(1) उस सम्बन्ध को समझना तथा उसे महत्व देना जो परमेश्वर हमारे साथ रखना चाहता है।
(2) प्रत्येक व्यक्ति में परमेश्वर के स्वरूप को समझना और उसे महत्व देना।
(3) यह जानना कि हम अपने सम्बन्धों में जो चुनाव करते हैं, उनके लिए हम परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हैं।
(4) यह जानना कि बाइबल भक्तिपूर्ण सम्बन्धों के लिए हमारी नियमावली है, और हमें अपने सम्बन्धों में परमेश्वर का अनुकरण करना है।
परमेश्वर के साथ सम्बन्ध
पवित्रशास्त्र में, हम जानते हैं कि परमेश्वर एक निजी परमेश्वर है, जिसका दूसरों से सम्बन्ध है और उनसे बातचीत करता है (इब्रानियों 1:1-2)। पवित्रशास्त्र हमें दिखाता है कि परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र, और परमेश्वर पवित्र आत्मा अनन्तकाल से एक दूसरे के साथ सम्बन्ध में रहे हैं।[1]
परमेश्वर ने आकाश, पृथ्वी, समुद्र और हर उस वस्तु को बनाया जो उनमें हैं (निर्गमन 20:11) भजन संहिता 8:3-8 हमें दिखाती है कि हम अर्थात् मनुष्यजाति परमेश्वर की सर्वोत्तम और सबसे महत्वपूर्ण सृष्टि थी। परमेश्वर ने लोगों को उसी प्रकार सम्बन्ध रखने वाले प्राणियों के रूप में बनाया, जैसा कि आपस में सम्बन्ध रखने वाला जन है। सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में, परमेश्वर लोगों को उसके साथ जीवनदायी सम्बन्ध में आमंत्रित करता है।[2]
यह जानना कितना अद्भुत है कि, जगत का सृजनहार, आपके और मेरे साथ एक सम्बन्ध चाहता है!
► एक छात्र को समूह के लिए उत्पत्ति 3:8-9 पढ़ना चाहिए।।
एक क्षण के लिए रुकें, अपनी आँखें बंद करें और उस दृश्य की कल्पना करें जिसे आपने अभी-अभी पढ़ा है। इन आयतों को जीवन में लाने के लिए अपनी कल्पना का प्रयोग करें। आप दिन के ठण्डे समय में सबसे सुन्दर वाटिका में खड़े हैं, अपने चेहरे पर मधुर हवा के झोके को महसूस करें। परमेश्वर के कदमों की आवाज़ को सुने और उसके दो प्रिय प्राणियों के मूक प्रत्युत्तर को सुनें, फिर परमेश्वर पूछता है, “तू कहाँ है?”
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि वह किस प्रकार का क्षण रहा होगा, क्योंकि परमेश्वर पुरुष और स्त्री को उसके साथ संगति के रखने के लिए बुला रहा था? फिर से रुकें और परमेश्वर के मन पर विचार करें। परमेश्वर आदम और हव्वा के साथ, आपके साथ, और मेरे साथ संगति रखने की इच्छा रखता है—और चाहता है!
यद्यपि हमने अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण अपने आप को परमेश्वर से अलग कर लिया है (यशायह 59:2), तौभी परमेश्वर प्रत्येक जीवित व्यक्ति से सम्बन्ध चाहता है। लूका 19:10 हमें दिखाता है कि वह प्रत्येक पापी को खोज रहा है। परमेश्वर अब भी पूछता है, “तू कहाँ है?” क्योंकि यीशु हमारे लिए मरा, इसलिए हम परमेश्वर के साथ फिर से सही सम्बन्ध में वापस आ सकते हैं (इफिसियों 2:13, 19)। आपको और मुझे परमेश्वर के साथ सम्बन्ध के लिए बनाया गया है।
[1]उदाहरण के लिए, ये वचन हमें पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा के बीच के सम्बन्धों को दिखाते हैं: यूहन्ना 17:22-24; यूहन्ना 14:16-26; और यूहन्ना 15:26। ये आयतें इस विषय में बात नहीं करती कि पवित्र आत्मा अनन्त कैसे है, परन्तु हमें अन्य आयतों, जैसे कि इब्रानियों 9:14 से पता चलता है कि वह भी अनन्त है।
[2]उदाहरण के लिए, देखें यशायाह 55:3, यूहन्ना 1:12-13, यूहन्ना 3:36, यूहन्ना 17:3, 2 कुरिन्थियों 6:16-18, 1 यूहन्ना 1:3, प्रकाशितवाक्य 3:20।
हमारे सृष्टिकर्ता की रचना
जो लोग परमेश्वर की प्रेम पूर्ण और उद्देश्य पूर्ण सृष्टि में विश्वास नहीं रखते वे अपनी स्वयं की पहचान और उद्देश्य बनाने के लिए संघर्ष करते हैं। परमेश्वर से सम्बन्ध से परे मनुष्यजाति को सही रीति से समझ पाना असम्भव है। ऐसा व्यक्ति जो सांसारिक ज्ञान की सम्मति—मानव-केन्द्रित आनन्द की खोज—के अनुसार जीता है, वह जीवन को वास्तव में नहीं समझ सकता।
वास्तव में हमारी पहचान (हम कौन हैं), हमारे उद्देश्य (हम क्यों अस्तित्व में हैं), और हम कैसे रचे गए हैं, को समझने के लिए, हमें अपने सृष्टिकर्ता के उद्देश्य को जानना चाहिए, जो कि पवित्र बाइबल में पाया जाता है। परमेश्वर ने हमारी पहचान पहले से ही स्थापित कर दी है; यह कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसका हम आविष्कार करते हैं। उसने हमें एक उद्देश्य के साथ बनाया है और हमें सोच-समझकर रचा है। जब हम अपने जीवनों और सम्बन्धों के लिए उसकी योजना को समझ जाते हैं, केवल ताकि हम वह बन सकते हैं, जो हमें बनना और हमारे अस्तित्व के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।
परमेश्वर के स्वरूप में बनाने का अर्थ यह है कि लोगों को निराले ढंग से परमेश्वर के साथ सम्बन्ध के लिए बनाया गया था। जैसा कि परमेश्वर सम्बन्धपरक है, ठीक वैसे ही उसने लोगों को भी सम्बन्धपरक प्राणी बनाया है। परमेश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति के प्राण, आत्मा, और देह को परमेश्वर और दूसरों के साथ सम्बन्धों के लिए रचा है।
मानव सम्बन्धों के लिए हमारी निर्देश-पुस्तिका
यह सच है कि परमेश्वर ने लोगों को सम्बन्ध के लिए बनाया है, जो संकेत करता है कि उसके पास हमारे सम्बन्धों के लिए सिद्धान्त और दिशा निर्देश हैं। किसी भी उत्पाद का निर्माता उस उत्पाद के लिए एक निर्देश पुस्तिका देता है, जो उस उत्पाद की रचना और उसके उपयोग के तरीके के विषय में बताती है। उसी तरह, परमेश्वर ने हमें उसका वचन, बाइबल, दिया है, जो हमारी रचना के विषय में बताती है और यह बताती है कि हमारे जीवन और सम्बन्ध उचित रीति से कैसे कार्य कर सकते हैं।
बाइबल स्पष्टता से उन भूमिकाओं का वर्णन करती है, जो परमेश्वर ने मानव सम्बन्धों के लिए ठहराई हैं। बाइबल पतियों और पत्नियों; पिताओं, माताओं, और बच्चों; बहनो और भाइयो; दादा-दादियों; मित्रों; शत्रुओं; पड़ोसियों; सरकारों और नागरिकों; मालिको और कर्मचारियों की भूमिकाओं और सम्बन्धों के विषय में बताती है। परमेश्वर के वचन के सिद्धान्त हमें हमारे लिए उसकी रचना के विषय में सिखाते हैं, भले ही हमारी परिस्थितियाँ या माहौल कुछ भी क्यों न हो। बाइबल हमें हमारे जीवन के प्रत्येक चरण के लिए परमेश्वर की इच्छा के विषय में सिखाती है।
मानव समाज और संस्कृतियाँ यद्यपि सिद्ध नहीं है, तो भी वे परमेश्वर की रचना को दर्शाती हैं। संस्कृतियाँ सारे सम्बन्धों और परिस्थितियों के लिए सामान्य मानवीय आचरण के विषय में बताती हैं। प्रत्येक संस्कृति में बच्चों का पालन पोषण करने और वैवाहिक सम्बन्धों को बनाए रखने के अपने तरीके होते हैं। संस्कृतियों की परम्पराओं, वातावरण, अनुवांशिकियों, और मुख्य त्यौहारों इत्यादि में अत्याधिक विविधताएँ होती है, परन्तु प्रत्येक संस्कृति एक मूल नैतिकता साझा करती है। उदाहरण के लिए, प्रत्येक संस्कृति में विवाह का एक स्वरूप होता है। हालाँकि, सभी आचरणों को बाइबल के सिद्धांतों के द्वारा आंका जाना चाहिए, न कि सांस्कृतिक रीतियों के आधार पर। बाइबल हमारी अधिकारी है; न कि संस्कृति (रोमियों 12:2)।
यह आवश्यक नहीं कि सांस्कृतिक विशेषताएँ तटस्थ हों, और हमें उनके ऐसा होने की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए (इफिसियों 2:2)। संस्कृतियों को ऐसे पतित लोगों के द्वारा विकसित किया गया है, जिन्हें बुरी इच्छाओं और स्व-केंद्रिता के द्वारा आकार मिला है। एक समाज को बाइबल के सत्य का ज्ञान हो सकता है, परन्तु फिर भी एक समाज निरन्तर परमेश्वर के सही और गलत के पैमाने पर खरा नहीं उतरता। किसी भी बात को इसलिए उचित नहीं ठहराना चाहिए, क्योंकि वह सांस्कृतिक है। केवल बाइबल ही सिद्धता से हमें परमेश्वर के पैमाने को दिखाती है (भजन संहिता 19:7-11)।
यदि आप लीबिया देश में जाएँ और देखें के लिबियावासी सुरक्षा की परवाह की बिना गाड़ी चलाते हैं, तो शायद आप सोचेंगे कि, “यह उनकी संस्कृति है; उनका गाड़ी चलाने का तरीका उनके लिए ठीक है।” यह सच है कि उन्होंने गाड़ी चलाने के अपने ही सांस्कृतिक तरीके को विकसित कर लिया है। हालाँकि, लीबिया में यातायात से होने वाली मृत्यु दर संसार में सबसे अधिक है। उनकी यातायात मृत्यु दर संसार के दूसरे सर्वाधिक यातायात मृत्यु दर वाले देश से दुगनी है। स्पष्ट है, उनकी संस्कृति ने गाड़ी चलाने की अच्छी शैली को विकसित नहीं किया है।
परमेश्वर जानता है कि जीवन को कैसे काम करना चाहिए और इसके लिए उसने हमें नियम दिए हैं। हमें प्रयोग या खोजबीन नहीं करनी है। हमें बस वह नहीं करना जिससे हमें लगे कि हमें वह मिलेगा जो हमें चाहते हैं। हमें वह हासिल करने का प्रयास नहीं करना चाहिए, जिसके विषय में हम सोचते हैं कि एक सुखी जीवन होगा। हमें निश्चय ही सम्बन्धों के लिए परमेश्वर की रचना का पालन करना चाहिए।
सुन्दर बात यह है कि परमेश्वर के निर्देशों के प्रति वह आज्ञाकारिता हमारे लिए भली है। परमेश्वर ने हमें आज्ञाएँ इसलिए दी हैं, क्योंकि वह हमसे प्रेम करता है (व्यवस्थाविवरण 6:24)। उनका पालन करने के द्वारा, हम अच्छे परिणामों का आनन्द लेते हैं और बहुत से बुरे परिणामों से बच जाते हैं। हमारा रचयिता जानता है कि हमारे लिए क्या उत्तम है, और जब हम उसकी योजना का अनुसरण करते हैं, तो हमें आशीष मिलती है।
सम्बन्धों में परमेश्वर के प्रति जवाबदेही
►दूसरे लोगों के प्रति हमारे व्यवहार से परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्धों पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
►छात्र को समूह के लिए निम्नलिखित परिच्छेदों में से प्रत्येक को पढ़ें। संक्षिप्त रूप से चर्चा करें कि परमेश्वर इन मानव सम्बन्धों में क्या चाहता है, और आज्ञाकारिता परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्धों को कैसे प्रभावित करती है। परमेश्वर के निर्देशों का पालन न करना परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्धों पर प्रभाव कैसा प्रभाव डालेगा?
दूसरों के साथ हमारा सम्बन्ध और परमेश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध
पवित्रशास्त्र परिच्छेद
व्यक्ति/ भूमिका
परमेश्वर मानव सम्बन्ध में जिस बात की माँग करता है
उसका प्रभाव परमेश्वर के साथ सम्बन्ध
1 पतरस 3:7
पति
पत्नी को समझने वाला और उसका सम्मान करने वाला हो।
एक पति की प्रार्थनाएँ रुकनी नहीं चाहिए।
इफिसियों 5:22, 24, 33;
1 पतरस 3:1-6
पत्नी
पति के अधीन रहे।
इस प्रकार एक पत्नी परमेश्वर के प्रति समर्पित रहती है।
परमेश्वर उसके भीतर इस मनोभाव और व्यवहार को महत्व देता है।
कुलुस्सियों 3:20
बच्चे
सब बातों में माता-पिता के आज्ञाकारी हों।
इस व्यवहार से प्रभु प्रसन्न होता है।
मत्ती 6:12-15
सब लोग
अपने अपराधियों को क्षमा करें।
परमेश्वर हमें क्षमा कर सकता है।
रोमियों 13:1-5
सब लोग
सांसारिक अधिकारियों के अधीन रहें।
इस प्रकार हम परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं।
1 पतरस 2:18-20
सेवक
धीरज से अन्यायपूर्ण व्यवहार को सहें।
इससे परमेश्वर सेवक पर कृपा करता है।
हम नैतिक प्राणी हैं, जिसका अर्थ है कि हम जानते हैं कि कुछ काम गलत होते हैं और कुछ सही होते हैं, और हम अपने चुनावों के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हैं। यह बात हमें बड़ी क्षमता और बड़ी जिम्मेदारी प्रदान करती है। हमारे चुनाव परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध को प्रभावित करते हैं। सम्बन्धों के विषय में परमेश्वर के निर्देशों का पालन करना केवल इस पर आधारित एक व्यावहारिक विषय नहीं है कि हम कैसे खुश रह सकते हैं और जीवन से सर्वश्रेष्ठ कैसे प्राप्त कर सकते हैं। हम अपने निर्णयों और सम्बन्धों में अपने व्यवहार के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हैं (रोमियों 14:10, 12)।
परमेश्वर ने हमें दूसरों के साथ उचित व्यवहार करने और प्रेम और दया से कार्य करने के लिए बुलाया है (मीका 6:8)। समस्या यह है कि, आदम के पाप के कारण, उसके सभी वंशज पापी स्वभाव के साथ जन्मे हैं (रोमियों 5:12, 19)। इस कारण, हम निरन्तर प्रेमपूर्ण, दयालु और उचित तरीके से कार्य नहीं कर सकते हैं (रोमियों 7:15-24)। परन्तु जब हम नया जन्म पा लेते हैं, तब परमेश्वर का अनुग्रह हमें बदल देता है। पवित्र आत्मा हमें परमेश्वर की आवश्यकताओं को पूरा करने के योग्य बनाता है (रोमियों 8:3-4)।
प्रत्येक व्यक्ति का मूल्य
► छात्रों को समूह के लिए यशायाह 44:24, भजन संहिता 139:13-16, उत्पत्ति 9:6, और याकूब 3:9 पढ़ना चाहिए।। ये वचन हमें प्रत्येक जीवन के मूल्य के बारे में क्या बताते हैं? कौन सी बात किसी व्यक्ति को मूल्य प्रदान करती है?
दूसरों के साथ स्वस्थ सम्बन्ध रखने के लिए, हमें लोगों को वैसे ही महत्व देना चाहिए, जैसा परमेश्वर देता है। प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के स्वरूप में बना है और केवल इसी कारण से वह मूल्यवान है। प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर की एक अनोखी सृष्टि है, चाहे वह पुरुष हो या महिला, स्वस्थ हो या बीमार, सम्पूर्ण हो या विकलांग या अपंग, जवान हो या बूढ़ा, धनी हो या निर्धन (नीतिवचन 14:31), पहले ही जन्म ले चुका हो या अब भी अपनी माँ के गर्भ में हो; उनकी त्वचा का रंग चाहे जो भी हो; और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी मानसिक या शारीरिक क्षमताएँ या सीमाएँ क्या हैं (निर्गमन 4:11)।
ऐसी संस्कृतियाँ हैं, जहाँ वृद्धों को भुला दिया जाता है, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मूल्यवान माना जाता है, या बच्चों को परेशान करने वाला माना जाता है। कुछ संस्कृतियों में, अपंगों को शापित माना जाता है और उन्हें समाज से छिपाया या त्याग दिया जाता है। संसार भर में नस्लवाद सामान्य है: एक जनजाति या जातीय समूह स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ मानता है और दूसरे के साथ अपमानजनक व्यवहार करता है। इनमें से प्रत्येक कार्य उन लोगों के मूल्य को कम करना है, जो परमेश्वर की सारी सृष्टि में सबसे मूल्यवान हैं। स्वस्थ, परमेश्वर का आदर करने वाले सम्बन्ध बनाने के लिए, हमें सबसे पहले सभी लोगों के बारे में यह सोचना चाहिए कि वे क्या हैं – यानी परमेश्वर के स्वरूप के धारक।
परमेश्वर के लिए बनाए गए, दूसरों के लिए बनाए गए
प्रकाशितवाक्य 4:11 हमें बताता है कि परमेश्वर ने सभी वस्तुएँ अपने लिए बनाई थीं। इसमें निश्चित रूप से मनुष्यजाति भी शामिल है। हमें परमेश्वर के द्वारा, परमेश्वर के लिए बनाया गया। हम जो कुछ भी करते हैं, उसे हमें परमेश्वर की महिमा के लिए करना चाहिए (1 कुरिन्थियों 10:31, 1 पतरस 2:12)। हम भी दूसरे लोगों की भलाई करने के लिए बनाए गए हैं।
हमें अन्य लोगों के साथ काम करने के लिए बनाया गया था, जिससे कि परमेश्वर के उद्देश्य पूरे हों। विवाह परमेश्वर के लोगों के एक साथ काम करने के अभिप्राय का एक उदाहरण है। परमेश्वर ने जैसे ही प्रथम मनुष्य को बनाया उसके ठीक बाद, परमेश्वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उस से मेल खाए” (उत्पत्ति 2:18)। स्त्री एक महत्वपूर्ण तरीके से पुरुष के समान है, परन्तु अन्य महत्वपूर्ण तरीकों से उससे भिन्न है। वे साथ मिलकर अपने अस्तित्व के लिए परमेश्वर के उद्देश्यों को पूरा कर सकते हैं। परमेश्वर ने उन्हें—एक साथ—वह कार्य दिया जो उन्हें करना था (उत्पत्ति 1:26-28)।
कलीसिया भी लोगों के साथ मिलकर काम करने के परमेश्वर के अभिप्राय का एक और उदाहरण है। प्रेरित पौलुस ने इसके लिए देह के अंगों का उदाहरण दिया (1 कुरिन्थियों 12:12-26)। एक व्यक्ति को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह अकेले काम करके परमेश्वर का उद्देश्य पूरा कर सकता है या उसे अन्य लोगों की आवश्यकता नहीं है। विवाह और कलीसिया लोगों के एक साथ काम करने के परमेश्वर के अभिप्राय के कई उदाहरणों में से केवल दो उदाहरण हैं।
हमें दूसरे लोगों की सेवा करने के लिए बनाया गया था (गलातियों 5:13-14)। हमें परमेश्वर के साथ प्रेम से भरे सम्बन्धों के बनाया गया है, जिसमें हमें दूसरों के लाभ के लिए स्वयं को देना है।
► छात्र को समूह के लिए नीतिवचन 17:17, गलातियों 6:2, और फिलिप्पियों 2:4 पढ़ें।
हम परमेश्वर और अन्य लोगों के लिए बनाए गए थे। परमेश्वर अपने वचन में हमसे जो भी अपेक्षा करता है, वह या तो उसके साथ हमारे सम्बन्ध, दूसरों के साथ हमारे सम्बन्ध, या दोनों सम्बन्धों से सम्बन्धित होती है। वास्तव में, यीशु ने कहा था कि परमेश्वर हम से जो भी अपेक्षा करता है, उसे इस आदेश द्वारा संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है कि हम जो हैं, उसके साथ परमेश्वर से प्रेम करें और अन्य लोगों से उसी प्रकार प्रेम करें जैसे हम स्वयं से करते हैं।
► एक छात्र को समूह के लिए मत्ती 22:36-39 पढ़ना चाहिए।।
हम परमेश्वर के लिए बनाए गए हैं, और हम दूसरों के लिए भी बनाए गए हैं; ये सच्चाईयाँ आपस में घनिष्ठता से जुड़ी हुई हैं। उन प्रमुख क्षेत्रों में से एक जिसमें हम परमेश्वर की महिमा करते हैं और उसकी स्वरूप की झलक को प्रकट करते हैं, वह दूसरों के साथ हमारी बातचीत है। परमेश्वर का चरित्र और कार्य हमें उसके जैसा बनने के लिए विवश करते हैं (1 पतरस 1:16, मत्ती 5:48)। सब लोग परमेश्वर के स्वरूप में बने हैं, परन्तु जब हम परमेश्वर के जैसा व्यवहार करते हैं, तब हम उसके स्वभाव और चरित्र की झलक को प्रकट करते हैं।
जब कोई व्यक्ति जरूरतमंदों पर दया करता है, तब उसकी करुणा परमेश्वर की करुणा की नकल होती है, और उसका दयालु कार्य परमेश्वर के कार्य की नकल होती है। यह सच है, भले ही दया दिखाने वाला विश्वासी हो या अविश्वासी। हालाँकि, हम परमेश्वर का सबसे अच्छा अनुकरण तब करते हैं, जब हमारा उससे मेल हो जाता है और उसका आत्मा हमारे भीतर काम करने लगता है।
► एक छात्र को समूह के लिए 2 पतरस 1:2-11 पढ़ना चाहिए।।
यह परिच्छेद मसीह के प्रत्येक अनुयायी के लिए परमेश्वर की अद्भुत योजना के विषय में बताता है। इस परिच्छेद से हमें ये बातें सीखने को मिलती हैं:
यीशु ने हमें अपनी महिमा और भलाई से बुलाया है और हमें अद्भुत प्रतिज्ञाएँ दी हैं (आयतें 3-4)।
इन प्रतिज्ञाओं के द्वारा, हममें से जो लोग मसीह को जानते हैं, वे अपने भीतर परमेश्वर के भक्तिपूर्ण स्वभाव को पा सकते हैं (आयत 4)।
पिता परमेश्वर और यीशु के साथ सम्बन्ध के द्वारा, हमारे पास वह सब कुछ है, जो हमें जीवन और भक्ति के लिए चाहिए (आयत 3)।
इन बातों के कारण, हम वैसे जी सकते हैं, जैसे यीशु जिया और जैसे परमेश्वर ने हमें जीने के लिए बुलाया है (आयतें 5-8)।
► यह कैसे सम्भव है कि हम अपने सम्बन्धों में परमेश्वर के चरित्र और स्वभाव को प्रकट कर सकते हैं?
► एक छात्र को समूह के लिए 2 कुरिन्थियों 4:4 पढ़ना चाहिए।। परमेश्वर का आदर्श चित्र कौन है?
► एक छात्र को समूह के लिए 2 कुरिन्थियों 3:18 पढ़ना चाहिए।।
पवित्र आत्मा विश्वासियों को बदल देता है कि वे प्रभु की महिमा को अधिकाई से प्रकट करें। यीशु को देखकर, हम अपने दृष्टिकोण और व्यवहार में और अधिक उसके जैसे बनते चले जाते हैं। यही सुसमाचार की सुन्दरता है। पिता परमेश्वर, यीशु और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा, हम परमेश्वर के चरित्र को प्रकट कर सकते हैं था उसका अनुकरण कर सकते हैं।
परमेश्वर ने हमें दूसरों के साथ हमारे सम्बन्धों में उसका अनुकरण करने के लिए बुलाया है (इफिसियों 5:1)। जैसे एक बच्चा अपने माता-पिता या बड़े भाई-बहन को देखता है और उनकी नकल करता है, हमें यीशु के उदाहरण को देखना है और फिर दूसरों के साथ बातचीत करते समय उसके मनोभाव, दृष्टिकोण और कार्यों का अनुकरण करना है (फिलिप्पियों 2:5-7, इफिसियों 5:2)।
► छात्र समूह के लिए निम्नलिखित प्रत्येक परिच्छेद को पढ़ें। (1) परमेश्वर का चरित्र या कार्य और (2) हमारे लिए परमेश्वर की अपेक्षा पर नोट्स बनाएँ। (पहले दो परिच्छेदों के नोट्स उदाहरण के तौर पर पहले ही लिखे जा चुके हैं। इस पाठ के अन्त में, सत्र कार्य 2 इस अध्ययन को आगे बढ़ाता है।)
मानव सम्बन्ध परमेश्वर की महिमा को कैसे दर्शाते हैं
पवित्रशास्त्र
परमेश्वर क्या करता है/ मसीह ने क्या किया है
हमारा कार्य जो परमेश्वर को प्रकट करता है
फिलिप्पियों 2:3-8
उसने अपना अधिकार छोड़ दिया।
वह एक सेवक बन गया।
पूरी तरह से दीन एवं आज्ञाकारी था।
हमें अपने अधिकार छोड़ने चाहिए।
दूसरों के हितों का ध्यान रखना चाहिए।
दीन बनना चाहिए।
यूहन्ना 13:3-5, 12-15
व्यावहारिक आवश्यकता को पूरा करते हुए अपने शिष्यों की सेवा की।
अन्य विश्वासियों की सेवा करें।
इफिसियों 4:32-5:2
हममें से कोई भी स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के प्रेम को प्रकट नहीं करता क्योंकि हम स्वार्थी स्वभाव के साथ जन्मे हैं। परमेश्वर हमें हमारे लिए उसके अभिप्राय में बहाल करने का अनुग्रह प्रदान करता है। समर्पण की एक विनम्र प्रार्थना से कोई भी व्यक्ति इस परिवर्तन से होकर गुजर सकता है।
उपसंहार
बाइबल बताती है कि परमेश्वर ने लोगों को प्रेम से सम्बन्धों के लिए बनाया है: कि हम उसके साथ सम्बन्ध और दूसरों के साथ सम्बन्ध रखें।
क्योंकि परमेश्वर लोगों का सृष्टिकर्ता और सम्बन्धों का रचयिता है, हमें यह अवश्य करना चाहिए:
हमारे मानवीय सम्बन्धों पर परमेश्वर का दृष्टिकोण प्राप्त करें।
सम्बन्धों में हमारे द्वारा किए गए चुनावों के लिए उसके प्रति अपनी जवाबदेही को महसूस करें।
हमारे सम्बन्धों के लिए उसकी योजना को स्वीकार करें और उसका अनुकरण करें।
अध्ययन का यह पाठ्यक्रम ये काम करने में आपकी सहायता करेगा और आपको दूसरों को मानवीय सम्बन्धों के लिए परमेश्वर की इच्छा के विषय में सिखाने के लिए तैयार करेगा।
सामूहिक चर्चा के लिए
► संस्कृति मानवीय सम्बन्धों के मार्गदर्शक के रूप में पर्याप्त क्यों नहीं है?
► इस पाठ में कौन सा विचार आपके लिए नया था? वह महत्वपूर्ण क्यों है? इसे समझने से आपको अपने सम्बन्धों में किस प्रकार सहायता मिलेगी? इसे समझने से आपकी सेवकाई पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
► आप इस पाठ्यक्रम का अध्ययन करके कैसे बढ़ेंगे?
प्रार्थना
हे स्वर्गीय पिता,
तेरा धन्यवाद हो कि तूने मुझे अपने स्वरूप में बनाया और मेरे जीवन के लिए एक उद्देश्य रखा।
मुझे तेरे साथ सम्बन्ध रखने के लिए और मेरे पापों के लिए यीशु की मृत्यु के द्वारा यह सम्भव बनाने के लिए तेरा धन्यवाद हो।
तेरे वचन के धन के लिए तेरा धन्यवाद हो, जो मुझे सिखाता है कि तुझसे सम्बन्ध कैसे रखूँ और दूसरों के साथ अपने सम्बन्धों में तेरी महिमा कैसे करूँ।
अपने वचन और अपनी आत्मा के द्वारा, मुझे उस जीवन को अपनाना सिखा जिसकी तूने मेरे लिए योजना बनाई है।
मेरी सहायता कर कि मैं अपने आस-पास के सभी लोगों के सामने तेरे स्वरूप को सटीकता से प्रकट कर सकूँ, ताकि अन्य लोग तुझे जान सकें।
(1) समझाएँ कि कैसे परमेश्वर के स्वरूप में सृजे जाना प्रत्येक व्यक्ति को मूल्य प्रदान करता है और कैसे सृष्टि का इनकार करना मानवीय मूल्य को छीन लेता है।
(2) निम्नलिखित पवित्रशास्त्र के परिच्छेदों में से प्रत्येक को पढ़ें। (1) परमेश्वर का चरित्र या कार्य और (2) हमारे लिए परमेश्वर की अपेक्षा पर नोट्स बनाएँ।
मानव सम्बन्ध परमेश्वर की महिमा को कैसे दर्शाते हैं
पवित्रशास्त्र
परमेश्वर क्या करता है/ मसीह ने क्या किया है
हमारा कार्य जो परमेश्वर को प्रकट करता है
भजन संहिता 68:5; याकूब 1:27
2 पतरस 3:9; तीतुस 3:1-5
मत्ती 5:43-48,
1 थिस्सलुनिकियों 5:14-15
यूहन्ना 13:1, 34;
1 यूहन्ना 4:7-8, 11-12
(3) सत्र कार्य 2 की तालिका और पाठ के अन्त में दी गई तालिका को देखते हुए, एक क्षण लेकर अपने जीवन की जाँच करें:
क्या आप वर्तमान में परमेश्वर के स्वरूप को इस प्रकार कैसे प्रकट करते जिससे कि उसका आदर और महिमा होती है?
क्या कोई अनाज्ञाकारिता है, जिसका अंगीकार किया जाना चाहिए ताकि आपका जीवन आपके लिए परमेश्वर उद्देश्य के साथ अधिक स्पष्ट और सामर्थी रूप से मेल खा सके?
परमेश्वर चाहता है कि आप यीशु के जैसा बनने के लिए कौन सा कदम उठाएँ?
इस अध्ययन के उत्तर में एक प्रार्थना अनुच्छेद लिखें। (आपको इस लेख को अपने कक्षा के अगुवे के साथ साझा करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु आप यह उसे सूचना दे सकते हैं कि आपने सत्र कार्य पूरा कर लिया है।)
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