क्योंकि SGC के कार्यक्रम का उद्देश्य सेवकाई प्रशिक्षण है, छात्र को अच्छी गवाही और परमेश्वर को आदर देने वाली जीवन शैली वाला एक मसीही विश्वासी होना चाहिए। एक अविश्वासी पाठ्यक्रम की अधिकतर सामग्री को नहीं समझ पाएगा या वह उसकी सराहना नहीं करेगा।
छात्र को सुसमाचार आधारित धर्मसैद्धान्तिक शिक्षा सहित मसीहियत के ऐतिहासिक महत्वपूर्ण बातों पर विश्वास करना चाहिए। यह कार्यक्रम हर स्थान पर मसीह की देह की सेवा करने के लिए बनाया गया है, इसलिए इसमें विशिष्ट सांप्रदायिक मान्यताओं की आवश्यकता नहीं है।
छात्र को एक कलीसिया सदस्य होना चाहिए जो अपने कलीसिया की आराधना और संगति में भाग लेता हो। जो छात्र कलीसियाओं के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं, वे सेवकाई प्रशिक्षण के लिए अच्छे उम्मीदवार नहीं हैं। सही मायनों में, उन्हें कलीसियाओं का हिस्सा होना चाहिए जिससे उन्हें उन बातों का अभ्यास करने का अवसर मिलेगा जिन्हें वे सीख रहे हैं। कुछ नियत कार्यों में अन्य विश्वासियों की भागीदारी शामिल होती है।
एक स्थानीय संस्थान को ऐसे छात्रों को शिक्षा देने के लिए बनाया जाना चाहिए जो अच्छी तरह से पढ़ और लिख सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि वे स्कूल ग्रेजुएट हों, परन्तु उन्हें पाठ्यक्रम को समझने और नियत कार्यों को पूरा करने के लिए पढ़ना और लिखना आता हो। संस्थान को उन छात्रों को प्रमाण पत्र प्रदान करना चाहिए जो इस स्तर पर अध्ययन करने योग्य हों।
उन छात्रों को शिक्षण के ऐसे अन्य स्तरों का प्रस्ताव दिया जा सकता है, जो सीखना तो चाहते हों परन्तु नियत कार्य करने योग्य न हों। उदाहरण के लिए, शिक्षक ऐसे लोगों को सामान्य सभाओं या गृह बाइबल अध्ययन समूहों में सिखा सकते हैं, जो अच्छी तरह से नहीं पढ़ते हैं और नियत कार्य नहीं कर सकते हैं।
अपने छात्रों को समझना
स्थानीय SGC संस्थानों में दाखिला लेने वाले छात्र अन्य प्रकार के संस्थानों के छात्रों से अलग होते हैं। वे स्कूल के बच्चों की तरह नहीं हैं। वे विश्वविद्यालय के छात्रों और बाइबल कॉलेज के अधिकतर छात्रों से अलग होते हैं। इस प्रकार की कक्षा के लिए शिक्षकों को उनकी शैली को अनुकूल बनाना चाहिए। कुछ छात्रों की शैक्षणिक क्षमता कॉलेज
के छात्र की क्षमता से कम होगी। शिक्षकों को अपनी अपेक्षाओं को समायोजित करना चाहिए। उन्हें समझाना चाहिए कि छात्रों को नियत कार्य कैसे करने चाहिए। उन्हें आलस्य और लापरवाही की भर्त्सना करनी चाहिए, परन्तु छात्रों के काम के प्रति उनकी आलोचना सहायक और उत्साहजनक होनी चाहिए, यह कभी भी अपमानजनक नहीं होनी चाहिए।
याद रखें, यदि परमेश्वर ने सेवकाई के लिए लोगों को बुलाया है, तो परमेश्वर उन्हें वह क्षमता दे रहा है जिसकी उन्हें आवश्यकता है। छात्र पहले से ही अपने सेवकाईयों में परमेश्वर के अभिषेक और आशीष का प्रदर्शन कर सकते हैं। उन्हें विकसित करने में सहायता करना हमारी जिम्मेदारी है। उन्हें हतोत्साहित करना गलत होगा।
SGC छात्रों के अधिकतर समूहों में विभिन्न आयु वर्गों के लोग होंगे। हो सकता है कि कुछ ने हाल ही में स्कूल समाप्त किया हो। अन्य लोग दादा-दादी की उम्र वाले हो सकते हैं। हो सकता है कि कुछ कई वर्षों से पास्टर रहे हों। कभी-कभी कोई छात्र शिक्षक से भी बड़ी आयु हो सकता है।
बीस वर्ष के एक छात्र के पास जिसने हाल ही में स्कूल समाप्त किया था, साठ वर्ष के एक पास्टर की तुलना में अधिक शैक्षणिक क्षमता हो सकती है। हालाँकि, प्रत्येक का सम्मान किया जाना चाहिए। हमें शैक्षणिक क्षमता का इस तरह सम्मान नहीं करना चाहिए जिससे परिपक्वता और अनुभव का अनादर हो। जबकि हम शैक्षणिक आवश्यकताओं पर जोर देते हैं, तथापि हमें उन छात्रों को शर्मिंदा करने से बचना चाहिए जो उस तरह के काम के आदी नहीं हैं।
वयस्क शिक्षार्थियों के लक्षण
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वयस्क शिक्षार्थी एक ऐसा शब्द है, जिसका उपयोग उस छात्र का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिसका वयस्क जीवन शुरू हो चुका है। हो सकता है कि वयस्क शिक्षार्थी विवाहित हों और उनके बच्चे हों। शायद उन्होंने किसी व्यवसाय या सेवकाई में काम किया हो। उनके पास पहले से ही जीवन के विविध अनुभव हैं। जब वयस्क फिर से छात्र बनने के चुनाव करते हैं, तो वे कुछ व्यक्तिगत लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं।
शिक्षक और कक्षा की शैली वयस्क शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाई जानी चाहिए।
1. वयस्क शिक्षार्थी ऐसा प्रशिक्षण चाहते हैं जो उनकी तत्काल सहायता करे। उन्हें इस बात की चर्चा करने की आवश्यकता है कि वे जो सीख रहे हैं, उसका अभ्यास वे कैसे करेंगे। कक्षा में छात्रों को यह बताने का समय दिया जाना चाहिए कि वे इस ज्ञान को कैसे लागू करने की अपेक्षा रखते हैं। शिक्षक को छात्रों के साथ बातचीत किए बिना कक्षा का पूरा समय पाठ्य-सामग्री प्रस्तुत करने में नहीं बिताना चाहिए।
2. वयस्क शिक्षार्थी सम्मान चाहते हैं। उनके पास पहले से ही वयस्क जिम्मेदारियाँ होती हैं और वे अपने साथ बच्चों की तरह वाला व्यवहार नहीं चाहते हैं। शिक्षकों को शिक्षार्थियों का दृष्टिकोण रखना चाहिए और विचारों के प्रति खुलापन दिखाना चाहिए। उन्हें अपने छात्रों के अनुभव और गूढ़ ज्ञान के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए।
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3. वयस्क शिक्षार्थी अध्ययन करते समय चुनाव करना चाहते हैं। उनके अनुभव और लक्ष्य उनके लिए कुछ प्रकार के अध्ययन को आकर्षक और प्रासंगिक बनाते हैं। उन्हें अपनी रुचियों का पता लगाने और अध्ययन की अपनी शैली विकसित करने के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता है।
4. वयस्क शिक्षार्थी कक्षा में अभ्यास करना चाहते हैं। शिक्षक को छात्रों की प्रस्तुतियाँ बनाने, पाठ्य- सामग्री के अनुभागों की व्याख्या करने और प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता करनी चाहिए। कई बार छात्र अपने अनुभवों के विषय में कहानियाँ सुना सकते हैं। हालाँकि शिक्षकों को समय बर्बाद करने से बचना चाहिए, उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि कोई एक कहानी एक छात्र द्वारा सीखी गई किसी बात को लागू करने का तरीका हो सकती है।
5. वयस्क शिक्षार्थी अन्य छात्रों के साथ सम्बन्ध विकसित कर लेते हैं। वे एक दूसरे की प्रतिक्रिया से सीखते हैं। वे सम्मान देते हैं और पाते हैं। वयस्क शिक्षार्थी अपने शेष जीवन भर कुछ बातचीतों को याद रखेंगे और उन्हें महत्व देंगे। कई बार चर्चा के लिए कक्षा को छोटे समूहों में विभाजित करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
6. वयस्क शिक्षार्थी अपने निष्कर्षों पर आना चाहते हैं। वे आशा करते हैं कि विभिन्न प्रकार के विचारों को सहन किया जाए।
7. वयस्क शिक्षार्थी शिक्षक को पसंद करना और सम्मान करना चाहते हैं। वे यह अपेक्षा नहीं करते कि उनके और शिक्षक के बीच पद की खाई इतनी बड़ी हो जितनी कि एक विश्वविद्यालय में एक छात्र और प्रोफेसर के बीच होती है। वे शिक्षक के व्यक्तिगत ध्यान देने को महत्व देते हैं। वे केवल शिक्षक के ज्ञान के प्रति ही नहीं बल्कि उसके समर्पित जीवन और चरित्र की प्रशंसा करने योग्य भी होना चाहते हैं।
छात्रों के लिए प्रतिक्रिया
अच्छी अध्ययन आदतों के बारे में बात करने के लिए शिक्षक को कक्षा में और व्यक्तिगत रूप से छात्रों के साथ समय निकालना चाहिए। छात्रों को स्वयं को अनुशासित करना सीखना चाहिए और दैनिक अध्ययन समय सारणी बनानी चाहिए।
शिक्षक को नियत कार्यों और उपस्थिति का सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड रखना चाहिए। पाठ्यक्रम के अन्त में, रिकॉर्ड अंकों को देने के लिए आधार बनेगा। पाठ्यक्रम के दौरान, जब अलग-अलग छात्र अच्छा नहीं कर रहे हैं, तो शिक्षक को उनसे बात करनी चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि सुधार कैसे किया जाए।
शिक्षक के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि छात्र समझता है कि नियत कार्य कैसे करना है। खराब तरीके से किए गए कार्यों में सुधार के लिए छात्र को वापस लौटा दिया जाना चाहिए, परन्तु शिक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र यह समझता है कि कार्य को कैसे सुधारा जा सकता है।
यदि छात्रों की उपस्थिति या नियत कार्य उनके अंकों को कम कर रहे हैं, तो शिक्षक को उनसे सुधार की आवश्यकता के बारे में बात करनी चाहिए। पाठ्यक्रम के अन्त में छात्रों को अपने अंकों से हैरानी नहीं होना चाहिए।
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