यीशु की आराधना करना, भले ही अविवाहित हों या विवाहित
स्टीफन और सारा यह समझने का प्रयास कर रहे थे कि क्या विवाह उनके लिए परमेश्वर की इच्छा थी। सारा को पता था कि यदि उसने स्टीफन से विवाह किया - जो एक मिशनरी था - तो उसका जीवन कई मायनों में बदल जाएगा। वह एक नए देश में जाएगी, एक नई भाषा सीखेगी और एक नई संस्कृति में ढल जाएगी। वह जानती थी कि वह उन सब बातों को छोड़ देगी जो परिचित और आरामदायक हैं। निराशाएँ और बलिदान होंगे। विवाह न केवल अपने पति के प्रति प्रेम की प्रतिबद्धता होगी, बल्कि यीशु के प्रति विश्वास और प्रेम का कार्य भी होगा।
समय के साथ, स्टीफन और सारा को एहसास हुआ कि वे एक-दूसरे के अनुकूल नहीं हैं और उन्हें विवाह नहीं करना चाहिए। सारा को निराशा हुई। उसने अपनी निराशा के बारे में प्रार्थना की। उसने प्रार्थना की कि परमेश्वर उसके जीवन की इस अवधि के दौरान उसे फलवन्त बनने में उसकी सहायता करे। जब उसने प्रार्थना की, तो उसे एहसास हुआ कि परमेश्वर की इच्छा के प्रति यह समर्पण उतना ही विश्वास और यीशु के प्रति प्रेम का कार्य था, जितना कि विवाह होता।
अविवाहित रहना
इस पाठ्यक्रम में हम विवाह के लिए परमेश्वर की योजना की खोज कर रहे हैं। पवित्रशास्त्र से हम विवाह के लिए परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे में जानते हैं। हम विवाह के लिए परमेश्वर के निर्देशों और हमारे विवाह को मजबूत करने के व्यावहारिक तरीकों पर चर्चा करते हैं। हम विवाह के लिए परमेश्वर की योजना की भलाई देखते हैं।
अधिकतर लोगों के लिए विवाह परमेश्वर की इच्छा है। परन्तु कई लोग विवाह से पहले कई वर्षों तक अविवाहित वयस्क के रूप में जीते हैं। कई बार अविवाहित होने की दशा का यह समय लम्बा होता है। कुछ लोग अपने जीवनसाथी की मृत्यु के बाद या तलाक के बाद अविवाहित होने की एक और अवधि का अनुभव करते हैं। कुछ लोग कभी विवाह नहीं करते।
कोई व्यक्ति इनमें से एक या अधिक कारणों से अविवाहित हो सकता है:
वे विवाहित होने के बजाय अविवाहित रहने के लाभों को प्राथमिकता देते हैं।
वे विवाह को लेकर चिंतित रहते हैं, क्योंकि उन्होंने अच्छे वैवाहिक सम्बन्ध नहीं देखे हैं।
वे फिलहाल शिक्षा या पेशे जैसे लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
उन्हें विवाह की कोई भावनात्मक या शारीरिक आवश्यकता महसूस नहीं होती।
उन्हें अच्छे विवाह का अवसर नहीं मिला है।
चूँकि एक अकेले व्यक्ति का चुनाव परमेश्वर और दूसरों के साथ सम्बन्धों को अत्याधिक प्रभावित करती है, इसलिए यह पाठ एक अविवाहित विश्वासी के जीवन पर केंद्रित है।
यीशु और पौलुस ने अविवाहित होने की दशा बारे में क्या कहा
फरीसियों ने यीशु से तलाक के बारे में एक प्रश्न पूछा। यीशु का उत्तर सुनने के बाद, उसके शिष्यों ने निष्कर्ष निकाला कि विवाह न करना ही बेहतर है (मत्ती 19:10)। यीशु, जो पृथ्वी पर अपने पूरे जीवन भर अविवाहित और कुँवारा रहा, उसने उत्तर दिया कि अधिकतर लोगों को विवाह करने की आवश्यकता है और केवल कुछ ही लोगों में दीर्घकालिक अविवाहित दशा को स्वीकार करने की क्षमता होती है (मत्ती 19:11-12)।
प्रेरित पौलुस- जिसने या तो कभी विवाह नहीं किया, या वह विधुर था-उसने भी कुरिन्थुस में रहने वाले अविवाहित विश्वासियों को ऐसी ही सलाह दी थी। यौन अनैतिकता की परीक्षा के कारण, अधिकतर लोगों को विवाह कर लेना चाहिए (1 कुरिन्थियों 7:2, 8-9)। पौलुस जानता था कि परमेश्वर ने विवाह में यौन घनिष्ठता को एक अच्छे उपहार के रूप में बनाया है (1 कुरिन्थियों 7:7, 1 तीमुथियुस 4:1-5, इब्रानियों 13:4)। उसने कहा कि यौन क्रिया विवाह के बाहर नहीं होनी चाहिए (1 थिस्सलुनीकियों 4:3-4)।
पौलुस ने अविवाहित जीवन को एक लाभ बताया। अविवाहित विश्वासी अपना समय, ऊर्जा और प्रयास प्रभु को प्रसन्न करने और सेवकाई में सेवा करने पर केंद्रित कर सकते हैं (1 कुरिन्थियों 7:32-35)।
पौलुस अविवाहित रहा (1 कुरिन्थियों 9:5)। उसने अविवाहित रहना चुना ताकि वह उस मिशनरी कार्य पर ध्यान केंद्रित कर सकें जो परमेश्वर ने उसे दिया था। फायदा अविवाहित होने की दशा को एक उपहार माना (1 कुरिन्थियों 7:7-8)। अपनी सेवकाई में बहुत कष्ट सहे (2 कुरिन्थियों 11:23-28)। इस कष्ट का सामना करना इसलिए आसान था, क्योंकि उस पर पत्नी या बच्चों की जिम्मेदारी नहीं थी (1 तीमुथियुस 5:8)।
हालाँकि पौलुस ने पाया कि अविवाहित दशा उसकी सेवकाई के लिए एक लाभ था, पर ऐसे भी तरीके भी हैं, जो दर्शाते हैं कि विवाह सेवकाई के लिए एक लाभ है।
► आप अविवाहित होने की दशा को सेवकाई के लिए एक लाभ के रूप में कैसे देखते हैं? आप विवाह को सेवकाई के लिए एक लाभ के रूप में कैसे देखते हैं?
पौलुस ने कहा कि लोगों को विवाह करने या न करने का निर्णय लेते समय कई बातें ध्यान में रखनी चाहिए:
कुँवारे रहने की उनकी व्यक्तिगत् क्षमता या असमर्थता (1 कुरिन्थियों 7:9, 36-37)
वर्तमान की कठिन परिस्थितियाँ, जैसे सताव (1 कुरिन्थियों 7:26)
विवाह की जिम्मेदारियाँ (1 कुरिन्थियों 7:27-28, 32-35)
सही प्राथमिकताएँ
न तो अविवाहित होने की दशा और न ही विवाह दूसरे से बेहतर या अधिक आत्मिक है। प्रत्येक के साथ अनोखीपरीक्षाएँ, कठिनाइयाँ, आशीषऔर अवसर आते हैं। प्रत्येक अलग-अलग समय पर और अलग-अलग लोगों के लिए उपयुक्त होते हैं।
अन्त में, व्यक्तिगत् संतुष्टि और पूर्णता एक व्यक्ति के परमेश्वर के साथ सम्बन्ध से आनी चाहिए, चाहे एक व्यक्ति विवाहित हो या नहीं (भजन संहिता 73:25, भजन संहिता 107:8-9)। इसके अलावा, सभी विश्वासियों - विवाहित और अविवाहित - को अपना ध्यान अनन्तकाल पर रखना चाहिए, क्योंकि जीवन छोटा है, और अनन्तकाल निश्चित है (1 कुरिन्थियों 7:31)।
► एक छात्र को समूह के लिए मत्ती 6:26-33 पढ़ना चाहिए।
इस परिच्छेद में, यीशु ने समझाया है कि संसार के मूल्य और प्राथमिकताएँ विश्वासियों से बहुत अलग हैं। विश्वासी का सर्वोच्च लक्ष्य परमेश्वर के राज्य में भाग लेना है। विश्वासी की पहली प्राथमिकता परमेश्वर के अनुग्रह से धार्मिकता का जीवन जीना है। परमेश्वर ने अपनी सन्तानों से तब उनकी शारीरिक और भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने की प्रतिज्ञा की है जब वे मत्ती 6:33 में दिए गए यीशु के वचनों का पालन करते हैं।
एक मसीही पुरुष को कब विवाह करना चाहिए? जब विवाह से उसे परमेश्वर के राज्य की बेहतर सेवा करने में सहायता मिलेगी। जब विवाह उसे धार्मिकता का अधिक फलवन्त, विजयी जीवन जीने में सहायता करेगा।
एक अविवाहित मसीही पुरुष को कब अविवाहित रहना चाहिए? जब विवाह या विवाह की खोज ही उसे परमेश्वर के राज्य में उसकी भूमिका से भटका रही हो। तब वह एक अविवाहित व्यक्ति के रूप में आत्मिक रूप से अधिक फलवन्त हो सकता है। तब वह आत्मिक रूप से विजयी हो सकता है और विवाह में प्रदान की गई यौन घनिष्ठता के बिना नैतिक पवित्रता बनाए रख सकता है।
► यदि आप अकेले हैं, तो ईमानदारी से व्यक्तिगत् चिंतन करने के लिए एक क्षण के लिए रुकें।
क्या आप परमेश्वर के वचन का पालन करते हुए जी रहे हैं?
इस समय परमेश्वर ने आपको अपने राज्य में क्या कार्य करने को दिया है?
आपको क्या लगता है कि परमेश्वर ने आपको दीर्घावधि में अपने जीवन में क्या करने के लिए बुलाया है?
क्या आपको लगता है कि विवाह आपको परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध और संसार में परमेश्वर के लिए आपके कार्य को बेहतर या बदतर बनाएगा?
परमेश्वर की प्राथमिकताओं को स्वीकार करने से अविवाहित विश्वासियों को यह निर्णय लेने में सहायता मिलती है कि उन्हें विवाह करना चाहिए या नहीं। यह हमारी इस बात की समझ को भी आकार देता है कि हमें सम्भावित जीवनसाथी में क्या देखना चाहिए। प्रत्येक विश्वासी जो विवाह करना चाहता है, उसे किसी ऐसे व्यक्ति की खोज करनी चाहिए जो परमेश्वर को पहले स्थान पर रखता हो, परमेश्वर के वचन के प्रति आज्ञाकारी रहता हो, और परमेश्वर के राज्य का विस्तार करना चाहता हो।
► छात्रों को समूह के लिए इफिसियों 4:17-24 और 1 यूहन्ना 2:15-17 पढ़ना चाहिए।
संसार के लोग अपने लिए जीते हैं। वे वही करने का चुनाव करते हैं जो उनके शरीर और मन चाहते हैं (इफिसियों 2:3), और वे परमेश्वर के वचन की अनाज्ञाकारिता करने को तैयार रहते हैं। पापी लोग अक्सर वही करते हैं, जो उन्हें अच्छा लगता है, और सबसे सुविधाजनक होता है, या जिससे दूसरे लोग उनकी ओर ध्यान दें। उनकी प्राथमिकता स्वयं को प्रसन्न करना है। वे किसी के साथ प्रेम सम्बन्ध शायद सिर्फ इसलिए बनाते हैं, क्योंकि वे उस व्यक्ति के प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित हैं। वे एक व्यक्ति के साथ सम्बन्ध में सिर्फ इसलिए हो सकते हैं, क्योंकि जब वे उस व्यक्ति के साथ होते हैं, तब उनके मन में उत्साहित भावनाएँ होती हैं।
स्वार्थी व्यक्ति विवाह के स्वयं का समर्पण करने वाले सम्बन्ध के प्रति प्रतिबद्ध नहीं होना चाहेंगे। वे विवाह के बिना यौन सम्बन्ध बनाने के इच्छुक हो सकते हैं, भले ही परमेश्वर कहता है कि ऐसे सम्बन्ध गलत हैं (1 कुरिन्थियों 6:9-11)।
ऐसे स्वार्थी लोग जो विवाह करते हैं, जब विवाह कठिन हो जाता है, तब वे अपने जीवनसाथी को छोड़ सकते हैं। वे अपने जीवनसाथी को तलाक दे सकते हैं और किसी और के साथ नए सम्बन्ध की ओर बढ़ सकते हैं। परमेश्वर के पास उसके वचन के निर्देशों का पालन करने वाले लोगों के लिए कुछ उत्तम है (भजन संहिता 19:8, 11, व्यवस्थाविवरण 6:24)।
यीशु ने कहा है कि हम हर बात में परमेश्वर को प्रसन्न करें (मत्ती 16:24, 2 कुरिन्थियों 5:9, कुलुस्सियों 1:10)। चूँकि हम मसीह के अनुयायी हैं, इसलिए हमारे व्यक्तिगत् जीवन की प्राथमिकता परमेश्वर का राज्य और धार्मिकता होनी चाहिए। इसके अलावा, विवाह की हमारी खोज में प्राथमिकता परमेश्वर का राज्य और धार्मिकता होनी चाहिए। हमें विवाह के अपने कारणों और विवाह की खोज करने के तरीके में परमेश्वर का आदर करना चाहिए। हमें यीशु के मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए और उसने जिन बातों को सही और भला कहा है, हमें उनका पालन करना चाहिए। फिर हमें पति और पत्नी के रूप में हमसे उसकी अपेक्षाओं का पालन करके परमेश्वर का आदर करना चाहिए।
हर बात का एक समय होता है
प्रारम्भिक वयस्कता अधिकतर लोगों के लिए विवाह के लिए सबसे अच्छा समय है (नीतिवचन 5:18, मलाकी 2:15, तीतुस 2:4)। एक जवान वयस्क के रूप में, व्यक्ति को जीवन के लिए पहले से ही प्रशिक्षित और तैयार होना चाहिए। एक पुरुष या स्त्री को परिपक्व होना चाहिए, जिम्मेदारी लेने और बुद्धिमानी से निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए (1 तीमुथियुस 4:12)। आदर्श रूप से, जवान वयस्क विवाह और बच्चे के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार होते हैं। उनका शरीर भी बच्चे पैदा करने के लिए तैयार होता है, और अधिकतर मामलों में, उनमें तीव्र यौन इच्छाएँ और वैवाहिक घनिष्ठता की आवश्यकता होती है।
आज कई संस्कृतियों में, जवान वयस्कों के लिए उच्च शिक्षा पूरी करने या अपने पेशे में सफलता पाने तक विवाह में देरी करना सामान्य बात हो गई है। अन्य जवान वयस्कों को विवाह में दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि वे जिम्मेदारी के बिना जीना चाहते हैं।
बहुत से जवान वयस्क अपने विवाह से पहले यौन रूप से अनैतिक जीवन जीते हैं। उनमें तीव्र यौन इच्छाएँ होती हैं। भावनात्मक रूप से, वे घनिष्ठ सहयोग चाहते हैं। फिर भी, वे या तो अपने जीवन लक्ष्यों या जिम्मेदारी लेने की अनिच्छा के कारण विवाह और परिवार बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध नहीं होना चाहते हैं।
ऐसे मसीही जवान वयस्क जो विवाह में देरी कर रहे हैं, उन्हें अपनी प्राथमिकताओं पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे भक्तिपूर्ण और पवित्रता का जीवन जी रहे हैं और परमेश्वर की इच्छा का पालन कर रहे हैं। कुछ लोगों को इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि परमेश्वर विवाह और धर्मी बच्चों के पालन-पोषण को कितना महत्व देता है।
ऐसेजोड़े जो अविवाहित होते हुए भी साथ रहते हैं
कई बार, एक पुरुष और स्त्री घनिष्ठता के सम्बन्ध में एक साथ जीते हैं, परन्तु विवाह में देरी करते हैं। वे एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध हो सकते हैं, परन्तु उन्होंने विवाह की वाचा नहीं की है। लोगों के पास इसके अलग-अलग कारण होते हैं:
कई बार भव्य और महँगे विवाहों की सांस्कृतिक अपेक्षाएँ निर्धन जोड़ों को स्वीकार्य विवाह करने से रोकती हैं।
कई बार एक जोड़ा इस डर से विवाह नहीं करता कि उनका विवाह असफल हो जाएगा। शायद वे सोचते हैं कि यदि उनकी विवाह नहीं हुआ तो अलगाव कम विनाशकारी होगा। शायद उन्हें यह आशा होती है कि साथ रहने के दौरान उनका सम्बन्ध और मजबूत हो जाएगा।
परमेश्वर ने यौन घनिष्ठता को विवाह के लिए सुरक्षित रखा है (इब्रानियों 13:4)। जो जोड़ा एक साथ रह रहा है, परन्तु विवाह नहीं किया है, वह परमेश्वर के वचन का उल्लंघन करने का दोषी है। एक-दूसरे के प्रति स्थायी रूप से पूर्ण प्रतिबद्धता की कमी और आपसी विश्वास की कमी के कारण उनकी घनिष्ठता कभी भी वह नहीं हो सकती है, जो होनी चाहिए।
विश्वासियों को अविश्वासियों के उदाहरण का अनुसरण नहीं करना चाहिए बल्कि इसके बजाय परमेश्वर के वचन का पालन करना चाहिए। कलीसिया को नैतिकता के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं को थामे रखना चाहिए और जोड़ों को विवाह के लिए पवित्रशास्त्र की योजना का पालन करने में सहायता करने के लिए व्यावहारिक सहयोग प्रदान करना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब एक जोड़ा महँगा विवाह करने में सक्षम न हो, तो कलीसियाई परिवार को साधारण विवाह करने में उनका सहयोग करना चाहिए। इससे जोड़ों को विवाहित होकर नैतिकता के लिए परमेश्वर के पैमाने का अनुसरण करने में सहायता मिलेगी। इससे जोड़े को आर्थिक कर्ज से मुक्त होकर अपने विवाह का आरम्भ करने में भी सहायता मिलेगी। मसीहियों को याद रखना चाहिए कि विवाह स्वयं विवाह समारोह से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, फिर भी एक निश्चित विवाह प्रतिबद्धता अवश्य की जानी चाहिए।
► छात्रों को समूह के लिए रोमियों 12:2 और फिलिप्पियों 2:15-16 पढ़ना चाहिए। चर्चा करें कि नैतिकता के प्रति विश्वासियों की प्रतिबद्धता उनके आसपास की संस्कृति को कैसे बदल सकती है।
स्वस्थ रूप से अविवाहित रहना
आत्म-समर्पण का विषय
[1] परमेश्वर के की प्रत्येक सन्तान को अपनी इच्छाओं को यीशु को समर्पित करना चाहिए। यीशु प्रभु है। जीवन भर, प्रत्येक विश्वासी की अपने प्रभु के रूप में यीशु के प्रति उनकी भक्ति को परखा जाएगा। कुछ कठिन परिस्थितियाँ आएँगी... या कोई अच्छी बात जिसे हम चाहते हैं वह नहीं होगी... और यीशु हमसे, यानी अपने अनुयायियों से पूछेगा, “क्या मैं तुम्हारा प्रभु हूँ? क्या तुम मेरी भलाई पर भरोसा करोगे? क्या तुम विश्वास करोगे कि मेरे पास एक सिद्ध योजना है? क्या तुम मेरी आज्ञा मानोगे? क्या तुम मेरे सामने समर्पण करोगे? क्या मैं जो कर रहा हूँ, तुम उसके प्रति समर्पण करोगे? क्या तुम इसमें मेरी महिमा करोगे?”
कुछ अविवाहित लोग अविवाहित रहकर ही खुश रहते हैं। परन्तु जो लोग विवाह करने की इच्छा रखते हैं और उन्हें विवाह करने का कोई अच्छा अवसर नहीं मिला है, उन्हें विवाह के लिए रुकने में परमेश्वर के चुनाव को नम्रता से स्वीकार करना चाहिए।
मसीही पुरुष और स्त्रियाँ... यह जान लें कि यदि परमेश्वर चाहता है कि उनका विवाह हो, तो वह इसे अपने सही समय और तरीके से स्पष्ट करेगा। परन्तु उसे हमेशा पहले आना चाहिए, और उस पर हमेशा पूरा भरोसा किया जाना चाहिए।[2]
परमेश्वर विश्वासयोग्य और भला है। एक ऐसा कार्य है, जिसे वह अविवाहित विश्वासी के मन और जीवन में करना चाहता है। परमेश्वर हमेशा उस बात की अनुमति देगा जो अन्त में उसकी सन्तानों के लिए सर्वोत्तम होगा, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उससे यीशु की सबसे अधिक महिमा होगी। सभी बातों में, परमेश्वर हमें हमारे चरित्र में यीशु के समान बनाने के लिए काम कर रहा है (रोमियों 8:28-29), और हमें अनन्तकाल तक यीशु की आराधना करने में सक्षम बनाने के लिए काम कर रहा है (1 पतरस 1:6-7)।
परमेश्वर अपनी सन्तानों में से एक के लिए एक धर्मी जीवनसाथी प्रदान करने में पूरी तरह सक्षम है। वह एक मसीही पुरुष की एक धर्मी पत्नी की खोज करने में सहायता कर सकता है, क्योंकि पुरुष एक ऐसी गुणी स्त्री की खोज में रहता है, जो अपने जीवन से परमेश्वर का आदर करती हो (नीतिवचन 18:22, नीतिवचन 19:14, नीतिवचन 31:10)।
ऐसी अविवाहित स्त्री जो मसीह के लिए जीती है, वह परमेश्वर पर भरोसा कर सकती है कि वह उसकी आवश्यकताओं का सबसे अच्छे तरीके से ध्यान रखेगा, चाहे परमेश्वर एक पुरुष को उससे विवाह करने के लिए प्रेरित करे या नहीं। वह परमेश्वर के प्रावधान और विश्वासयोग्यता के कारण पूर्ण और आत्मिक रूप से फलवन्त जीवन जी सकती है।
यदि अविवाहित दशा उसके लिए परमेश्वर का चुनाव है, तो वह परमेश्वर को एक सिद्ध प्रेमी, आवश्यकताओं को पूरा करने वाले, रक्षक और अगुवे के रूप में पाएगी। यीशु उसके मन का पति हो सकता है (यशायाह 54:5), और वह एक सांसारिक पति के बजाय उससे प्रेम कर सकती है, उसका आदर कर सकती है, उसके प्रति समर्पित हो सकती है और उसकी आज्ञा मान सकती है।
यदि विवाह उसके लिए परमेश्वर का चुनाव बन जाता है, तो उसकी अविवाहित दशा के समय ने उसे परमेश्वर (जो एकलौता सिद्ध प्रेमी, आवश्यकता पूरी करने वाला, रक्षक और अगुवा है) पर भरोसा करना सिखाया होगा, यहाँ तक कि वह एक अधूरे व्यक्ति, यानी मानव पति से प्रेम करना, उसका आदर करना और उसके अधीन होना भी सीखती है।
मसीह में पूर्णता
सब विश्वासियों को अपनी सर्वोच्च संतुष्टि मसीह में खोजनी चाहिए, न कि किसी मानव साथी में। यहाँ तक कि यदि कोई विवाह करना चाहता है, तो लम्बे समय तक अविवाहित रहा यह सुनिश्चित करने का अवसर देता है कि वह वास्तव में यीशु में पूर्ण है। अविवाहित होना यह साबित करने का अवसर देता है कि यीशु पर्याप्त है (फिलिप्पियों 4:11-13)।
[3]सच्चाई तो यह है कि परमेश्वर ने विवाह की सृष्टि की, और हमें इसे एक पवित्र व्यवस्था के रूप में आदर देना चाहिए, यह पूरे पवित्रशास्त्र में स्पष्ट है... आदम के लिए अकेला रहना अच्छा नहीं था, परन्तु क्या ऐसा इसलिए था, क्योंकि परमेश्वर स्वयं आदम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था? कदापि नहीं! जैसा कि बाइबल बताती है, परमेश्वर ने हव्वा को इसलिए बनाया क्योंकि आदम को पृथ्वी पर वह काम करने के लिए एक सहायक, एक साथी की आवश्यकता थी, जिसे करने के लिए परमेश्वर ने उसे बुलाया था। हाँ, एक-दूसरे के साथ रहने के कारण आदम और हव्वा दोनों को कई आशीष और लाभ मिले, परन्तु उनका विवाह कभी भी परमेश्वर का स्थान नहीं ले सका। अब भी परमेश्वर ओको उनके प्रेम और आराधना का पहला और प्रमुख लक्ष्य परमेश्वर को ही होना था।[4]
एक व्यक्ति तब परमेश्वर के प्रेम को और अधिक अनुभव करना सीख सकता है, जब उसके पास शारीरिक और भावनात्मक स्नेह प्रदान करने के लिए एक जीवनसाथी या परिवार नहीं होता है। भजन संहिता 73:25-26 जैसे पवित्रशास्त्र भावनात्मक परीक्षा और शारीरिक परीक्षा के समय में प्रोत्साहन देते हैं:
स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता। मेरे हृदय और मन दोनों तो हार गए हैं, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिये मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्टान बना है।
जैसा कि लेस्ली लुडी लिखते हैं,
भजनकार दाऊद को अपने जीवन में स्त्रियों का भरपूर साथ मिला। परन्तु यह परमेश्वर के साथ दाऊद का घनिष्ठ सम्बन्ध है जो उसे इन आयतों में दर्शायी गई पूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।[5]
अविवाहित विश्वासी जान लेंगे कि यीशु ही पर्याप्त है; परमेश्वर के साथ एक सम्बन्ध का होना संतुष्टि देता है।
जब अविहवाहित विश्वासी मसीह में अपनी संतुष्टि को पाते हैं, तो वे उनकी अविवाहित दशा को दूसरों की सेवा करने का अवसर बना देते हैं। अपनी निजी आवश्यकताओं पर ध्यान लगाने और असंतुष्ट महसूस करने के बजाय, वे दूसरों की आवश्यकताओं पर ध्यान देना और उन्हें पूरा करना सीख सकते हैं। दूसरों की सहायता करना एक फलवन्त और भरपूरी का जीवन जीने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। जीवन के इस काल में विकसित हुआ चरित्र जीवन भर अच्छा फल लाते रहने में उनकी सहायता करेगा।
► छात्र समूह के लिए फिलिप्पियों 2:3-4 और तीतुस 3:8, 14 पढ़ें।
जैसा कि पहले बताया गया है, विभिन्न जीवन परिस्थितियाँ अनोखे अवसर प्रदान करती हैं। जीवन के प्रत्येक चरण में, कुछ ऐसी बातें होती हैं, जिन्हें एक व्यक्ति कर सकता है, पर दूसरी बातें भी हैं, जिन्हें वह नहीं कर सकता। एक अविवाहित युवती ने उन बातों की सूची बनाई है, जिन्हें करने में वह सक्षम है, विशेषकर इसलिए क्योंकि वह अविवाहित है। अन्य अविवाहित पुरुष और स्त्रियों के पास अपनी सूची में रखने के लिए विभिन्न बातें होंगी।
क्योंकि मैं एक अविवाहित युवती हूँ, इसलिए मेरे लिए ये काम करना अधिक आसान है:
वृद्ध लोगों से मिलना और उनके साथ समय बिताना।
बेघरों के लिए भोजन पकाना और उन्हें खिलाना।
बाइबल का गहराई से अध्ययन करना और बच्चों के लिए बाइबल पाठ तैयार करना।
अपने घर में महिलाओं और लड़कियों की सेवा करना।
मध्यस्थता की प्रार्थना में बिना किसी रुकावट समय व्यतीत करना।
कोई नई कला सीखना।
प्रोत्साहन के पत्र और कार्ड लिखना।
दूसरे लोगों की परियोजनाओं में स्वेच्छा से सहायता करना।
अचानक किसी विशेष आवश्यकता या कार्यक्रम के आने पर शीघ्रता से अपनी समय-सारणी को व्यवस्थित करना।
प्रत्येक व्यक्ति के पास उसकी जीवन स्थिति के कारण विशिष्ट अवसर या जिम्मेदारियाँ होती हैं। छोटे बच्चों की माँ जिन बातों की सूची बनाएगी उसमें उन बातों के उदाहरण शामिल हो सकते हैं, जिन्हें वह अपने बच्चों को सिखा रही है या वे तरीके जिनसे वह उन्हें प्रशिक्षित कर रही है। चूँकि वह उनकी माँ है, परमेश्वर ने उसे इन तरीकों से सेवा करने का अवसर और जिम्मेदारी प्रदान की है। (इस पाठ के अन्त में आप अपनी व्यक्तिगत सूची बनाएंगे।)
भाईचारा
जिन लोगों का विवाह नहीं हुआ है, उनके लिए दूसरों के साथ स्वस्थ सम्बन्ध रखना अत्याधिक महत्वपूर्ण है। जैसा कि पिछले पाठों में चर्चा की गई थी, परमेश्वर ने लोगों को उसके साथ और अन्य लोगों के साथ सम्बन्धों के लिए बनाया है।
अविवाहित लोगों को ऐसे लोगों के साथ सम्बन्ध रखने चाहिए जिनकी वे सेवा कर सकें—शायद बच्चे या जवान या वृद्ध लोग।
अविवाहित लोगों को सम्मति और जवाबदेही के लिए आयु में बड़े, परिपक्व सलाहकारों की आवश्यकता होती है।
अविवाहित लोगों को ऐसे मित्रों की आवश्यकता होती है, जो जीवन में समान स्थान पर हों, ताकि वे प्रभु में एक-दूसरे को प्रोत्साहित कर सकें और साथ मिलकर संगति कर सकें।
अविवाहित लोगों को विवाहित दम्पत्तियों और परिवारों के साथ मित्रता रखनी चाहिए। ऐसी मित्रता से बहुत सी पारस्परिक आशीषें मिलती हैं।
दूसरों के साथ विविध प्रकार के सम्बन्ध रखने से एक व्यक्ति को सेवा करने के कई अवसर मिलते हैं। मित्रता ऐसी भावनात्मक और आत्मिक सहायता प्रदान करती है जिसकी अविवाहित व्यक्ति को आवश्यकता होती है। मित्रता उनके परिवार की आवश्यकता को पूरा करने में सहायता करती है, विशेषकर तब जब वे अपने परिवार के पास न रहते हों।
इसमें दो अतिरिक्त सावधानियाँ बरती जानी चाहिए:
जिस व्यक्ति का विवाह नहीं हुआ है, उसे भावनात्मक और शारीरिक आवश्यकताओं के कारण मूर्खतापूर्ण या अनैतिक सम्बन्ध रखने से बचने के विषय में सावधान रहना चाहिए।
एक अविवाहित व्यक्ति को किसी भी मानवीय सम्बन्ध से बढ़कर परमेश्वर के साथ सम्बन्ध को प्राथमिकता देनी चाहिए।
वैचारिक जीवन
सभी विश्वासियों को परमेश्वर के सशक्त करने वाले अनुग्रह के द्वारा अपने वैचारिक जीवनों को पवित्र रखना चाहिए (नीतिवचन 4:23)। भजन संहिता 19:14 एक प्रार्थना है, जिसमें परमेश्वर से विनती की गई है कि परमेश्वर हमारी सहायता करे कि हम उसके लिए अपने शब्दों और विचारों में सावधानी से जी सकें। यह प्रार्थना हमें स्मरण दिलाती है कि हम अपने सोचे-समझे विचारों और वक्तव्यों के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हैं।
हम अपने मनों में क्या भरते हैं, इसके विषय में हमारे पास चुनाव होते हैं (फिलिप्पियों 4:8): यानी हम क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, या पढ़ते हैं। यदि हम परमेश्वर का आदर करना चाहते हैं, तो हमें ऐसा मानसिक भोजन चुनना चाहिए जो पवित्र है और जो हमें परमेश्वर के निकट लाएगा और उसकी आज्ञा मानने में हमारी सहायता करेगा (रोमियों 12:2, रोमियों 13:14)।
मसीह के अनुयायियों को दूसरों के पापों से अपना मनोरंजन नहीं करना चाहिए (भजन संहिता 101:3, 1 कुरिन्थियों 15:33)। अनैतिक व्यवहार को देखकर आनन्द लेने का मतलब किसी और के पाप में भागीदारी करना है (रोमियों 1:32)। ऐसी चीज़ों को देखना और सुनना एक विश्वासी को पाप के प्रति असंवेदनशील बना देगा और प्रभु को प्रसन्न करने से उसके ध्यान के भटकने का कारण बनेगा (नीतिवचन 13:20)। परमेश्वर का वचन हर समय परमेश्वर का आदर करने (नीतिवचन 23:17) और बुराई से वैसे घृणा करने की हमारी आवश्यकता पर बल देता है, जैसा कि वह करता है (नीतिवचन 8:13)। जब हम प्रभु का भय मानते और बुराई से फिर जाते हैं, तो हमें आशीष मिलती है (भजन संहिता 111:10)।
जब हम अपने मन में क्या रखना है और किन बातों ध्यान देना है, जैसी बातों को बारे में परमेश्वर के निर्देशों का उल्लंघन कर देते हैं, तो हमें अपने पापों को मान लेना चाहिए और उन चीजों को करना बंद कर देना चाहिए। यहाँ तक कि ऐसे विषयों में भी जब हमने गलती से कुछ बुरा सुन लिया हो या देख लिया हो, हमें जानबूझकर उन चीजों से सम्बन्धित विचारों को अच्छे और धर्मी विचारों से बदल देना चाहिए।
► छात्र समूह के लिए भजन संहिता 19:14, भजन संहिता 1:1-2, फिलिप्पियों 4:6-8, और इफिसियों 5:25-27 पढ़ें।
फिलिप्पियों की आयतें हमें बताती कि परमेश्वर हमारे ह्रदय और मन की रक्षा करना चाहता है, परन्तु हमें जानबूझकर सही चीजों पर ध्यान देकर उसका सहयोग करना चाहिए। स्वस्थ और पवित्र विचार वाले जीवन के लिए पवित्रशास्त्र पर मनन करना अत्याधिक महत्वपूर्ण है। इफिसियों की पुस्तक हमें बताती है कि परमेश्वर का वचन हमें धोकर शुद्ध करता है। इसमें निश्चित रूप से हमारे मन और विचार शामिल हैं।
► कौन सी गतिविधियाँ आपको परमेश्वर का आदर करने वाला वैचारिक जीवन जीने में सहायता करती हैं? किन अन्य आयतों ने आपके वैचारिक जीवन में आपकी सहायता की है?
अविवाहित दशा और लैंगिकता
यदि आप इस पाठ को पूरे पाठ्यक्रम से अलग से पढ़ रहे हैं, तो कृपया पाठ 4 का भी अध्ययन करें जहाँ यौन पवित्रता और नैतिक विषयों पर चर्चा की गई है।
[1]“संतोष वह संतुष्टि है, जो यह जानने से आती है कि परमेश्वर मेरी परिस्थितियों पर परमप्रधान है और मुझे वह दे रहा है, जो मेरे लिए सबसे उत्तम है।”
- फिल ब्राउन
[2]लेस्ली लुडी Leslie Ludy, पवित्रताई से भरी अविवाहित दशा (Sacred Singleness) (Eugene, OR: Harvest House Publishers, 2009),24 से अनुकूलित।
[3]एक प्रार्थना
“हे प्रभु, मैं तेरा हूँ।
यही मेरी पहचान,
मेरी बुलाहट,
मेरी सुरक्षा,
मेरा आराम,
मेरा उद्देश्य,
मेरा आनन्द, और
मेरा प्रतिफल है।
मुझे तेरी आवश्यकता है।
तू पर्याप्त है।
तू मुझे भर दे।
तू मेरा स्रोत है।
तू मुझे पूरा करता है।”
[4]लेस्ली लुडी Leslie Ludy, पवित्रताई से भरी अविवाहित दशा (Sacred Singleness) (Eugene, OR: Harvest House Publishers, 2009), 66-67।
[5]लेस्ली लुडी Leslie Ludy, पवित्रताई से भरी अविवाहित दशा (Sacred Singleness) (Eugene, OR: Harvest House Publishers, 2009), 67। लेस्ली लुडी भजन संहिता 16:11, भजन संहिता 73:25, और भजन संहिता 107:9 का उल्लेख कर रहे थे।
[6]“यदि आप अविवाहित है, तो याद रखें कि आपको अपने समय और
स्वतंत्रता को स्व-केंद्रित लक्ष्यों पर
नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि कलीसिया और
संसार की सेवा करने के लिए बुलाया गया है।”
-पॉल लेमिसेला के लेख से अनुकूलित
उपसंहार
अविवाहित दशा विश्वासियों की मसीह के साथ उनके सम्बन्ध विकसित करने और दूसरों की सेवा करना सीखने के अद्वितीय अवसर प्रदान करती है। अविवाहित लोगों को अन्य लोगों के साथ स्वस्थ सम्बन्धों का निर्माण करते हुए मसीह में अपनी पूर्णता की खोज करनी चाहिए। उन्हें अपने अविवाहित दशा के अवसरों का इस्तेमाल परमेश्वर की महिमा और उसके राज्य की भलाई के लिए करना चाहिए। परमेश्वर की प्राथमिकताएँ विश्वासियों को विवाह की सम्भावना के सम्बन्ध में अच्छे निर्णय लेने में सहायता करती हैं।
सामूहिक चर्चा के लिए
► ऐसी कई प्राथमिकताओं का नाम बताएँ और उन पर चर्चा करें, जो जीवन के अविवाहित दशा के वर्षों, विवाह करने का चुनाव, और विवाह की खोज करने के निर्णयों में मार्गदर्शन करेंगी।
► आपकी कलीसिया अविवाहित सदस्यों की अधिक प्रभावी ढंग से सेवा कैसे कर सकती है?
► आपका परिवार एक अविवाहित व्यक्ति से कैसे मित्रता कर सकता है?
► यदि आप अविवाहित हैं, तो आप अपने कलीसियाई परिवार में कैसे योगदान दे सकते हैं? आप विभिन्न आयु समूह और जीवन काल के लोगों के लिए एक आशीष कैसे बन सकते हैं?
► इस पाठ में कौन से विचार आपके लिए नए थे?
► आपके अनुसार इस पाठ में और किन बातों की चर्चा की जा सकती थी?
► चर्चा करें कि इस पाठ के सिद्धान्त जीवन के अन्य समयों पर कैसे लागू होते हैं।
प्रार्थना
हे स्वर्गीय पिता,
हमारे जीवन के हर काल में हरे प्रति विश्वासयोग्य रहने के लिए तेरा धन्यवाद हो। उन लोगों के उदाहरणों के लिए धन्यवाद, जो अपनी अविवाहित दशा के वर्षों में तेरी उपस्थिति में और तेरी महिमा के लिए जिए हैं।
हमारी सहायता कर कि हम जीवन भर पूरी तरह से तुझे समर्पित रहें। हमारी सहायता कर कि हम तेरे साथ सम्बन्ध में संतुष्टि को खोजें और पाएँ। हमारी सहायता कर कि हम उन अवसरों का इस्तेमाल करें जो तूने हमें हमारे जीवन के वर्तमान समय में दिए हैं।
हमें सशक्त कर कि हम अपने चुनावों, विचारों, और दूसरों के साथ हमारे सम्बन्धों में सदा तेरा आदर कर सकें। हमें अपनी महिमा के लिए फलवन्त बना।
आमीन
पाठ सम्बन्धी नियत कार्य
(1) उस स्थिति के बारे में सोचें जिसमें यीशु ने आपसे उसकी योजना के प्रति समर्पण करने के लिए कहा था। कम से कम दो अनुच्छेदों में उस परिस्थिति और उसके प्रति अपने प्रत्युत्तर का वर्णन करें। (यह कोई वर्तमान स्थिति या आपके अतीत की कोई बात हो सकती है।) आपके विश्वास को कैसे परखा गया? प्रभु ने आपकी अगुवाई कैसे की? क्या आपने उसकी योजना के प्रति आत्मसमर्पण कर दिया था? आपने उससे क्या कहा? उस स्थिति में आपको आज्ञाकारिता कैसी प्रतीत हुई?
(2) आपकी वैवाहिक स्थिति, लिंग या जीवन स्थिति के कारण आपके पास कौन से अवसर हैं? फिलहाल, यह न सोचें कि आप क्या नहीं कर सकते। इसके बजाय, एक क्षण निकालकर उन बातों की सूची बनाएँ जिन्हें आप केवल इसलिए करने में सक्षम हैं, क्योंकि परमेश्वर ने आपको इस समय वहाँ रखा है। लिखें, “चूँकि मैं ________ हूँ, इसलिए मेरे पास…का अवसर है।”
(3) नीचे दिए गए प्रत्येक वचन को पढ़ें और उस पर मनन करें, जिनका सन्दर्भ पाठ के अन्तिम भाग में दिया गया था। परमेश्वर से वह सब बातें दिखाने के लिए कहें, जिन्हें बदलने की आपको आवश्यकता है, ताकि आपका वैचारिक जीवन पवित्र और उसे प्रसन्न करने वाला हो। अंगीकार और आज्ञाकारिता करने की प्रतिबद्धता की एक प्रार्थना लिखें।
भजन संहिता 1:1-2
भजन संहिता 19:14
भजन संहिता 101:3
भजन संहिता 111:10
नीतिवचन 4:23
नीतिवचन 8:13
नीतिवचन 13:20
नीतिवचन 23:17
रोमियों 1:32
रोमियों 12:2
रोमियों 13:14
1 कुरिन्थियों 15:33
फिलिप्पियों 4:6-8
(4) सत्र कार्य 3 से याद करने के लिए तीन आयतें चुनें। अगली कक्षा की शुरुआत में, अपनी स्मृति से उन आयतों को लिखें या सुनाएँ।
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