जब मार्कस बच्चा था, तो उसके माता-पिता ने उसे अच्छा कार्य करना सिखाया। जब भी उसे कार्य करने और पैसे कमाने का मौका मिलता था, तो वह खुश होता था। वह हर उस कार्य को करने के लिए हमेशा तैयार रहता था, जिसके लिए उसे कोई रखता था। एक युवा के रूप में उसने घरं को अहातों में कार्य किया, अखबार को पहुँचाया और साइकिलों की मरम्मत की। मार्कस को एक व्यापारी बनने में रुचि थी, लेकिन वह जानता था कि परमेश्वर उसे सेवकाई में बुला रहा था। मार्कस ने एक बाइबल संस्थान में अध्ययन किया। संस्थान में अपने खर्चों का भुगतान करने के लिए उसने उस कार्यालय की सफाई, भोजनालय का कार्य और इसके अहाते का कार्य किया। जब उसने स्नातक प्राप्त की, तो उसने सेवा शुरू की, लेकिन कभी-कभी घरों में रंग करता था या इमारतों की मरम्मत का कार्य करता था, क्योंकि उसको सेवकाई में पूरी तरह से सहायता नहीं मिल रही थी। उसने हमेशा लाभ कमाने के बजाय सेवकाई की जिम्मेदारियों और व्यक्तिगत् विकास को अपनी प्राथमिकता बनाने की कोशिश की, भले ही उसके पास पत्नी और बच्चे थे। आख़िरकार वह समय आ गया, जब उसको सेवकाई से पूरी सहायता मिलने लगी।
परिपक्वता और चरित्र
► छात्रों को समूह के लिए 1 तीमुथियुस 4:12 और विलापगीत 3:27 पढ़ना चाहिए।
1 तीमुथियुस एक युवा वयस्क को लिखा गया था, जो कई कलीसियाओं की देखरेख के लिए जिम्मेदार था। 1 तीमुथियुस 4:12 में हम देखते हैं कि परमेश्वर विश्वास करने वाले युवा वयस्कों से अपने चरित्र और व्यवहार में आदर्श बनने की अपेक्षा करता है। उसे मसीही सिद्धांतों में स्थापित होने को प्राथमिकता देनी चाहिए। उसे दूसरों के साथ हर बातचीत में पवित्रता और निस्वार्थ प्रेम दिखाना चाहिए। उसके व्यवहार और बोली से परमेश्वर का आदर होना चाहिए और उसकी महिमा होनी चाहिए।
विश्वासी युवा वयस्कों को सावधान, उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना चाहिए। जीवन के इस चरण के दौरान परमेश्वर ने उन्हें जो ताकत दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। उन्हें सीखने, कौशल विकसित करने, दूसरों की सेवा करने और जिम्मेदारी लेने के अवसरों को बर्बाद नहीं करना चाहिए। किशोरावस्था और शुरुआती वयस्कता के वर्षों को स्वार्थी महत्वाकांक्षाओं पर खर्च नहीं करना चाहिए। ये वर्ष विकास और सेवा के लिए प्रमुख हैं। परमेश्वर युवा विश्वासियों को आत्म-नियंत्रण सीखने में सक्षम बना सकता है, ताकि वे उसके लिए फलदायी हों।[1]
[1]इस विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए, Shepherds Global Classroom से उपलब्ध आत्मिक निर्माण का पाठ 12 देखें।
कार्य
कार्य पर दृष्टिकोण
कुछ संस्कृतियों में, लोगों को अधिक कार्य न करते हुए बैठे देखना आम बात है, भले ही वे युवा और स्वस्थ हों। हालाँकि उनकी ज़रूरतें होती हैं और वे दूसरों के लिए ज़िम्मेदार होते हैं, लेकिन उनके पास कार्य करने की प्रेरणा नहीं होती है। उनका कहना है कि अगर उन्हें अच्छे वेतन पर कार्य मिलेगा तो वे कार्य करेंगे। वे कम वेतन पर कार्य करने या छोटे दर्जे वाला कार्य करने को तैयार नहीं हैं। यदि उन्हें व्यक्तिगत् रूप से लाभ नहीं होगा तो वे अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए कार्य करने को तैयार नहीं हैं।
कभी-कभी जिन लोगों को नौकरी पर रखा जाता है, वे नौकरी पाने के लिए उत्साहित होते हैं। हो सकता है कि वे ऐसे देश में रहते हों जहाँ बड़ी सँख्या में लोगों को अच्छा रोजगार नहीं मिल पाता। वे कंपनी की वर्दी पहनने का आनंद लेते हैं और अपने रोजगार की स्थिति पर गर्व करते हैं। लेकिन जब वे अपनी स्थिति का आनंद लेते हैं, तो वे इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते कि मालिक या ग्राहकों की सेवा कैसे करें। उन्हें कंपनी का हिस्सा होने पर गर्व होता है, लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता कि उन्हें कार्य पर क्यों रखा गया है।
कार्य करने से इनकार करने वाले लोगों के विपरीत, कुछ लोग पेशा या पैसा कमाने पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। शायद वे ऐसी जगह चले गए, जहाँ रोजगार के लिए उनके घर की तुलना में बहुत अधिक वेतन मिलता है। वे कार्य करना चाहते हैं और जितना हो सके उतना पैसा कमाना चाहते हैं। वे जीवन के अन्य महत्वपूर्ण हिस्सों की उपेक्षा करते हैं, जैसे कि परमेश्वर और अपने परिवार के साथ अपने संबंधों का पोषण करना।
किसी एक समाज में लोग ये कार्य कर सकते हैं, लेकिन विश्वासियों को बस वही नहीं करना चाहिए जो उनकी संस्कृति में सामान्य है। इसके बजाय, उन्हें पता लगाना चाहिए कि परमेश्वर क्या कहता है, और फिर उसका पालन करना चाहिए। बाइबल कार्य, परिश्रम और उत्पादकता के बारे में बहुत कुछ कहती है।[1]
कार्य की उत्पत्ति
परमेश्वर रचनात्मक है (भजन संहिता 104:24)। परमेश्वर उत्पादक है (भजन संहिता 104)। परमेश्वर कार्य कर रहा है, व्यक्तिगत् लोगों के जीवन में और हर समय के संसारिक मामलों में शामिल है (यूहन्ना 5:17)। जब परमेश्वर ने लोगों को बनाया, तो उसने उन्हें अपने स्वरूप में बनाया, अर्थात् खुद का प्रतिबिंब। वह चाहता था कि लोग उसकी रचना के रचनात्मक और उत्पादक प्रबंधक बनें। परमेश्वर ने मानव जाति को पृथ्वी, समुद्र और आकाश के हर जानवर पर प्रभुता दी (उत्पत्ति 1:26)। उसने लोगों को पृथ्वी के संसाधनों का प्रबंधक बनाया (उत्पत्ति 1:28-30)।
कार्य मानव जीवन के लिए परमेश्वर की योजना का हिस्सा है। शुरू से ही, परमेश्वर ने लोगों को बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। हम में से हर एक उसे इस बात का उत्तर देगें कि उसके पास हमारे लिए जो काम है हमने उसे ईमानदारी से किया है या नहीं।
नीतिवचन से सिद्धांत
नीतिवचन की पुस्तक विशेष रूप से युवा लोगों के लिए लिखी गई थी, जो उन्हें बुद्धिमानी से सोचना और व्यवहार करना सिखाती थी। नीतिवचन कार्य के बारे में बहुत कुछ कहते हैं।
► छात्रों को समूह के लिए हर एक पवित्र शास्त्र की आयत को पढ़ना चाहिए।
नीतिवचन 6:6-11, नीतिवचन 10:5। चींटियाँ लोगों के लिए अच्छा उदाहरण हैं।
वे लगन से कार्य करती हैं, भले ही कोई उन्हें कार्य करने के लिए मजबूर नहीं करता हो। उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं है कि उन्हें क्या करना चाहिए या कैसे करना चाहिए, फिर भी वे उत्पादक हैं। चींटियों से हम सीखते हैं कि हमें कार्य करने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए। हमें कार्य करना चाहिए, क्योंकि इसी तरह परमेश्वर हमारी ज़रूरतें पूरी करता हैं।
जब कार्य करने का समय होता है, तब वे कार्य करती हैं। कार्य के लिए समय होते हैं, और अन्य गतिविधियों और आराम के लिए भी समय होते हैं। यह पूछने से सहायता हो सकती है, "मुझे इस समय क्या करना चाहिए?"
वे तब तक कार्य करती हैं, जब तक कार्य करने का अवसर मौजूद रहता है। मौसम बदलते हैं, और संसाधन हासिल करने का अवसर ख़त्म हो सकता है। हमारे अवसर भी आते हैं और चले जाते हैं। हमें अभी हमारे पास मौजूद अवसर का उपयोग करना चाहिए, अन्यथा यह बर्बाद हो जाएगा।
वे कार्य करती हैं, ताकि बाद में उन्हें उनकी ज़रूरत का भोजन मिल सके। जब कार्य करने का समय हो तो हमें सोना या आराम नहीं करना चाहिए। हमें अच्छे कार्य में व्यस्त रहना चाहिए, तब यदि हम आलसी हैं, तो हमारी भविष्य की ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाएँगी। हमें कलकी जरूरतों को पूरा करने के लिए आज कार्य करना चाहिए।
नीतिवचन 19:15, नीतिवचन 20:4, नीतिवचन 12:24। परमेश्वर ने संसार को इस प्रकार स्थापित किया है कि हमारे चुनाव का वास्तविक फल होता हैं (गलातियों 6:7)।
यदि हम लगातार आलसी बने रहेंगे तो हम शारीरिक रूप से कमजोर हो जायेंगे। यदि हम लगातार अपने विचारों में आलसी बने रहना चुनते हैं, तो हमारी सीखने, सोचने और तर्क करने की क्षमता कम हो जाएगी।
यदि हम सक्षम होने पर भी कार्य करने से इनकार करते हैं, तो परमेश्वर कहता हैं कि हम बिना भोजन के रहने के योग्य हैं। (2 थिस्सलुनीकियों 3:6-12 को पढ़ें)।
यदि हम मेहनती हैं, तो परमेश्वर हमें अधिक अवसर और बड़ी ज़िम्मेदारी का प्रतिफल देगा।
परमेश्वर ने हमारे चुनाव के लिए सामान्य परिणाम निर्धारित किये हैं। हमें अपने परिणाम चुनने का अधिकार नहीं है, लेकिन हमें यह चुनने का अधिकार है कि हम क्या करेंगे!
नीतिवचन 14:23, नीतिवचन 20:6। कुछ लोग सोचते हैं कि वे बहुत होशियार हैं, लेकिन वे कार्य करने से इनकार कर देते हैं। उन्हें सपने देखना और इस बारे में बात करना पसंद है कि चीजें कैसे की जानी चाहिए, लेकिन वे खुद कुछ नहीं कर रहे हैं। परमेश्वर चाहता है कि हम वास्तव में कार्य करें, न कि केवल इसके बारे में बात करें। वह चाहता है कि हम जिम्मेदारी लें और जो हमने कहा है कि हम करेंगे, उसके प्रति वफादार रहें।
नीतिवचन 15:19। कभी-कभी लोग कुछ करने के तरीके को लेकर आलसी होते हैं। वे आसान रास्ता चुनते हैं, भले ही उसका परिणाम अच्छा न हो। हो सकता है कि वे कुछ कम खर्चीला कार्य कर रहे हों, लेकिन वे जो कर रहे हैं, वह समय के साथ नहीं टिकेगा। हो सकता है कि उनकी विधि में कम प्रयास की आवश्यकता हो, लेकिन तैयार उत्पाद खराब गुणवत्ता वाला होगा। हो सकता है कि वे चुनौतियों से निपटने और जो सही है, उसे करने के लिए तैयार होने के बजाय अन्य लोगों के दबाव में आ रहे हों।
► आप ऐसे कौन से उदाहरण सोच सकते हैं, जहाँ लोग कुछ करने के तरीके में आलसी हैं?
यह नीतिवचन हमें सिखाता है कि जब हम जो करते हैं, उसे करने में आलसी होते हैं, तो यह बाद में हमारे लिए और दूसरे लोगों के लिए समस्याएँ पैदा करता है। लेकिन जब हम सही कार्य करते हैं, तो हमें अच्छे परिणाम का प्रतिफल मिलेगा। हमें अभी सावधान और संपूर्ण रहना चाहिए, ताकि हम बाद में उत्तम परिणामों का आनंद उठा सकें।
► आप ऐसे कौन से उदाहरण सोच सकते हैं, जब आलस के कारण बाद में कठिनाई और परेशानी हुई? आप कौन से उदाहरण सोच सकते हैं, जब वफ़ादारी और परिश्रम के अच्छे परिणाम आए हों?
नीतिवचन 12:11, नीतिवचन 21:20, नीतिवचन 28:19। युवा वयस्कों, परमेश्वर ने आपको ताकत और स्वास्थ्य इसलिए नहीं दिया है कि आप उन्हें फालतू के कामों में बर्बाद कर सकें। उसने आप पर भरोसा किया है कि आप अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के अच्छे प्रबंधक हों। उसने आपको अपनी सेवा करने का अवसर दिया है। एक वफ़ादार भण्डारी होने के नाते आपको आत्मसंयम की आवश्यकता होगी। आप सुख की हर इच्छा पूरी नहीं कर पाएँगे। आपको परमेश्वर के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपनी ताकत, संसाधनों और समय पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
परमेश्वर आपसे अपेक्षा करता है कि आप अपनी, अपने परिवार की ज़रूरतें (1 तीमुथियुस 5:8), और उन लोगों की ज़रूरतें पूरी करें जो मदद के योग्य हैं और जिनके पास उन्हें प्रदान करने के लिए कोई और नहीं है (1 तीमुथियुस 5:3-16, इफ़िसियों 4:28, याकूब 1:27, याकूब 2:15-16)।
1 थिस्सलुनीकियों 4:11-12 कहता है,
... चुपचाप रहने और अपना–अपना कार्य –काज करने और अपने अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करो; ताकि बाहरवालों से आदर प्राप्त करो, और तुम्हें किसी वस्तु की घटी न हो।
यह विश्वासियों के लिए परमेश्वर की इच्छा है।
► विश्वासियों को किस प्रकार का कार्य करने के लिए तैयार रहना चाहिए? क्या स्थिति मायने रखती है? यदि हाँ, तो किस प्रकार याँ किस हद तक?
हम वित्त पर चर्चा करके कार्य के विषय पर आगे बढ़ेंगे। हमने अभी सबसे महत्वपूर्ण कारणों पर चर्चा की है कि परमेश्वर हमसे कार्य करवाना चाहता है, जिसमें हमारी जरूरतों और दूसरों की जरूरतों का प्रावधान भी शामिल है। कार्य परमेश्वर की आवश्यक जरूरतों - भोजन और कपड़े - को पूरा करने का सामान्य तरीका है (1 तीमुथियुस 6:8)। कई जगहों पर लोग कार्य करके पैसा कमाते हैं, जिसे वे भौतिक प्रावधानों पर खर्च करते हैं। अन्य स्थानों पर, लोगों को पैसे के बजाय भोजन, संपत्ति या सेवा से भुगतान किया जाता है। किसी भी तरह से, परमेश्वर लोगों की जरूरतों को उनकी मेहनत के माध्यम से पूरा कर रहा है।
[1]इस विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए, Shepherds Global Classroom से उपलब्ध व्यावहारिक मसीही जीवन का पाठ 3 देखें।
वित्त
पवित्र शास्त्र के कई आयतें पैसे के विषय को संबोधित करती हैं। हम पैसे के बारे में कैसे सोचते हैं और उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं, इसका परमेश्वर और अन्य लोगों के साथ हमारे संबंधों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है, परमेश्वर चाहता हैं कि हमें पैसे और उसके उपयोग की सही समझ हो।[1]
नीतिवचन से सिद्धांत
► छात्रों को समूह के लिए हर एक पवित्र शास्त्र की आयत को पढ़ना चाहिए।
हमारी सुरक्षा का स्रोत क्या है?
अंत में परमेश्वर ही धर्मियों का दाता है (नीतिवचन 10:3)।
हमें धन से प्रेम और उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे शक्ति में सीमित और अवधि में अस्थायी हैं (नीतिवचन 11:4, 28)।
► कौन से विचार, दृष्टिकोण और कार्य किसी व्यक्ति के दाता और सुरक्षा के रूप में परमेश्वर में विश्वास प्रदर्शित करते हैं?
कई चीज़ें अमीर होने से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं; उदाहरण के लिए:
दूसरों के साथ अच्छे संबंध रखना (नीतिवचन 15:17)।
ज्ञान और बुद्धि होना (नीतिवचन 8:10-11)।
परमेश्वर का भय मानना और उसके साथ सही संबंध में रहना (नीतिवचन 15:16)।
अच्छा चरित्र होने के कारण सम्मान पाना (नीतिवचन 11:16)।
विश्वासयोग्य, ईमानदार और दयालु होना (नीतिवचन 19:22)।
► आपकी परिस्थितियों के कारण इनमें से कौन सा आपके लिए सबसे चुनौतीपूर्ण है?
धन के सही प्रबंधन के सिद्धांत:
मेहनत, ईमानदारी के साथ काम करके धन कमाएँ (नीतिवचन 10:4)।
समय के साथ धैर्यपूर्वक धन इकट्ठा करें (नीतिवचन 13:11)।
अपनी कमाई का पहला भाग परमेश्वर को देकर उसका सम्मान करें (नीतिवचन 3:9-10)।
गरीबों के प्रति उदार रहें (नीतिवचन 11:24-25, नीतिवचन 14:21, नीतिवचन 19:17, नीतिवचन 21:13)।
► आपको इनमें से किससे सबसे अधिक संघर्ष करना पड़ता है?
धन के दुरुपयोग के विरुद्ध चेतावनी:
धन पाने के लिए कभी भी परमेश्वर के वचन की अवज्ञा न करें (नीतिवचन 10:2, नीतिवचन 15:27)।
जल्दबाजी या लापरवाही से निर्णय न लें (नीतिवचन 21:5)।
दूसरों का ऋण चुकाने का वादा न करें (नीतिवचन 6:1-5; नीतिवचन 17:18)।
► नीतिवचनों में से कौन सा सिद्धांत आपकी संस्कृति में सबसे अधिक नजरअंदाज किया जाता है?
[1]इस विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए, Shepherds Global Classroom से उपलब्ध व्यावहारिक मसीही जीवन का पाठ 9 देखें।
करीबी दोस्त
► छात्रों को समूह के लिए नीतिवचन 13:20 और 1 कुरिन्थियों 15:33 पढ़ना चाहिए।
करीबी दोस्ती एक युवा वयस्क के जीवन में सबसे मजबूत प्रभावों में से एक है। लोग आमतौर पर उन लोगों के करीबी दोस्त बन जाते हैं, जो उनके मूल्यों को साझा करते हैं। लेकिन दोस्ती हर एक व्यक्ति को बेहतर के लिए या बदतर के लिए बदल देती है। समय के साथ किसी के साथ करीबी दोस्ती का आप पर प्रभाव पड़ेगा। आपके दृष्टिकोण, दर्शन, प्राथमिकताएँ, व्यवहार, विकल्प और चरित्र प्रभावित होंगे। आपके सबसे करीबी दोस्त आपको अपने उदाहरण से प्रभावित करेंगे, लेकिन आपकी पसंद के प्रति अपनी सहमति या असहमति और अपने प्रेरक शब्दों से भी आपको प्रभावित करेंगे।
► प्रत्येक छात्र को इनमें से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर में 1-5 विशेष लोगों के नाम लिखने चाहिए:
सहमती और पुष्टि के लिए मैं आमतौर पर किसकी ओर देखता हूँ?
मैं अपने जीवन की समस्याओं के बारे में किससे बात करूँ?
जब मुझे कोई निर्णय लेना होता है तो मैं किसकी सलाह लेता हूँ?
किसका व्यवहार मुझ पर प्रभाव डाल रहा है?
मैं किसके दर्शन साझा करूँ?
उन लोगों के बारे में सोचें जिनके नाम आपने लिखे हैं। उनका चरित्र कैसा है? उनका व्यवहार कैसा है? वे कैसा बोलते हैं? यदि आप उनके उदाहरण का अनुसरण करते हैं, तो क्या आप मसीह का अनुसरण कर रहे हैं? (1 कुरिन्थियों 11:1)। क्या ये वे लोग हैं, जो इन विशेषताओं से चिह्नित हैं:
वे यहोवा का भय मानते हैं (व्यवस्थाविवरण 10:12, 20, भजन संहिता 112:1)।
उन्हें परमेश्वर के वचन द्वारा आकार दिया जा रहा है (यूहन्ना 17:14-17)।
वे हर बात में प्रभु को प्रसन्न करना और उसकी आज्ञा मानना अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाते हैं (2 कुरिन्थियों 5:9-10)।
क्या वे आपको परमेश्वर के साथ करीब से, आज्ञाकारी से चलने के लिए प्रभावित कर रहे हैं? क्या वे आपको बताते हैं कि सत्य क्या है (क्या परमेश्वर के वचन के साथ मेल खाता है), या क्या वे आपको वह बताते हैं, जो सुनने में आसान है? क्या वे आपको वह करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जो आप करना चाहते हैं, या क्या वे आपको वह करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जो परमेश्वर की दृष्टि में सही है, भले ही वह कठिन हो?
एक बार एक युवक था, जो प्रभावशाली था। अन्य युवा अपने व्यवहार की सहमति के लिए उसकी ओर देखते थे। जब उन्होंने कुछ व्यंग्यात्मक या भद्दा कहा, तो उन्होंने उसकी ओर देखा, यह देखने के लिए कि क्या वह मुस्कुरा रहा है। जब वे कुछ विद्रोह करते थे, तो वे यह देखने के लिए देखते थे कि क्या वह आँख झपकाकर अपनी सहमति जताएगा। वे उसे प्रसन्न करना चाहते थे। लेकिन उनमें से कोई भी इन सवालों पर विचार करने के लिए नहीं रुका: मुझे उसकी सहमति क्यों चाहिए? क्या वह ऐसा व्यक्ति है, जिसे मुझे खुश करने की कोशिश करनी चाहिए? क्या उसका चरित्र और व्यवहार मेरे लिए अच्छा आदर्श है?
इन मुद्दों पर सोचने के लिए प्रयास करना पड़ता है। विश्वासियों को उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए कि वे किसे अपने सबसे करीबी दोस्त और सबसे बड़े प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में चुनते हैं। निःसंदेह, परमेश्वर चाहता है कि उसके लोग उन लोगों को प्रभावित करें जो आत्मिक रूप से अपरिपक्व हैं या जो अभी भी अविश्वासी हैं, लेकिन वे लोग हमारे सबसे करीब के साथी, सलाहकार और प्रभावशाली व्यक्ति बनने के योग्य नहीं हैं। हमें उनकी सहमति नहीं मांगनी चाहिए।
► एक विद्यार्थी को समूह के लिए भजन संहिता 101 पढ़ना चाहिए।
यह भजन संहिता राजा दाऊद द्वारा लिखा गया था। वह यहोवा का भय मानता था। उसने प्रभु को वचन दिया कि वह ईमानदारी का जीवन जीएगा। वह जानता था कि जिन लोगों को उसने अपने ऊपर प्रभाव डालने की अनुमति दी है, वे या तो उसे उस वादे को पूरा करने में मदद करेंगे या उसे उससे दूर रखेंगे। इस वजह से, उसने केवल वफादार, भक्त लोगों को ही अपने ऊपर प्रभाव डालने वालों के रूप में चुनने का निश्चय किया।
हम दाऊद की तरह राजा नहीं हैं और आमतौर पर हमारे पास दुष्टों को सज़ा देने का अधिकार या जिम्मेदारी नहीं है, जैसा कि दाऊद ने करने का वादा किया था। फिर भी, हमें अन्य तरीकों से दाऊद के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए। हमें ईमानदारी से जीवन जीने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। हमें यह निर्धारित करना चाहिए कि हम केवल परमेश्वर के लोगों को ही अपने सबसे करीबी दोस्त और सबसे बड़े प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में चुनेंगे।
निर्णय लेना
प्रारंभिक वयस्कता कई निर्णय लेने का समय है, जिनमें से कुछ के आजीवन (या यहाँ तक कि अनन्त) के परिणाम होंगे।[1] निम्नलिखित कुछ प्रश्न हैं, जिन्हें हमें अपनी पसंद पर विचार करते समय ध्यान में रखने चाहिए:
क्या यह क्रिया उसके अनुरूप है, जो परमेश्वर मुझे बनाना चाहता है? समाज हमें बताता है, "हम अपने आप में बनें रहें।" "अपने प्रति ईमानदार रहें।" "अपने दिल की सुनें।" लेकिन हमें मसीह के प्रति सच्चा होने के लिए बुलाया गया है, खुद के प्रति नहीं। वास्तव में, वह हमें अपनी इच्छाओं को "नहीं" कहने के लिए कहता है, जब वे उसकी आज्ञाकारिता के साथ टकराव में हों (मत्ती 16:24-26)। परमेश्वर हमें अपनी धार्मिकता के मानक के अनुसार जीने के लिए कहता है। वह उन लोगों का वर्णन करता है, जो धन्य होंगे, जो उससे डरते हैं और हर बात में उसकी आज्ञा मानते हैं (भजन संहिता 15, भजन संहिता 112, मत्ती 5:3-11)। जैसे-जैसे हम ईमानदारी से उसका अनुसरण करते हैं, हम वैसे लोग बन जाते हैं, जैसा परमेश्वर चाहता है कि हम बनें।
इस कार्य से मेरी प्रतिष्ठा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? हम जो भी चुनाव करते हैं, उससे हम अपनी प्रतिष्ठा बनाते हैं (नीतिवचन 20:11)। यह सच है कि हमें सबसे ज़्यादा इस बात की परवाह करनी चाहिए कि परमेश्वर हमारे बारे में क्या सोचता है। लेकिन जब हम ईमानदार लोगों के रूप में जाने जाते हैं, तो हम दूसरों को सही के लिए प्रभावित करते हैं और मसीह के लिए विश्वसनीय गवाह बन जाते हैं। नीतिवचन 22:1 हमें बताता है कि हमें भौतिक धन की बजाय अच्छी प्रतिष्ठा को प्राथमिकता देनी चाहिए।
इस चुनाव के क्या परिणाम होंगे? नीतिवचन 22:3 हमें दिखाता है कि हमें आज अच्छे चुनाव कर के भविष्य के लिए तैयारी करनी चाहिए। जब हम अपने चुनाव के बारे में सोच रहे हैं, तो हमें प्रत्येक के परिणामों पर विचार करना चाहिए। हमारी पसंद का हमारे अपने जीवन और दूसरों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
नीतिवचन 4:23 हमें बताता है कि हमारा चुनाव और व्यवहार हमारे हृदय की प्रेरणाओं से आता है। यदि हम अच्छे चुनाव करना चाहते हैं, जो परमेश्वर को प्रसन्न करें, तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम उसके प्रति वफादार रहें (व्यवस्थाविवरण 6:2, 5-6, व्यवस्थाविवरण 13:4)।
[1]इस विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए, Shepherds Global Classroom से उपलब्ध व्यावहारिक मसीही जीवन का पाठ 5 देखें। ।
शारीरिक स्वास्थ्य
युवा वयस्क व्यक्तिगत् चुनाव के लिए जिम्मेदार होते हैं, जिसमें वे क्या खाते हैं, उनकी शारीरिक गतिविधि और व्यायाम दिनचर्या और नींद की आदतें शामिल हैं। इन सभी क्षेत्रों में आत्म-नियंत्रण महत्वपूर्ण है (1 कुरिन्थियों 9:27)। विश्वासियों को याद रखना चाहिए कि उनका शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर हैं और उन्हें मसीह के लहू से छुटकारा मिला है (1 कुरिन्थियों 6:19-20)। क्योंकि हम भी परमेश्वर के सेवक हैं, हमें अपने शरीर का ख्याल रखना चाहिए और इनमें से प्रत्येक गतिविधि में अच्छे चुनाव के लिए खुद को अनुशासित करना चाहिए, ताकि हम उसके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिखा सकें।[1]
► छात्रों को समूह के लिए 1 कुरिन्थियों 6:12-13, 19-20, और 1 कुरिन्थियों 10:31 पढ़ना चाहिए।
पिछले सप्ताह अपने भोजन के चुनाव और भागों के बारे में सोचें। हो सकता है कि आपने भरपूर मात्रा में भोजन किया हो, आप क्या खा सकते हैं, इसके लिए कई चुनाव आपके पास हो सकते हैं। हो सकता है कि आपके पास खाने के लिए बहुत कम हो, चुनाव भी कम हों। किसी भी तरह, आपके खान-पान से परमेश्वर की महिमा होनी चाहिए। यदि यीशु को आपके साथ बैठकर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया जाना संभव होता, तो क्या आप वही भोजन और भाग चुनेंगे जो आप आमतौर पर चुनते हैं? यह एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न हो सकता है, लेकिन शायद यह भोजन करते समय विचारशील, आभारी और आत्म-नियंत्रित रहने की याद दिलाता है।
नींद एक और क्षेत्र है, जिसमें विश्वासियों को आत्म-नियंत्रण दिखाना चाहिए। हमें आलसी नहीं होना चाहिए और बहुत अधिक सोना नहीं चाहिए (नीतिवचन 6:10-11, नीतिवचन 20:13), फिर भी परमेश्वर ने हमारे शरीर को नियमित और पर्याप्त आराम की आवश्यकता के लिए बनाया है (भजन संहिता 3:5)। स्वस्थ वयस्कों को आमतौर पर हर रात 6-8 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है।
सभोपदेशक 5:12 हमें बताती है कि नींद उन लोगों का प्रतिफल है जो परिश्रम करते हैं। नीतिवचन 3:24 और भजन संहिता 4:8 मीठी, शांतिपूर्ण नींद की बात करता हैं, जो परमेश्वर अपनी सन्तान को देता हैं। यह नींद का वह प्रकार है, जो हमारे शरीर को तरोताज़ा करता है। परमेश्वर की शांति से, हम दिन भर की चिंताओं से यह जानते हुए मुक्त हो जाते हैं, कि एक विश्वासयोग्य परमेश्वर हमें देख रहा है। आरामदायक नींद शरीर और दिमाग को स्फूर्ति प्रदान करती है, हमें आगे की गतिविधियाँ और सेवकाई के लिए तैयार करती है।
नीतिवचन की पुस्तक के एक भाग में नीतिवचन 3:24 आयत पाई जाती है, जिसमें ज्ञान, समझ और विवेक से भरा हुआ जीवन जीने के निर्देश शामिल हैं। यदि आप मीठी नींद चाहते हैं, तो आपको अपने जीवन के दूसरे क्षेत्रों में बुद्धिमानी से चुनाव करना चाहिए, जिसमें आप टेलीविजन या फिल्में देखने, इंटरनेट चलाना या स्मार्टफोन का उपयोग करने और दोस्तों के साथ कितना समय बिताते हैं।
नींद इस बात से प्रभावित हो सकती है कि आपने दिन भर में कितना भोजन किया और कितना खाया, आपने कितना व्यायाम किया, किसी कठिन परिस्थिति को कैसे संभाला, या आपने अपना पैसा कैसे खर्च किया। नींद तब मीठी हो सकती है जब दूसरों के साथ हमारे रिश्ते गलातियों 5:22-23 में सूचीबद्ध आत्मा के फल की विशेषताओं से भरे हों।
► उपरोक्त पवित्र शास्त्र की आयतों को पढ़ने के लिए समय निकालें। इन आयतों में दिए गए सिद्धांतों के अनुसार अपनी नींद का मूल्यांकन करें। क्या आप अपने शरीर को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ठीक से काम करने के लिए आवश्यक आराम दे रहे हैं? भजन संहिता की आयतों के संदर्भ पर ध्यान दें: दाऊद बहुत तनावपूर्ण स्थिति में लिख रहा है और फिर भी वह नींद के माध्यम से अपने शरीर को बहाल करने में मदद करने में परमेश्वर की विश्वासयोग्यता की गवाही देता है।
[1]इस विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए, Shepherds Global Classroom से उपलब्ध व्यावहारिक मसीही जीवन का पाठ 13 देखें। ।
तनाव से निपटना
परमेश्वर की योजना के अनुसार, वयस्क के शुरुआती वर्ष कई ज़िम्मेदारियों और देखभाल से भरे होते हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है और तनाव पैदा होता है (विलापगीत 3:27)। हो सकता है कि एक व्यक्ति शिक्षा पूरी करने, व्यवसाय शुरू करने और नौकरी या कई नौकरियाँ करने का प्रयास कर रहा हो। ऐसे कई रिश्ते हैं, जिन पर एक युवा वयस्क को जानबूझकर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। वित्त, परिवहन ज़रूरतें और घर सभी पर ध्यान देने की ज़रूरत है, लेकिन ये तनाव का कारण बनते हैं।
तनाव को "उन घटनाओं के प्रति शारीरिक और भावनात्मक प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है जो हमें धमकी या चुनौती देती हैं।"[1] इस बारे में सोचें कि आप अपनी परिस्थितियों को कैसे देखते हैं। आप जिस स्थिति का अनुभव कर रहे हैं उससे मानसिक रूप से कैसे निपटते हैं?
जब कोई चीज़ आपके भविष्य में होती है, तो आप उसके बारे में कैसे सोचते हैं? संभावनाओं के बारे में आप स्वयं को किन भावनाओं को महसूस करने की अनुमति देते हैं? कौन सा दृष्टिकोण इस बात को प्रभावित करता है कि आप उस स्थिति से कैसे निपटेंगे? आपका सामान्य स्वभाव और व्यक्तित्व क्या है (नीतिवचन 15:15)?
आपका दृष्टिकोण, स्वभाव और व्यक्तित्व सभी प्रभावित करता हैं कि आप जीवन की स्थितियों पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और आप किस स्तर के तनाव का अनुभव करेंगे। जबकि तनाव जीवन का एक सामान्य हिस्सा है, आप तनाव को कैसे संभालते हैं, यह एक व्यक्तिगत् मामला है। चिंता कभी-कभी सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, बीमारी, उच्च रक्तचाप, अल्सर और कई अन्य मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक विकलांगताओं का कारण बनती है (नीतिवचन 12:25)। तनाव के प्रति एक बुरी प्रतिक्रिया मसीह के प्रति आपकी सेवा में बहुत बाधा डाल सकती है। इस वजह से, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि परमेश्वर का वचन हमें चिंता न करने या परेशान न होने के लिए कहता है।
► छात्रों को समूह के लिए मत्ती 6:34, 1 पतरस 5:7, और भजन संहिता 105:4 पढ़ना चाहिए।
जब हम भारी परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो हमें परमेश्वर पर भरोसा करना और उस पर निर्भर रहने का चुनाव करना है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। वह बल, बुद्धि और भलाई में परिपूर्ण है। वह अपनी सन्तान की पूरी तरह से देखभाल करता है। वह चाहता है कि हम उस पर अपनी निर्भरता का एहसास करें, हर चिंता उस तक पहुँचाएँ और उसके बल को खोजें। जैसा हम करते हैं, वह हमें शांति, आराम और वह सब कुछ दे सकता है, जिसकी हमें ज़रूरत है। अपनी युवावस्था में, हमें परमेश्वर के समक्ष स्थिरता बनाए रखनी सीखनी चाहिए और उसके नेतृत्व करने की प्रतीक्षा करनी चाहिए (भजन संहिता 46:10, विलापगीत 3:25-27)।
▶ उन तनावपूर्ण स्थितियों की सूची बनाएँ जिनका आप अभी अनुभव कर रहे हैं। परमेश्वर के वचन के आधार पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए?
▶ इस पाठ में, आपके लिए कौन से विचार या सिद्धांत नए थे? आपने बाइबल के अन्य किन सिद्धांतों के बारे में सोचा है, जो युवा वयस्क के जीवन के इन क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं?
▶ इस पाठ में आपने जो पढ़ा है उससे आपका व्यक्तिगत जीवन किस प्रकार प्रभावित होगा?
▶ आपकी कलीसिया में, युवा वयस्क विश्वासियों के बीच इनमें से किस विषय पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है?
▶ आप उन मसीही युवा वयस्कों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, जिन्हें आप जीवन के इन क्षेत्रों में बाइबल के अनुसार सोचने और व्यवहार करने के लिए जानते हैं?
प्रार्थना
हे स्वर्गीय पिता,
धन्यवाद कि आपका वचन हमें सिखाता है कि जीवन के हर चरण में आपके लिए कैसे जीना है। हमारे युवा वयस्क की उमर में फलदायी और उत्पादक जीवन जीने के लिए हमें तैयार करने के लिए धन्यवाद।
आपके द्वारा हमें दी गई सामर्थ्य, संसाधनों और अवसरों के विश्वासयोग्य प्रबंधक बनकर आपकी महिमा करने में हमारी सहायता करें। दूसरों पर मसीही प्रभाव डालने और मसीही मित्रों और सलाहकारों को चुनने में हमारी सहायता करें।
हम बुद्धिमानीपूर्ण निर्णय लें और अपने शरीर, मन और आत्मा से आपका सम्मान करते रहें।
आमीन
पाठ सम्बन्धी नियत कार्य
(1) 1 तीमुथियुस 4:12 में, पौलुस ने तीमुथियुस को विशेष क्षेत्रों में एक उदाहरण बनने का निर्देश दिया। इनमें से हर एक क्षेत्र, को लिखित रूप में परिभाषित करें। फिर वर्णन करें कि इनमें से हर एक युवा वयस्क के जीवन में कैसे जिया जा सकता है। हर एक के लिए कम से कम एक व्यावहारिक उदाहरण दीजिए।
(2) इस पाठ में से कोई एक विषय चुनें:
परिपक्वता और चरित्र
कार्य
वित्त
करीबी दोस्त
निर्णय लेना
शारीरिक स्वास्थ्य
तनाव
अपने चुने हुए विषय के बारे में कम से कम तीन अनुच्छेद लिखें:
उस विषय से सम्बन्धित बाइबल सिद्धांतों का सारांश प्रस्तुत करें।
उन सिद्धांतों का पालन करने से आने वाले कुछ सकारात्मक परिणामों की व्याख्या करें।
इन सिद्धांतों को नजरअंदाज करने पर आने वाले कुछ नकारात्मक परिणामों का वर्णन करें।
जब आप सकारात्मक और नकारात्मक परिणामों के बारे में लिख रहे हों, तो किसी व्यक्ति की पसंद के विभिन्न लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अवश्य सोचें: वह व्यक्ति, उनका परिवार, उनका समुदाय और उनका चर्च।
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