डॉ. रॉबर्टसन मैकक्विल्किन ने 12 वर्षों तक जापान में एक मिशनरी के रूप में कार्य किया। बाद में वह कोलम्बिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष बने। वह एक लेखक, वक्ता और शिक्षक के रूप में प्रख्यात थे। उनकी पत्नी म्यूरियल एक ऐसे मस्तिष्क रोग से पीड़ित थीं, जो व्यक्ति की सोचने, याद रखने और संवाद करने की क्षमता को प्रभावित करता है। जब बीमारी इतनी बढ़ गई कि म्यूरियल की निरन्तर देखभाल की आवश्यकता पड़ने लगी, तब डॉ. मैकक्विलकिन ने अपनी पत्नी की देखभाल के लिए विश्वविद्यालय के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि वह उस प्रतिज्ञा को निभा रहे हैं, जो उन्होंने विवाह के समय उनसे की थी। उनका मानना था कि अपनी पत्नी की देखभाल करना विश्वविद्यालय के अध्यक्ष पद पर बने रहने से अधिक महत्वपूर्ण है।
परमेश्वर द्वारा विवाह की स्थापना
परमेश्वर ने विवाह की स्थापना उस पहले पुरुष और स्त्री के लिए की थी, जिन्हें उसने बनाया था। विवाह को परमेश्वर ने ठीक वैसा ही बनाया था, जिसकी लोगों को आवश्यकता थी। इसे ठीक मानव स्वभाव के लिए बनाया गया था। हर उस वस्तु में जिसे परमेश्वर ने रचा है और हर उस बात में जिसकी वह माँग करता है, वह सदा हमारे लिए सबसे उत्तम ही चाहता है (व्यवस्थाविवरण 6:24)। परमेश्वर की मंशा था कि विवाह के लिए उसकी योजना प्रत्येक पति-पत्नी को सर्वोत्तम भावनात्मक, सम्बन्धपरक और आत्मिक कल्याण प्रदान करे।
परमेश्वर ने कहा कि विवाह में एक पुरुष और स्त्री अपने माता-पिता को छोड़कर एक साथ मिले रहेंगे। विवाह दो लोगों को एक ऐसी मित्रता और साझेदारी में बाँधता है, जो किसी भी अन्य मानवीय सम्बन्ध से अधिक मजबूत और घनिष्ठ होती है। विवाह केवल दो लोगों का एक सीमित भागीदारी में एक साथ होना नहीं है। उनके जीवन को इस तरह मिला दिया गया है कि एक रीति से वे एक ही व्यक्ति के समान बन गए हैं। यह उनके व्यक्तिगत् व्यक्तित्व का नष्ट होना नहीं, बल्कि एक विशेष एकता है।
बाइबल आधारित विवाह
बाइबल आधारित विवाह एक सुन्दर चीज है। परन्तु जो दम्पत्ति इसकी सुन्दरता का अनुभव करना चाहते हैं और इसकी भलाइयों का स्वाद लेना चाहते हैं, उन्हें इस बात की जाँच करनी चाहिए कि पवित्रशास्त्र इसके बारे में क्या सिखाता है, और फिर वे जो सीखते हैं, उन्हें उसका पालन करना चाहिए। एक संतोषजनक विवाह के लिए प्रयास और बलिदान की आवश्यकता पड़ती है।
बाइबल आधारित विवाह संगति के लिए है
उत्पत्ति परमेश्वर द्वारा विवाह की सृष्टि का वर्णन करती है। उस वृत्तान्त का प्रत्येक भाग विवाह को गरिमा प्रदान करता है।
तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, "मनुष्य का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उससे मेल खाए” (उत्पत्ति 2:18)।
जिस प्रकार परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा संगति में हैं, उसी प्रकार परमेश्वर ने हमें सामाजिक होने के लिए रचा है। हम बातचीत के लिए बने हैं। हम घनिष्ठता और संगति के लिए बनाए गए हैं। परमेश्वर ने कहा कि अकेले रहना अच्छा नहीं है!
परमेश्वर ने आदम की एक पसली ली और उसे लेकर एक सुन्दर स्त्री में बदल दिया, एक और व्यक्ति—जो परमेश्वर के स्वरूप में समान रूप से बनाया गया, मूल्य में समान, परन्तु रचना में भिन्न—जिसने आदम को पूरा किया। स्त्री को “सृष्टिकर्ता के अन्तिम और सबसे सिद्ध कार्य के रूप में मनुष्य के लिए विशेष सम्मान के साथ उसके पास लाया जाता है।”[1]
विवाह एक आनन्दमयी मिलन होना चाहिए।
जब आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी है” (उत्पत्ति 2:23) तो वह सम्मान और प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था। आदम ने यह नहीं कहा, “आखिरकार, एक गुलाम! अब मेरे पास मेरे कपड़े धोने, मेरा खाना पकाने, मेरी पीठ की मालिश करने और मेरे काम करने के लिए कोई है!” नहीं, आदम ने कहा, “आखिरकार, एक ऐसा सहायक जो मुझे पूरा करता है!”
विवाह समान लोगों का मिलन होना चाहिए।
… एक सहायक बनाऊँगा जो उससे मेल खाए (उत्पत्ति 2:18)।
परमेश्वर ने स्त्री को पुरुष से पूरी तरह मेल खाने और उसे पूरा करने के लिए बनाया है।
मैथ्यू हेनरी हमें याद दिलाते हैं, “स्त्री आदम की बगल की पसली से बनी थी; न तो उसके सिर से कि उस पर प्रभुता करे, और न उसके पैरों से कि उसे रौंदा जाये, परन्तु उसे उसकी पसली से इसलिये बनाया गया है कि वह उसके समान हो, कि उसकी बाँह के नीचे सुरक्षित रहे, और उसके हृदय कि उसकी प्रिय बन जाये।” [2] स्त्री न तो पुरुष से नीची थी और न ही श्रेष्ठ, बल्कि उसके तुलनीय थी।
विवाह एक वाचा का मिलन होना चाहिए।
इस कारण पुरुष अपने माता–पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे एक ही तन बने रहेंगे। (उत्पत्ति 2:24)
मजबूत विवाह निरन्तर प्रेमी भावनाओं (भावनाएँ स्थिर नहीं होती हैं), या खुशी, (हालाँकि स्वस्थ विवाह आनन्द लाते हैं), या व्यक्तिगत् सुख (हालाँकि मजबूत विवाह सुखद होते हैं) पर निर्भर नहीं होते हैं। विवाह के अद्भुत लाभ विवाह को मजबूत नहीं बनाते; वे एक मजबूत विवाह का परिणाम होते हैं। विवाह की वाचा अटल नींव पर स्थापित होती है—यानी एक पुरुष और एक महिला जो जीवन भर एक-दूसरे के लिए विशेष रूप से प्रतिबद्ध होते हैं।
विवाह एक पारदर्शी, भरोसेमंद, स्वीकार करने वाला सम्बन्ध है - “और आदम और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे, पर लजाते न थे” (उत्पत्ति 2:25)। क्योंकि पाप ने अभी तक पहले जोड़े की निर्दोषता को भ्रष्ट नहीं किया था, उनका विवाह दोषरहित, लज्जारहित और भयरहित था। नया नियम हमें बताता है, “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और विवाह का बिछौना निष्कलंक रहे” (इब्रानियों 13:4)।
जहाँ असुरक्षा, अविश्वास, संदेह या भय हो, जहाँ पति-पत्नी विवाह के प्रति एक-दूसरे की प्रतिबद्धता के बारे में आश्वस्त न हों, वहाँ एक मजबूत विवाह का अस्तित्व नहीं होता है। मजबूत विवाहों के लिए एक प्रतिज्ञा की आवश्यकता होती है, जिसका अंत केवल तब होता है, जब एक पति या पत्नी की मृत्यु हो जाती है (रोमियों 7:1-2)।
परमेश्वर की मंशा यह है कि विवाह एक पुरुष और एक स्त्री के बीच आजीवन वाचा बने (मत्ती 19:3-6)। पौलुस ने कहा यदि विश्वासियों के अविश्वासी जीवन साथी उनसे अलग हो जाएँ तो वे किसी बन्धन में नहीं हैं(1 कुरिन्थियों 7:15), परन्तु एक विश्वासी को अविश्वासी जीवनसाथी से अलग होने का प्रयास नहीं करना चाहिए (1 कुरिन्थियों 7:12-14, 16)। पौलुस ने पहले लिखा था कि प्रभु ने भी यही कहा था: विश्वासियों को अपने जीवनसाथी को छोड़ने/अलग होने का विकल्प नहीं चुनना चाहिए, परन्तु यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें किसी और से विवाह नहीं करनी चाहिए (1 कुरिन्थियों 7:10-11, मत्ती 5:31-32, मत्ती 19:9)।
सम्बन्ध कठिन होने पर भी वाचा का प्रेम स्वयं को देने वाला, सम्मानजनक और सुन्दर होता है (1 कुरिन्थियों 13)। कमजोर प्रतिबद्धता अस्थायी प्रयास, भावनात्मक अलगाव, मन का भटकाव और परीक्षा को लाती है।
एक पति तब वाचा के प्रेम को जीता जब वह अपनी दुल्हन को तब भी नहीं छोड़ता जब वह गैरज़िम्मेदार या अपमानजनक या बीमार होती है। एक पत्नी वाचा के प्रेम को तब जीती है, जब वह मसीह के लिए अपने पति का सम्मान करना और उसकी आज्ञा का पालन करने का चुनाव है, तब भी जब उसका पति उससे प्रेम न करता हो।
उसका प्रेम पत्नी के सम्मान को जीतता है, और उसका सम्मान पति के प्रेम को जीतता है। और वे निरन्तर बढ़ते रहते हैं!
► यदि लोग यह सोचकर विवाह करते हैं कि यदि वे विवाह से अप्रसन्न हैं, तो बाद में वे अपना निर्णय बदल सकते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होंगी? जब कोई व्यक्ति यह मानता है कि उसका विवाह स्थायी है, तो पूर्ण प्रतिबद्धता से क्या फर्क पड़ता है?
बाइबल आधारित विवाह यौन संतुष्टि और प्रजनन का स्थान है
परमेश्वर ने यौन सम्बन्धों को पूरी तरह से आनन्ददायक और अनोखे रूप से शक्तिशाली बनाया है। ये शारीरिक, भावनात्मक और आत्मिक रूप से एकता लाने का एक कार्य होते हैं। एक स्वस्थ यौन जीवन न केवल आनन्ददायक होता है और एकता लाता है, बल्कि यह विवाह सम्बन्ध को सुखद भी बनाता है। जो लोग बाइबल की यौन नैतिकता का पालन करना चाहते हैं, उनके लिए यौन सम्बन्ध परमेश्वर का दिया हुआ एक उपहार है, जिसका विवाह के दौरान पूरी तरह से आनन्द लिया जा सकता है।[3]
► छात्रों को समूह के लिए 1 कुरिन्थियों 7:1-5 और इब्रानियों 13:4 पढ़ना चाहिए।
1 कुरिन्थियों की आयतें हमें बताती हैं कि विवाह का एक उद्देश्य यौन इच्छाओं को तृप्त करना है। पति-पत्नी ने स्वयं को एक-दूसरे को सौंप दिया है और अपने शरीर पर स्वामित्व का दावा छोड़ दिया है। इसका अर्थ यह है कि एक विवाहित व्यक्ति को केवल अपनी इच्छानुसार यौन सम्बन्ध बनाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, बल्कि उसे अपने जीवनसाथी की इच्छाओं के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए। ये आयतें हमें यह नहीं बतातीं कि कोई व्यक्ति जीवनसाथी की इच्छा के विरुद्ध संतुष्टि की मांग कर सकता है कि नहीं। इसके बजाय, ये आयतें प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होने के लिए कहती हैं।
यह परिच्छेद हमें बताता है कि विवाहित लोगों को एक-दूसरे को इस सौभाग्य से वंचित नहीं करना चाहिए। उपवास के साथ-साथ थोड़े समय के लिए यौन संयम उचित है, परन्तु लम्बे समय तक अलगाव अतृप्त इच्छाओं के कारण परीक्षा का कारण बनेगा। कभी-कभी दंपत्ति कई महीनों या उससे अधिक समय तक अलग रहने का चुनाव करते, क्योंकि उनमें से कोई किस दूर के स्थान पर काम करने या अध्ययन करने चला जाता है। ऐसा निर्णय लेने से पहले, उन्हें विचार करना चाहिए कि ऐसी योजना परमेश्वर की योजना से मेल खाती है या नहीं। लम्बे समय तक अलगाव के कारण उन्हें परेशानी हो सकती है।
कुछ लोगों को ऐसी जीवनशैली जीना अच्छा लगता है, जिसमें बच्चे शामिल नहीं हैं, परन्तु बाइबल सिखाती है कि जब माता-पिता के बच्चे भी भक्ति करने वाले होते हैं, तो परमेश्वर इससे प्रसन्न होता (मलाकी 2:15)। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर केवल प्रजनन नहीं चाहता, बल्कि भक्ति करने वाली सन्तान चाहता है। परमेश्वर ने माता-पिता को अपने बच्चों को मसीह का अनुसरण करना सिखाने के लिए बुलाया है।
बाइबल आधारित विवाह यीशु मसीह के लिए है
► छात्रों को समूह के लिए 1 पतरस 3:1-7 और इफिसियों 5:22-33 पढ़ना चाहिए। समूह को इस चर्चा के दौरान इन परिच्छेदों को जाँच के लिए खुला रखना चाहिए।
इफिसियों 5:30-32 में, पवित्र आत्मा विवाह के गहरे अर्थ को प्रकट करता है, जो यीशु के आने तक छिपा हुआ था। विवाह एक सांसारिक चित्र है—यानी यीशु मसीह और उसकी कलीसिया के बीच के सम्बन्ध का—एक प्रतिबिम्ब है।
इस खण्ड की शुरुआत पौलुस ने विश्वासियों को आत्मा से परिपूर्ण होने के लिए प्रोत्साहित करते हुए की थी (इफिसियों 5:18)। इसी सन्दर्भ में उसने विवाह पर निम्नलिखित निर्देश दिए हैं।
आत्मा से भरी दुल्हन प्रभु में अपने दूल्हे (उसका “सिर”) के वैसे ही अधीन रहेगी, जैसे विश्वासी यीशु के अधीन रहते हैं (इफिसियों 5:24, 32; 1 पतरस 3:1 को भी देखें)। इस तरह वह यीशु और अपने पति के प्रति सम्मान दिखाती है। पत्नी से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पति की अगुवाई को स्वीकार करे भले ही पति विश्वासी न हो। यदि वह ऐसा करती है, तो उसके उद्धार न पाए हुए पति के विश्वासी बनने की अधिक सम्भावना होती है।
प्रत्येक पत्नी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी अधीनता में प्रभु पर ध्यान रखे। वह केवल परमेश्वर के लिए ही अधीन रहती है, न कि केवल अपने पति के लिए। उसकी दृष्टि यीशु पर है, केवल वही निष्कलंक है। एक पत्नी का अपने पति के प्रति स्वेच्छा से समर्पण करना यीशु की आराधना का एक कार्य है।
प्रेम के समान, बाइबल आधारित समर्पण को ज़बरदस्ती नहीं थोपा जा सकता। बाइबल आधारित समर्पण एक उपहार है जिसे पत्नियाँ अपने पतियों को मसीह के प्रति भक्तिभाव के कारण देती हैं (इफिसियों 5:33)। हर बात में समर्पण यीशु की आराधना का एक कार्य है।[4]
आत्मा से भरे जीवन के एक भाग के रूप में (इफिसियों 5:18-21), एक पत्नी का अपने पति के अधीन रहना उसके लिए आदर से भरा कार्य है (इफिसियों 5:33)। नम्र और शान्त मन मिलने वाला यह आदर परमेश्वर की दृष्टि में अत्याधिक अनमोल है (1 पतरस 3:4)।
आत्मा से भरा हुआ दूल्हा अपनी दुल्हन से वैसे ही प्रेम करेगा जैसे यीशु अपने कलीसिया से प्रेम करता है (इफिसियों 5:25)। दूल्हे को उससे वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे वह अपने शरीर से करता है (इफिसियों 5:28-29)। उसे उसी आत्मा से भरे आत्म-बलिदान को प्रकट करना चाहिए जैसा कि यीशु ने अपनी कलीसिया के प्रति तब प्रकट किया था, जब उसने उसके लिए स्वयं को दे दिया। यह उसका परमेश्वर के अधीन रहने का कार्य है (इफिसियों 5:21)। एक टीकाकार ने इसे इस प्रकार कहा है:
जैसे उसने (यीशु ने) कलीसिया को बचाने के लिए स्वयं को क्रूस पर दुःख भोगने के लिए दे दिया, वैसे ही हमें स्वयं का इनकार और[कड़ा परिश्रम और कठिनाइयों] को सहन करने के लिए तैयार रहना चाहिए, ताकि हम अपनी पत्नी की खुशी को बढ़ावा दे सकें। पति का कर्तव्य है कि वह उसके भरण-पोषण के लिए पूरी लगन से काम करे; यानी उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए; बीमारी में उसकी देखभाल करने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो स्वयं को आराम और सहजता से वंचित करे; खतरे में उसकी रक्षा करे; यदि वह[खतरनाक स्थिति] में है, तो उसका बचाव करे; जब वह चिड़चिड़ी हो तो उसकी सह ले; जब वह उसे दूर कर रही हो तो उससे चिपक जाए; जब वह आत्मिक संकट में हो तो उसके साथ प्रार्थना करे; और उसे बचाने के लिए मरने के लिए तैयार रहे। ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए? यदि उनका जहाज़ टूट गया है, और एक ही तख्ता है, जिस पर सुरक्षित रहा जा सकता है, तो क्या उसे अपनी पत्नी को उस पर बिठाने के लिए तैयार नहीं होना चाहिए, कि वह उसे सभी खतरों से सुरक्षित देख सके? परन्तु और भी बहुत कुछ है… एक पति को यह एहसास होना चाहिए कि उसकी पत्नी के उद्धार की खोज करना उसके जीवन का एक बड़ा उद्देश्य होना चाहिए। उसे अपनी पत्नी को वह सब प्रदान करना चाहिए जिसकी उसे अपनी आत्मा के लिए आवश्यकता हो सकती है... और उसे उदाहरण स्थापित करना है; यदि उसे सम्मति की आवश्यकता हो तो वह उसे सम्मति दे; और वह उसके लिए उद्धार के मार्ग को यथासम्भव आसान बनाए। यदि किसी पति में उद्धारकर्ता की आत्मा और आत्म-त्याग है, तो वह अपने परिवार के उद्धार को बढ़ावा देने के लिए किसी भी बलिदान को बड़ा नहीं समझेगा।[5]
दूल्हे को वैसे ही अपनी दुल्हन की पवित्रता की खोज करनी है, जैसे मसीह ने अपनी दुल्हन, कलीसिया को पवित्र किया था (इफिसियों 5:26-27)।
1 पतरस 3:7 में लिखा है कि एक पति को अपनी पत्नी के साथ समझदारी से रहना चाहिए, यानी उसे समझने का पूरा प्रयास करना चाहिए। उसकी आवश्यकताओं को समझने के लिए उसे उसका अध्ययन करना चाहिए। इस आयत में स्त्री को “निर्बल पात्र” कहा गया है। एक पत्नी को अपने पति के ध्यान की आवश्यकता होती है। उसे न केवल शारीरिक हानि से बल्कि चिन्ता और भावनात्मक तनाव से भी उसकी रक्षा करनी चाहिए।
पति को अपनी पत्नी की उन्नति के लिए जो भी साधन आवश्यक हो वह उपलब्ध करवाना चाहिए जैसे कि: विश्वासयोग्यता, बिना शर्त का प्रेम, समझ, प्रार्थना, सम्मति, शिक्षा और दया।
जब पति अपनी पत्नी के साथ इतना प्रेम से व्यवहार करेगा तो उसे इसका बदला खुशी से मिलेगा। पौलुस ने कहा है कि, “जो अपनी पत्नी से प्रेम करता है वह अपने आप से से प्रेम करता है” (इफिसियों 5:28)। जो पति अपनी पत्नियों से इस स्व-बलिदानी तरीके से प्रेम करते हैं, उन्हें परमेश्वर से कहीं अधिक प्रतिफल मिलता है, और इस बात की सबसे अधिक सम्भावना होती की अपनी पत्नी के सम्मान, स्नेह और विश्वासयोग्यता मिलेगी।
► एक पति को अपनी पत्नी को आत्मिक सहायता प्रदान करने के लिए कौन से विशिष्ट काम करने चाहिए?
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इन आयतों में आज्ञाएँ कैसे दी गई हैं। पति को अपनी पत्नी पर अधिकार जमाने के लिए नहीं कहा गया है। पत्नी को अपने पति की आज्ञा मानने के लिए कहा गया है, परन्तु पति को यह नहीं कहा गया कि वह अपनी आज्ञा मनवाए। उसे अपनी पत्नी से प्रेम करने और उसकी देखभाल के लिए आवश्यक त्याग करने के लिए कहा गया है। इसी तरह, पत्नी को अपने पति से देखभाल की माँग करने के लिए नहीं कहा गया है; उसे उसका सम्मान करने के लिए कहा गया है।
पति की प्राथमिकता अपना दबदबा बनाए रखना नहीं, बल्कि प्रेम से अपनी पत्नी की देखभाल करना होना चाहिए। पत्नी की प्राथमिकता अपने लिए देखभाल की माँग करना नहीं बल्कि अपने पति का सम्मान करना होना चाहिए।
प्रेरित पतरस ने पति को चेतावनी दी है कि यदि वह अपनी पत्नी की ठीक से देखभाल नहीं करेगा तो उसकी प्रार्थनाएँ रुक जाएँगी। पौलुस और पतरस के वचनों से हम देख सकते हैं कि जो व्यक्ति अपनी पत्नी की उतनी परवाह नहीं करता, जितनी उसे करनी चाहिए, वह परमेश्वर से उतना प्रेम नहीं करता जितना उसे करना चाहिए। जो स्त्री अपने पति का आदर नहीं करती, वह परमेश्वर का वैसे आदर नहीं करती, जैसे उसे करना चाहिए। विवाह में हमारा व्यवहार परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध को प्रभावित करता है।
[1]चार्ल्स एलिकोट, एड., अंग्रेज़ी पाठकों के लिए एलिकोट का टीका (Charles Ellicot, ed., Ellicot’s Commentary for English Readers.) (उत्पत्ति 2:22 पर टिप्पणियाँ)। 29 दिसम्बर 2020 को https://biblehub.com/genesis/2-22.htm#commentary से लिया गया।
परमेश्वर ने विवाह को स्थायी होने के लिए बनाया है। विवाह में, एक पुरुष और स्त्री जीवन भर एक-दूसरे के प्रति विश्वासयोग्य रहने की प्रतिज्ञा करते हैं।
बाइबल में फरीसियों से हुई एक बातचीत के दौरान कहे गए, यीशु के वचन दर्ज किए गए हैं।
► एक छात्र को समूह के लिए मत्ती 19:3-8 पढ़ना चाहिए।
यीशु ने कहा कि विवाह के लिए परमेश्वर की मंशा है कि वह स्थायी हो। उसने कहा कि तलाक की व्यवस्था उन लोगों के लिए बनाई गई है, जो परमेश्वर के पीछे नहीं चलते।
ऐसे बहुत से कारण है, जिनसे परमेश्वर ने विवाह को स्थायी होने के लिए बनाया है, उनमें से कुछ के विषय में हमने पिछले सत्र में बात की थी। विवाह के स्थायी होने का एक अन्य कारण बच्चों की खातिर है। विवाह के लिए परमेश्वर की योजना का अनुसरण करने से बच्चों के पालन-पोषण के लिए सर्वोत्तम वातावरण का निर्माण होता है। जब माता-पिता अपने विवाह और परिवार में परमेश्वर के सिद्धान्तों का पालन करके उसका आदर करते हैं, तब वे धर्मी बच्चों का पालन-पोषण करने में सक्षम हो जाते हैं (मलाकी 2:15)।
परमेश्वर ने मनुष्य जीवन को इस रीति से बनाया है कि बच्चों को वयस्क होने में कई वर्ष लगते हैं। इस समय के दौरान, बच्चे सुरक्षा, देखभाल, और प्रशिक्षण के लिए माता-पिता पर निर्भर रहते हैं। यह पशुओं से भिन्न है, जो एक या दो वर्ष में ही परिपक्व हो जाते हैं। लोगों को परिपक्व चरित्र विकसित करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता पड़ती है। परमेश्वर ने परिवार को बच्चों पालन-पोषण करने के साधन के रूप में बनाया है। समाज की बहुत सी समस्या विश्वासयोग्य माता-पिताओं की कमियों वाले परिवारों से आती हैं।
विवाह में लोगों को एक दूसरे के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रतिज्ञा करने की आवश्यकता पड़ती है। हर संस्कृति में ऐसे तरीके और रस्में होती हैं, जो दिखाती हैं कि विवाह एक गम्भीर प्रतिबद्धता है। वह रस्म हमेशा एक पुरुष और स्त्री के सार्वजनिक रूप से यह कहने का तरीका होती हैं कि वे इस अजीवन वादे को कर रहे हैं।
अधिकतर सरकारें विवाहों के ब्यौरे रखती हैं। विवाह के कानून सम्पत्ति के स्वामित्व, बच्चों की अभिरक्षा, और विरासत पर प्रभाव डालते हैं।
यहाँ विवाह की ऐसी शपथों का एक उदाहरण दिया गया है, जिन्हें विवाहों में इस्तेमाल किया जाता है:
मैं तुम्हें अपने विवाहित [पति/पत्नी] के रूप में स्वीकार करता हूँ, मैं आज से लेकर उस दिन तक जब तक कि परमेश्वर के पवित्र विधान के अनुसार मृत्यु हमें अलग न करे भले और बुरे समय में, अमीरी और गरीबी में, बीमारी में और स्वास्थ्य में, तुमसे प्रेम करूँगा और तुम्हें सम्भाले रखूँगा; और इसके लिए मैं अपने आप को तुम्हें सौंपने का वचन देता हूँ।
प्रेम भरी भावनाएँ हमेशा बनी नहीं रहेंगी। एक विवाह ऐसी निजी भावनाओं पर आधारित नहीं हो सकता जो बदल सकती हैं। विवाह की शपथों का अर्थ है कि एक पुरुष और एक स्त्री जब तक जीवन हैं, तब तक वे एक-दूसरे के प्रति विश्वासयोग्य होने की प्रतिज्ञा करते हैं, और यह प्रतिज्ञा की परिस्थिति पर आधारित नहीं है।
विवाह के स्थायित्व के कारण मसीहियों को कभी भी ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए, जिससे यह लगे कि वे सम्बन्ध की समस्याओं के कारण अपने विवाह को समाप्त करने के लिए तैयार हैं। एक व्यक्ति को यह नहीं कहना चाहिए कि, “काश मैंने तुमसे विवाह ही न किया होता,” या “शायद हमें तलाक ले लेना चाहिए।” कई बार ऐसी बातें दूसरे व्यक्ति को मजबूर करके यह दिखाने का प्रयास होता है कि वह वैवाहिक जीवन के विषय को लेकर गम्भीर है। एक व्यक्ति सोचता है कि किसी कठोर बात के कारण दूसरे को अपने साथी को खुश करने लिए अधिक प्रयास करना होगा, परन्तु ऐसा बहुत कम होता है। इसके बजाय, अगला व्यक्ति यह कहने के द्वारा अपना बचाव करता है, “ठीक है, यदि तुम चाहो तो हम तलाक ले सकते हैं।” फिर दोनों यह संकेत करते हैं के वे अपनी निजी इच्छाओं के कारण अपने विवाह को समाप्त करने के लिए तैयार हैं, और सम्बन्ध और भी बिगड़ जाता है।
► एक विवाह की शुरुआत शपथ से क्यों होती है, न कि सिर्फ प्रेम के कथन से?
► क्या एक व्यक्ति यह बताना चाहेगा कि कैसे उसने लाभों की आशा में विवाह किया था, पर उसे एहसास नहीं था कि प्रतिबद्धता आवश्यक है?
विवाह मसीही भागीदारी है
►एक छात्र को समूह के लिए 2 कुरिन्थियों 6:14-18 पढ़ना चाहिए।
ये आयतें बताती हैं कि यदि एक विश्वासी का अविश्वासियों से अधिक निकट सम्बन्ध होता है, तो उसकी प्रतिबद्धता में बाधा आती है। जिस तरह एक विश्वासी शैतान की पूजा करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर पूजा नहीं कर सकता, ठीक उसी तरह वह अविश्वासियों की जीवनशैली और प्राथमिकताओं का अनुसरण नहीं कर सकता। यह चेतावनी व्यावसायिक भागीदारी सहित विभिन्न प्रकार के सम्बन्धों पर भी लागू हो सकती है।
विवाह सबसे निकटतम मानवीय भागीदारी है। एक विश्वासी को किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करने के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए, जो समर्पित विश्वासी नहीं है (1 कुरिन्थियों 7:39)। एक अविश्वासी से विवाह करने वाले विश्वासी को बच्चों के पालन-पोषण और जीवनशैली सम्बन्धी निर्णय लेने में अत्याधिक दुःख और बहुत सी बाधाओं का अनुभव होगा।
यदि पति और पत्नी दोनों ही विश्वासी हैं, पर वे अलग-अलग कलीसियाओं से आते हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनमें महत्वपूर्ण आत्मिक विषयों पर सहमति हो। उन्हें योजना बनानी चाहिए कि वे अपने विवाह के बाद एक ही कलीसिया का हिस्सा होंगे।
ऐसे तरीके जिनसे दम्पत्तियाँ अपने विवाह को मजबूत बना सकते हैं।
(1) उन्हें परमेश्वर की मूल योजना का आनन्द मनाना चाहिए और विवाह के भीतर उनकी अनोखी भूमिकाओं की सराहना करनी चाहिए।
एक पति को याद रखना चाहिए कि उसकी पत्नी परमेश्वर का एक उपहार है, यानी एक सहायक जो उसे पूरा करती है। उसे उसकी सुरक्षा और उसके आत्मिक, भावनात्मक और शारीरिक कल्याण के लिए अपना जीवन देना होगा। उसे उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए और तब भी उससे प्रेम करना चाहिए जब वह सबसे कम योग्य हो, उसे यह एहसास होना चाहिए केवल परमेश्वर ही उसमें उस बदलाव ला सकता है, जिनकी आवश्यकता है। परमेश्वर उसके पति की आज्ञाकारिता और विश्वास का आदर करेगा।
एक पत्नी को परमेश्वर के निर्णय का सम्मान करना चाहिए कि परमेश्वर ने उसके पति को उसका सिर बनाया है, उसे अपने पति का हर सम्भव तरीके से आदर करना चाहिए और उसकी अगुवाई का आदर करना चाहिए। उसे तब भी समर्पण और आदर करने का चुनाव करना चाहिए, जब वह गलतियाँ करता है और आदर के सबसे कम योग्य है, उसे प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्वर उसमें वे बदलाव करेगा जिनकी उसे आवश्यकता है। परमेश्वर एक पत्नी की आज्ञाकारिता और विश्वास का आदर करेगा।
(2) विवाहित दम्पत्तियों को सच्ची आत्मिक और शारीरिक घनिष्ठता विकसित करनी चाहिए।
उन्हें बिना किसी भय, आलोचना, दूसरे से तुलना, शोषण, स्वार्थी लालसा, या अनादर के एक दूसरे को जानने का प्रयास करना चाहिए। उन्हें परमेश्वर और एक-दूसरे के सामने पारदर्शिता और खराई से जीना चाहिए।
(3) विवाहित दम्पत्तियों को उस समय परमेश्वर के अनुग्रह के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए, जब वे पैमाने पर खरे न उतरते हों।
जब आदम और हव्वा पाप में गिर गए और उन्हें लज्जा और पछतावा महसूस हुआ, तब परमेश्वर ने उनकी असफलताओं को दूर करने के लिए अपनी सामर्थ्य प्रकट की। परमेश्वर ने आदम और हव्वा की नग्नता को ढकने हेतु एक वस्त्र बनाने के लिए एक पशु की बलि दी (उत्पत्ति 3:21)। परमेश्वर का यह प्रेमपूर्ण कार्य अनुग्रह और मसीह के द्वारा छुटकारे की परमेश्वर की प्रतिज्ञा की एक तस्वीर था। मसीह हमें क्षमा पाने और बहाल होने में सक्षम बनाता है। मसीह के के द्वारा, विवाहित दम्पत्तियाँ असफल होने के बाद भी बिना किसी लज्जा के घनिष्ठता में लौट सकते हैं।
उपसंहार
विवाह परमेश्वर की सृष्टि है, न कि मनुष्य की। इसलिए हमें निर्देशों के लिए परमेश्वर के पास जाना चाहिए न कि संसार या संस्कृति के पास। केवल वही जानता है कि हमारे विवाहों को मजबूत, स्थायी, और प्रतिफल पाने वाले कैसे बनाना हैं। परन्तु हम पवित्र आत्मा के बिना वह जीवनसाथी कभी नहीं बनेंगे जो कि हमें होना चाहिए।
सामूहिक चर्चा के लिए
► विवाह के बारे में ऐसा कौन सा सच है, जिसे अधिकतर लोग भूल जाते हैं?
► उन सिद्धान्तों की व्याख्या करें जिन्हें कलीसियाओं को विवाहों को मजबूत करने के लिए सिखाना चाहिए। आपके परिवेश में विशेष रूप से किस समझ की कमी है?
प्रार्थना
हे स्वर्गीय पिता,
हमें विवाह का अद्भुत उपहार देने के लिए धन्यवाद। तूने इसे जिस सुन्दर तरीके से बनाया है, उसके लिए धन्यवाद। हमारी सहायता कर कि हम तेरी योजना के अनुसार विवाह का अनुभव करने के लिए आवश्यक वचनबद्धता कर सकें।
उस प्रेम को प्रदर्शित करने में हमारी सहायता कर जो मसीह और कलीसियाओं के बीच के प्रेम के समान है।
हमारी सहायता कर कि हम एक दूसरे के प्रति सम्मान में हमारी संस्कृति की धारणाओं से परे चले जाएँ।
पवित्र आत्मा के उस कार्य के लिए तेरा धन्यवाद जो आनन्दमय, मजबूत सम्बन्धों को सम्भव बनाता है।
आमीन
पाठ सम्बन्धी नियत कार्य
(1) इस पाठ से ऐसे दो सिद्धान्त चुनें जो आपके लिए नए थे। उनमें से प्रत्येक को अपने शब्दों में समझाते हुए एक अनुच्छेद लिखें।
(2) नीचे सूचीबद्ध विषयों में से किसी एक पर एक संक्षिप्त प्रस्तुति तैयार करें। (कक्षा का अगुवा प्रत्येक छात्र को एक विषय सौंपे।) अगली कक्षा की शुरुआत में उस प्रस्तुति को साझा करें।
विवाह में मिलन की परमेश्वर की योजना
विवाह के लिए बाइबल के उद्देश्य
विवाह-में-परमेश्वर प्रदत्त भूमिकाएँ और उन भूमिकाओं को पूरा करने के लिए आत्मा से भरे होने का महत्व
विवाह का स्थायित्व
(3) यदि आप अविवाहित हैं, परन्तु भविष्य में विवाह करने की योजना बना रहे हैं, तो अपने भावी विवाह के लिए परमेश्वर के सिद्धान्तों का पालन करने की प्रतिबद्धता पर दो अनुच्छेद लिखें। यदि आप विवाहित हैं, तो अपने विवाह के लिए परमेश्वर के सिद्धान्तों का पालन करने की प्रतिबद्धता पर दो अनुच्छेद लिखें।
स्त्रियों का सम्मान करना
पाठ 4 को जारी रखने से पहले, कक्षा को परिशिष्ट क का अध्ययन करके उस पर चर्चा करनी चाहिए। यह स्त्रियों के सम्मान की एक संक्षिप्त चर्चा है, जो विवाह और परिवार से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण विषय है।
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