के वंशजों को कनान देश देने की प्रतिज्ञा कि (उत्पत्ति 12:7)। अब्राम अब 75 वर्ष का था (उत्पत्ति 12:4) और सारै उससे दस वर्ष छोटी थी (उत्पत्ति 17:17)। सारै असामान्य रूप से सुन्दर 65 वर्षीय महिला थी (उत्पत्ति 12:11), वह अभी भी बाँझ थी, और पहले से ही बच्चे पैदा करने की सामान्य आयु को पार कर चुकी थी।
[3]वर्ष बीतते गए, पर उसे फिर भी कोई बच्चा नहीं हुआ, हालाँकि उत्पत्ति 13:14-17 में परमेश्वर की प्रतिज्ञा को फिर से नया किया गया था। ऐसा लगता है कि अब्राम ने अपने बच्चे का पिता बनने की सम्भावना छोड़ दी है, क्योंकि उत्पत्ति 15:2-3 में वह परमेश्वर से कहता है कि उसका सेवक उसका उत्तराधिकारी है। तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुँचा, “यह तेरा वारिस न होगा, तेरा जो निज पुत्र होगा, वही तेरा वारिस होगा” (उत्पत्ति 15:4)। तब, परमेश्वर ने अब्राम से अनगिनत वंशजों की प्रतिज्ञा करते हुए उसे दूसरा चित्र दिया, और अब्राम ने यहोवा पर विश्वास किया (उत्पत्ति 15:6)।
सोचिए कि सारै के लिए इन वर्षों का इंतज़ार कैसा रहा होगा:
सारै के लिए दूसरों के ताने जितने पीड़ादायक रहे होंगे, उतना ही उसकी अपनी[तीखी] निराशा रही होगी जो सबसे अधिक पीड़ा देती है। वह शायद न केवल एक माँ होने की भरपूरी की चाह रखती थी, बल्कि वह उस समाज में माँ को मिलने वाले आदर और आदर की भी अभिलाषी करती थी, जहाँ वैसे भी महिलाओं का कोई विशेष महत्व नहीं था। हम जानते हैं कि पुरुष का बाँझपन भी गर्भधारण में विफलता का कारण हो सकता है, परन्तु सारै के संसार में ऐसा कोई जीववज्ञान सम्बन्धी ज्ञान नहीं था। एक महिला के रूप में सारै की पहचान, यानी एक योग्य महिला के रूप में, उसके बच्चे पैदा करने और उन्हें दूध पिलाने पर निर्भर थी। उसे पुरुषों की दृष्टि में एक धर्मी और विश्वासयोग्य मनुष्य बनकर मूल्य प्राप्त नहीं हुआ पर, बल्कि उसे यह अपने पति के लिए पुरुष उत्तराधिकारी को जन्म देकर मिला। खाली गर्भ का अर्थ खाली जीवन होता है।[4]
मानवीय समाधान और उसके पीड़ादायक परिणाम
[5]जब अब्राम 85 वर्ष का था, तब सारै के मन में एक विचार आया—यह इसका एक उपाय था कि अब्राम को बच्चा कैसे मिल सकता है। सारै की दासी उनके बच्चे की जन्मदात्री हो सकती है! (उत्पत्ति 16:1-4) अब्राम और सारै को इस बात से आशा थी कि यह एक सही समाधान होगा, परन्तु हाजिरा के गर्भवती होने पर उनके घर की शान्ति नष्ट हो गई। जो बात अत्याधिक सही लग रही थी वह अत्याधिक गलत हो चुकी थी। परमेश्वर की प्रतिज्ञा को पूरा करने में उसकी सहायता करने के उनके प्रयास से केवल विवाद और कलह उत्पन्न हुई। जब लोग परमेश्वर की योजना और समय पर भरोसा करने में विफल हो जाते हैं, तो टूटे हुए सम्बन्ध और आहत भावनाएँ उनका स्वाभाविक परिणाम होती हैं।
इसके बाद के वर्षों में, तनाव, ठेस, गलतफहमी, बातचीत की समस्याएँ, क्रोध, परित्याग और निराशा कई गुना बढ़ गई (उत्पत्ति 16-21), न केवल अब्राम और सारै के घराने में, बल्कि उनके भतीजे लूत के परिवार में भी।
दोषपूर्ण परिवार
अब्राम को परमेश्वर ने एक बड़ी जाति का पिता बनने के लिए चुना था, वह वंश जिसके द्वारा यीशु का जन्म होने वाला था! ऐसा लगता है जैसे अब्राम, उसके परिवार के अन्य सदस्यों की ही तरह, परमेश्वर की योजना को बर्बाद कर रहा था! उसका परिवार एक अत्याधिक दोषपूर्ण परिवार का उदाहरण था।
उत्पत्ति 49:33 के अनुसार, अब्राहम और सारा, इसहाक और रिबका, याकूब और उसकी पत्नियाँ सभी मर गए थे। याकूब के बच्चों को मिलाकर, वे विनाश से भरी हुई विफलताओं और दोषों से भरा हुआ एक परिवार था। लड़ाई, बहस, पक्षपात, छल, परित्याग, भाई-बहन की शत्रुता, बलात्कार और अनाचार ये सभी बातें उनके परिवार की कहानी का हिस्सा थीं। इनमें से कोई भी शब्द एक फलवन्त, शान्तिपूर्ण परिवार का वर्णन नहीं करता है!
दुःख की बात है कि यह कहानी सदियों से पूरी बाइबल और पूरे संसार में दोहराई जाती रही है। निःसंदेह, इन परिवारों में भी आनन्द के पल आए, सुन्दर प्रेम कहानियाँ घटीं, और यहाँ तक कि कुछ धर्मी लोग भी हुए।
इन सब बातों के द्वारा, परमेश्वर ने मनुष्यजाति को छुड़ाने की अपनी योजना को कभी नहीं छोड़ा। न ही उसने परिवार के लिए अपना उद्देश्य बदला। यदि आप पुराने नियम को पढ़ते रहेंगे, तो आपको इब्री परिवार की कहानी के द्वारा छुटकारे के एक सुन्दर विषय पता चलेगा। कई घटनाओं ने यीशु की ओर संकेत किया। अब्राहम का इसहाक को बलिदान चढ़ाना; फसह और इस्राएलियों का मिस्र की दासता से छुटकारा; राहाब का दण्ड से छूटकर और उसका परमेश्वर के लोगों में शामिल किया जाना; और कई अन्य घटनाओं ने इस प्रतिज्ञा को सुन्दरता से दर्शाया कि एक उद्धारकर्ता आएगा और मनुष्यजाति को छुटकारा देगा।
[1]उत्पत्ति 17:5, 15 में परमेश्वर ने अब्राम और सारै का नाम बदलकर अब्राहम और सारा कर दिया।
[3]परमेश्वर हमें यीशु के समान बनाने के लिए काम कर रहा है। कभी-कभी परमेश्वर हमसे इंतज़ार करवाता है, क्योंकि इंतजार के समय के द्वारा,
वह हमारे मनों में वह कार्य कर सकता है, जो अन्यथा सम्भव नहीं है।
[4]बाइबल में पाए जाने वाले दोषपूर्ण परिवार डेविड एण्ड डायना गार्लैंड (David and Diana Garland, Flawed Families of the Bible, Grand Rapids, MI: Brazos Press, 2007, 21-22)
[5]“परमेश्वर के पास इस बात के पवित्र कारण हैं
कि हम इंतज़ार करते हुए विनती करते रहें,
जैसा उसने इलीशिबा के लिए किया था (लूका 1:7, 13),
और हमारे तैयार होकर आगे बढ़ने से पहले, जैसा उसने मरियम के लिए किया था (लूका 1:34)।
जैसे ही हम उसकी आज्ञा मानते हैं और उसकी आराधना करते हैं,
वह मार्गदर्शन, शिक्षा और
अपनी योजना प्रदान करता है
जो कभी उन बातों से सीमित नहीं होती
जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।”
- शाउना लेटेलियर के रिमार्केबल एडवेंट लेख से लिया गया है
परिवारों में परमेश्वर का छुटकारे से भरा कार्य
इफिसियों 5 हमें बताता है कि परमेश्वर ने विवाह को मसीह और उसकी दुल्हन, यानी कलीसिया के बीच के सम्बन्ध के एक चित्र के रूप में बनाया था। जैसे सिर रूपी मसीह कलीसिया के लिए स्वयं को देता है, वैसे ही प्रत्येक पति को, अपनी पत्नी के सिर के रूप में, उसके लिए स्वयं को देना चाहिए। इसी तरह, प्रत्येक पत्नी को कलीसिया के उदाहरण का अनुसरण करना है। जिस प्रकार कलीसिया मसीह के अधीन है, उसी प्रकार प्रत्येक पत्नी को भी अपने पति के अधीन रहना है।
मनुष्यजाति के पतन ने मानवीय परिवारों के लिए परमेश्वर की मूल योजना को नष्ट कर दिया और विवाह सम्बन्धों पर विनाशकारी परिणाम लाए। प्रत्येक परिवार को मनुष्यजाति के पाप में गिरने के परिणामों का सामना करना पड़ता है। हालाँकि,
यीशु विवाह सहित सभी बातों के छुटकारे के लिए आया। वह उन सभी को छुड़ाने और बहाल करने के लिए आया था जिन्हें पाप ने हानि पहुँचाई थी और बिगाड़ दिया था। जहाँ हम विवाह के लिए परमेश्वर की योजना को पूरा नहीं कर सके, वहाँ पर यीशु ने परमेश्वर के मानकों को पूरी तरह से पूरा किया। यीशु ने कलीसिया से इतना प्रेम किया कि उसके लिए मर गया। वह पूरी तरह से पिता परमेश्वर की योजना के प्रति समर्पित हो गया। यीशु परमेश्वर की योजना और हमारे विवाह जो करने में विफल रहते हैं, वह उनकी पूर्ण और सिद्ध पूर्ति है अर्थ: प्रेम करना और अधीन रहना[1]
► यीशु कैसे उस आचरण का उदाहरण है, जिसे एक विवाहित व्यक्ति में होना चाहिए?
यीशु न केवल अपने पूर्ण समर्पण और पूर्ण प्रेम में परमेश्वर की इच्छा को पूरा करता है, बल्कि वह पतियों और पत्नियों को उन हानि पहुँचाने वाली प्रवृत्तियों पर विजय पाने के योग्य बनाता है, जो पतित मनुष्यजाति के लिए स्वाभाविक हैं। उसके अनुग्रह से, जब पति और पत्नियाँ पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से जी रहे हों तब वे विवाह के लिए परमेश्वर की योजना को पूरा कर सकते हैं (इफिसियों 5:18)।
कोई भी परिवार सिद्ध नहीं है, परन्तु परमेश्वर प्रत्येक परिवार को छुड़ाना चाहता है। परमेश्वर का अनुग्रह परिवारों में काम करके व्यक्तियों को वह बनाने के लिए सशक्त कर सकता है, जो मूल रूप से उनके लिए परमेश्वर की इच्छा थी। जैसे-जैसे परिवारों में व्यक्ति परमेश्वर के निर्देशों का पालन करने का चुनाव करते, उनकी आज्ञाकारिता कुछ दोषों और कमियों को दूर करने में सहायता करती है, जो हर परिवार में स्वाभाविक रूप से होते हैं। जब हम परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण करते हैं, तो मानवीय सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले पतन के परिणाम घटते चले जाते हैं।
उदाहरण के लिए, जब एक धर्मी पति इफिसियों 5 में दिए गए परमेश्वर के निर्देशों का पालन करता है, तब वह अपनी पत्नी पर अपने अधिकार का स्वार्थ से दुरुपयोग करने की अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति पर विजय पाता है। परमेश्वर के प्रति उसकी आज्ञाकारिता छुटकारा दिलाती है क्योंकि यह पतन के हानि पहुँचाने वाले प्रभावों को कम करती है। यह आज्ञाकारिता सम्भवतः उसकी पत्नी को भी उसके प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित कर सकती है।
जब एक पत्नी परमेश्वर के निर्देशों का पालन करते हुए अपने पति के अधीन रहती है (इफिसियों 5:24), तब वह अपने पति के अधिकार का विरोध करने की अपनी स्वाभाविक पापी प्रवृत्ति पर विजय पा रही है। परमेश्वर के प्रति उसकी आज्ञाकारिता छुटकारा दिलाती है, जिससे उनके सम्बन्ध को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार का विवाह बनने में सहायता मिलती है (1 कुरिन्थियों 11:3, 1 पतरस 3:1-7)।
परमेश्वर ने मसीही परिवारों को छुड़ाने वाले निर्देश दिए हैं, यह हमें दिखाता है कि परमेश्वर के लिए पारिवारिक सम्बन्ध अत्याधिक महत्वपूर्ण हैं।
पूरे पवित्रशास्त्र में ऐसे कई परिच्छेद मिलते हैं, जो माता-पिता और दादा-दादी को अपने बच्चों और पोते-पोतियों को परमेश्वर की विधियाँ सिखाने की आवश्यकता के बारे में बताते हैं। हम संक्षेप में तीन परिच्छेदों पर विचार करेंगे।
▶ एक छात्र को समूह इफिसियों 6:4 पढ़ना चाहिए।। इस आयत का क्या अर्थ है?
माता-पिता के लिए परमेश्वर की योजना यह है कि वे अपने बच्चों को परमेश्वर को जानना और उसकी आज्ञा का पालन करना सिखाएँ। माता-पिता जिस तरह से अपने बच्चों की अगुवाई करते हैं, उन्हें निर्देश देते हैं, उन्हें सुधरते हैं और प्रशिक्षित करते हैं, यह उसी तरह दिखाई देना चाहिए जैसे परमेश्वर अपनी सन्तानों के लिए इन कामों को करता है।
▶ एक छात्र को समूह के लिए भजन संहिता 78:1-8 पढ़ना चाहिए।। निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दें:
इस परिच्छेद में परिवार की कितनी पीढ़ियों का उल्लेख किया गया है?
प्रत्येक पीढ़ी की जिम्मेदारी क्या है?
बूढ़ी पीढ़ियों को जवान पीढ़ियों को क्या सिखाना चाहिए?
भजन संहिता 78 परमेश्वर के अतुलनीय अनुग्रह और दया से लबालब भरा हुआ अध्याय है। यह इस्राएल के परिवार के मिस्र को छोड़ने से लेकर राजा दाऊद के शासनकाल तक परमेश्वर के काम के बारे में बताता है। इस भजन से पाठकों को उनकी पारिवारिक परिस्थितियों के प्रति आशा मिलनी चाहिए।
▶ एक छात्र को समूह के लिए व्यवस्थाविवरण 6:1-9 पढ़ना चाहिए।। इस परिच्छेद को देखते हुए, परमेश्वर के लोगों के रूप में हमसे कौन सी बातें करने की अपेक्षा की गई है?
यह वचन इस्राएलियों को दिए गए मूसा के उस भाषण का भाग है, जो उसने उन्हें प्रतिज्ञा के उस देश में प्रवेश करने से पहले दिया था, जो परमेश्वर उन्हें दे रहा था। वे सीख रहे थे कि परमेश्वर की प्रजा कैसे बनें और परमेश्वर से सम्बन्ध रखने का क्या अर्थ है। इन आयतों में बताई गई सच्चाईयाँ आज भी परमेश्वर की प्रजा के रूप में जीने का आधार हैं।
परमेश्वर ने हमें आज्ञा दी है कि हम उसके वचन को आज्ञाकारी ढंग से सुनें—यानी वह हमसे जो चाहता है, हम वही करें! (आयत 3-4)।
हमें ये काम करने हैं:
अपने पूरे मन, प्राण और शक्ति से यहोवा से प्रेम करना (आयत 5)।
परमेश्वर के वचन को अपने मन में रखना (आयत 6)।
अपने बच्चों को लगन से सिखाना कि परमेश्वर के वचन का पालन कैसे करें (आयत 7)।
परमेश्वर के वचन को निरन्तर हमारे मन में और हमारे सामने रखना (आयत 8-9)।
ध्यान दें कि ये आज्ञाएँ हर पीढ़ी के लिए हैं (आयत 2)। परमेश्वर ने माता-पिता और दादा-दादी को जिम्मेदारी दी है कि वे अपने बच्चों और पोते-पोतियों को उसके लिए जीना सिखाएँ। कितनी देर के लिए? उनके जीवन के सब दिनों में (आयत 2)। परमेश्वर ने हमें बताया कि माता-पिता को अपने बच्चों को पूरे दिन, हर दिन, जहाँ भी वे जाते हैं और जो कुछ भी करते हैं, उनमें परमेश्वर की विधियाँ सिखानी चाहिए (आयत 7-9)।
बच्चों की आत्मिक शिक्षा माता-पिता की जिम्मेदारी थी। यह शिक्षा माता-पिता के उदाहरण के साथ-साथ व्यवस्था के दोहराए जाने के द्वारा प्रतिदिन दी जाती थी। इस आज्ञा का महत्व इस बात से पता चलता है कि माता-पिता को अपने बच्चों को सिखाने के लिए किस हद तक जाना पड़ा। यह व्यवस्था की बातों को सिखाने से कहीं अधिक था; यह दैनिक जीवन के ताने-बाने में बुनी गई जीवनशैली का प्रदर्शन था। घर के सांसारिक कामों में शामिल रहते हुए परमेश्वर के उपदेशों को सिखाने के लिए रचनात्मकता की आवश्यकता पड़ती थी।[1]
माता-पिता को अपने बच्चों को न केवल उनकी बुद्धि, बल्कि उनके मनों में भी सिखाना चाहिए। उन्हें अपने बच्चों को न केवल परमेश्वर की बातें सिखानी हैं, बल्कि परमेश्वर के साथ सम्बन्ध और उसकी आज्ञाकारिता में कैसे रहना है, इसका व्यावहारिक अनुप्रयोग भी सिखाना है। माता-पिता अपने बच्चों को मौखिक निर्देश और जीवन के उदाहरणों से सिखाते हैं। दोनों ही आवश्यक हैं।
यह परिच्छेद साधारण प्रतीत हो सकता है, परन्तु यह अत्याधिक महत्वपूर्ण है। ये सच्चाईयाँ और आज्ञाएँ व्यक्तियों और परिवारों के लिए उद्देश्य और दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। जब माता-पिता निरन्तर परमेश्वर को बेहतर तरीके से जानने और सब बातों में पूरी तरह से उसकी आज्ञा मानने का प्रयास करते हैं, तब वे अपने बच्चों को भी ऐसा ही करना सिखाते हैं। माता-पिता को आजीवन सीखने और आज्ञा मानने का मनोभाव रखना चाहिए। यह उनके बच्चों के लिए एक उदाहरण है, और यह उनके बच्चों में परमेश्वर के प्रति भूख को उत्पन्न करता है।
► ऐसे कौन से व्यावहारिक तरीके हैं, जिनसे माता-पिता प्रतिदिन अपने बच्चों को चेला बनने की शिक्षा में आगे बढ़ा सकते हैं?
परिवार—दूसरों से प्रेम करने का प्रशिक्षण स्थल
▶ एक छात्र को समूह के लिए 1 यूहन्ना 4:7-13, 19 पढ़ना चाहिए।।
इस परिच्छेद का विषय प्रेम है। परमेश्वर को उसकी भरपूरी से जानने के लिए, हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए। एक-दूसरे में हमारा परिवार भी शामिल है। परमेश्वर ने हमें परिवार इसलिए दिया है, ताकि हम दूसरों से प्रेम करना सीख सकें। जैसे-जैसे हम अपने परिवार के सदस्यों को प्रेम दिखाना सीखते हैं (भले ही यह कठिन हो), हम परमेश्वर के समान बनते चले जाते हैं—क्योंकि परमेश्वर प्रेम है! (आयत 8)।
जब परिवार के सदस्य—चाहे आत्मिक रीति से या शारीरिक रीति से—एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, तब वे साबित करते हैं कि वे परमेश्वर से जन्मे हैं (आयत 7)। जब वे एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, तब परमेश्वर का प्रेम उनमें सिद्ध हो जाता है (आयत 12)।
परमेश्वर केवल हमसे यह नहीं चाहता कि हम दूसरों से प्रेम करें, बल्कि उसने सबसे पहले हमसे प्रेम किया (आयतें 9-11, 19)। उसने यीशु को हमारे पापों की क्षतिपूर्ति के लिए भेजकर हमसे प्रेम किया (वचन 10)। हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम दूसरों के प्रति हमारे प्रेम की प्रेरणा है (आयत 11)।
अपने परिवार से प्रेम करना कुछ लोगों के लिए आसान हो सकता है और दूसरों के लिए अत्याधिक कठिन, परन्तु हम सभी के पास वह सब कुछ हो सकता है, जो हमें परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए चाहिए—क्योंकि परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा हमारे भीतर बना रहता है (आयत 12-13)।
परमेश्वर ने हमसे अपने माता-पिता, जीवनसाथी और बच्चों सहित एक-दूसरे से प्रेम करने के लिए कहा है। अपने परिवार से प्रेम करने का अर्थ गलत कामों या बुराई को स्वीकृति देना नहीं है। इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें जवाबदेही की आवश्यकता नहीं है। इसका अर्थ यह है कि हम अपने परिवार के सदस्यों के लिए सबसे अच्छी बात चाहते हैं और उनकी भलाई के लिए स्वयं को देने को तैयार हैं।
[1]एक महिला की अध्ययन बाइबल (The Woman’s Study Bible), Thomas Nelson, Inc., 1995, 292
सामूहिक चर्चा के लिए
► अपने शब्दों में, ऐसे कुछ तरीकों की व्याख्या करें जिनसे विवाह त्रिएकत्व के सम्बन्धों को दर्शाता है।
► इस बारे में बताएँ कि परमेश्वर ने पाप से टूटे हुए विवाह को कैसे बचाया।
► समझाएँ कि विवाह में परमेश्वर के निर्देशों का पालन करना छुटकारा क्यों दिलाता है।
प्रार्थना
एक क्षण निकालकर प्रार्थना करें और अपने परिवार के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दें। अपने परिवार के लिए प्रार्थना करें। दुःखों और असफलताओं, उत्सवों और खुशियों के विषय में प्रार्थना करें। व्यवस्थाविवरण 6:4-9 के शब्दों को निजी बनाएँ, उन्हें समर्पण और निवेदन की प्रार्थना बनाएँ।
पाठ सम्बन्धी नियत कार्य
(1) व्यवस्थाविवरण 6:4-9 को याद करें। अगली कक्षा की शुरुआत में, परिच्छेद को अपनी स्मृति से लिखें या दोहराएँ।
(2) व्यवस्थाविवरण 6:1-9 के अनुसार, परमेश्वर हमसे चार चीज़ें चाहता है। इन चार क्षेत्रों में से प्रत्येक में प्रार्थनापूर्वक और ईमानदारी से अपना मूल्यांकन करें।
हमें ये काम करने हैं:
अपने पूरे मन, प्राण और शक्ति से यहोवा से प्रेम करना (आयत 5)।
परमेश्वर के वचन को अपने मन में रखना (आयत 6)।
अपने बच्चों को लगन से सिखाना कि परमेश्वर के वचन का पालन कैसे करें (आयत 7)।
परमेश्वर के वचन को निरन्तर हमारे मन में और हमारे सामने रखना (आयत 8-9)।
प्रत्येक के बारे में एक व्यक्तिगत् प्रार्थना अनुच्छेद लिखें। (आपको इस लेख को अपने कक्षा के अगुवे के साथ साझा करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु आपको यह सूचना देनी होगी कि आपने सत्र कार्य पूरा कर लिया है।)
(3) अब्राहम और सारा के जीवन से हम प्रतीक्षा के लम्बे समय के बारे में सीखते हैं। इन प्रश्नों के बारे में सोचें:
आपको कब परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता पड़ी है? प्रतीक्षा के इस समय से आपने क्या सीखा?
आप परमेश्वर के वचन की प्रतिज्ञाओं पर कितना भरोसा करते हैं? क्या आप अभी किसी प्रतिज्ञा से जूझ रहे हैं? क्या उस संघर्ष का असर आपके परिवार पर पड़ रहा है? कैसे?
क्या आपने कभी परमेश्वर पर भरोसा किए बिना अपने लिए या अपने परिवार के लिए कुछ करने का प्रयास किया है? उसके क्या परिणाम हुए?
अधीरता और विश्वास की कमी परिवारों पर नकारात्मक प्रभाव कैसे डालती है?
इस विषय के उत्तर में कुल तीन परिच्छेद लिखें। (आपको इस लेख को अपने कक्षा के अगुवे के साथ साझा करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु आपको यह सूचना देनी होगी कि आपने सत्र कार्य पूरा कर लिया है।)
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