पास्टरों को प्रशिक्षित करने के लिए
पास्टरों को शिक्षा, बाइबल की व्याख्या, उपदेश और शिष्यता की पद्धतियों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। पूरे संसार में हजारों कलीसियाओं की अगुवाई ऐसे पास्टरों के द्वारा की जाती है जिनके पास बहुत थोड़े मुद्रित संसाधन हैं और कोई उद्देश्यपूर्ण प्रशिक्षण नहीं है। कई पास्टर प्रशिक्षित नहीं होते हैं और स्वयं को दूसरों को प्रशिक्षित करने के योग्य महसूस नहीं करते हैं।
David Livermore ने कहा है,
“पूरी दुनिया में कलीसिया की तीव्र वृद्धि ऐसे पास्टरों और कलीसिया के अगुवों की कमी उत्पन्न कर रही है जो थियोलॉजिकल रूप से प्रशिक्षित हों। संसार में लगभग 22 लाख इंजीलवादी कलीसियाएँ हैं। इन में से 85% का नेतृत्व ऐसे पुरुषों और स्त्रियों द्वारा किया जा रहा है जिन्हें कोई थियोलॉजिकल प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है। बढ़ती हुई कलीसिया की देखभाल के लिए प्रतिदिन 7,000 नए कलीसिया अगुवों की आवश्यकता है।”[1]
पूरे संसार के अधिकांश सम्भावित पास्टर बाइबल कॉलेज में नहीं जा सकते हैं। उनके लिए कई वर्षों तक अपने परिवार, रोजगार और सेवकाईयों को कहीं पर कक्षाओं में भाग लेने के लिए छोड़ कर जाना व्यावहारिक नहीं है। उन्हें स्थानीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
Shepherds Global Classroom का उद्देश्य इन कलीसिया अगुवों को बाइबल आधारित, थियोलॉजिकल और व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना है, जिन्हें थियोलॉजी या सेवकाई में कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं है।
गवाहों को प्रशिक्षित करने के लिए
कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसने परमेश्वर के बचाने वाले अनुग्रह का अनुभव किया है वह सुसमाचार प्रचार करने के योग्य है। लोग बता सकते हैं कि परमेश्वर ने उनके लिए क्या किया है। उनकी गवाही कायल करने वाली हो सकती है, खासकर उन लोगों के लिए जो उन्हें जानते हैं और उनके जीवन में परिवर्तन को देखते हैं।
हलाँकि, कभी-कभी एक व्यक्ति सुसमाचार के मूल बातों की व्याख्या करने में योग्य नहीं होता है। यदि श्रोता ऐसी स्थिति में हैं, जो उस व्यक्ति की गवाही से भिन्न प्रतीत होती है, तो वे यह नहीं समझ सकते कि वे उसी परिवर्तन का अनुभव कैसे कर सकते हैं।
यहाँ तक कि कोई ऐसा व्यक्ति जो वर्षों से एक विश्वासी रहा हो वह अपने समुदाय के सामने सुसमाचार प्रचार करने में अयोग्यता महसूस कर सकता है, क्योंकि वह मसीहियत के बारे में पूछे जाने वे प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ होता है। यह विश्वासी पुरुष या स्त्री मन फिराव के अपने स्वयं के अनुभव, आराधना की भावनाओं को जानता है, और यह जानता है कि मसीह की देह में दूसरों के साथ संगति करना कैसा होता है, परन्तु वह इन बातों को समझाने के लिए योग्य नहीं है।
कभी-कभी किसी समुदाय के लोग मसीहियत के प्रति विरोधी धर्म के होते हैं। वे एक अच्छा जीवन जीने वाले मसीह के अनुयायियों का सम्मान करना सीख सकते हैं, परन्तु उन्हें मसीहियत की बातों को सुनने की भी आवश्यकता है।
सुसमाचार के सिद्धान्तों और सुसमाचार का सहयोग करने वाले बुनियादी सिद्धान्तों को सीखकर एक व्यक्ति अधिक प्रभावी गवाह बन सकता है।
कलीसिया की रक्षा के लिए
पास्टर अच्छी शिक्षा के द्वारा अपनी कलीसियाओं की रक्षा करने के लिए उत्तरदायी हैं (तीतुस 1:9-14)। झूठी कलीसियाएँ और झूठे धर्म लोगों को भ्रमित करने और धोखा देने के लिए अपने विचारों का उपयोग करते हैं। यह दुःख की बात है कि बहुत से ऐसे लोग जिन्होंने कभी मन फिराया था परन्तु बाद में वे किसी झूठी कलीसिया में चले गए।
पास्टर को लोगों को बाइबल की शिक्षा सिखानी चाहिए ताकि लोग अपने विश्वास में जड़ पकड़ सकें। शिक्षण को उद्देश्यपूर्ण और व्यवस्थित होना चाहिए और कलीसिया के सभी लोगों तक पहुँचने के लिए उसे विभिन्न स्तरों पर प्रदान किया जाना चाहिए।
युगांडा, अफ़्रीका में एक प्रभावशाली पास्टर Richmond Wandera यह देखते हैं कि बहुत से मसीही झूठे धर्मों से आई प्रथाओं का पालन कर रहे हैं। “रविवार को लोग अपने हाथ उठाकर परमेश्वर की उपासना करते हैं, और सोमवार को जब उनका बच्चा बीमार हो जाता है, तो वे किसी जादू-टोने वाले के पास चले जाते हैं। और यही बात है जो मुझे रात में जागे रखती है।”[2] उन्होंने देखा कि झूठे धर्मों की प्रथाएँ बहुत-सी अफ्रीकी कलीसियाओं में सामान्य सी लगती हैं। यह समस्या संसार भर की कलीसियाओं में विभिन्न रूपों में पाई जाती है।
► आपके देश में कौन-कौन से झूठे विश्वास हैं जो मसीहियों को प्रभावित करते हैं?
सेवकाई की टीम का विस्तार करने के लिए
एक खेल की टीम में ऐसे खिलाड़ियों के लिए एक बेंच होती है, जो हमेशा खेल में नहीं खेलते हैं। वे प्रमुख खिलाड़ियों की तुलना में जवान और कम अनुभवी हो सकते हैं, परन्तु वे प्रशिक्षण ले रहे होते हैं। उनमें से कुछ के भीतर ऐसी विशेष क्षमताएँ होती हैं, जिनकी निश्चित समय पर आवश्यकता पड़ती है।
एक स्वस्थ, बढ़ती हुए कलीसिया में एक ऐसी ही “बेंच” होना चाहिए। यह सोचना गलत है कि अगुवाई के पद भरे जाने के कारण टीम पूरी हो गई है। एक सेवकाई अपनी पहुँच सीमा तक पहुँच जाती है और तब तक आगे नहीं बढ़ती जब तक कि नए रूपों में सेवकाई शुरू करने में सहायता करने के लिए अगुवे न हों।
एक स्वस्थ कलीसिया के पास “बेंच” पर ऐसे लोग होने चाहिए जो विकासित हो रहे हैं और अभ्यास करने वाले हों। इसके लिए स्थानीय प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसलिए, सेवकाई प्रशिक्षण केवल उन लोगों के लिए नहीं है, जो सेवकाई के पदों पर हैं।
पास्टर का काम स्थानीय प्रशिक्षण देना है। पास्टर स्वयं सारा प्रशिक्षण नहीं दे पाएगा, परन्तु उसे इसकी व्यवस्था करनी चाहिए और इसे बढ़ावा देना चाहिए। उसे ऐसे लोगों की टीम की आवश्यकता पड़ती है, जो विभिन्न भूमिकाओं में काम करते हों।

उसने कुछ को प्रेरित नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कुछ को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कुछ को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया, जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाएँ और सेवा का काम किया जाए और मसीह की देह उन्नति पाए, जब तक कि हम सब के सब विश्वास और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएँ, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएँ और मसीह के पूरे डील–डौल तक न बढ़ जाएँ। ताकि हम आगे को बालक न रहें जो मनुष्यों की ठग–विद्या और चतुराई से, उन के भ्रम की युक्तियों के और उपदेश के हर एक झोंके से उछाले और इधर–उधर घुमाए जाते हों। वरन् प्रेम में सच्चाई से चलते हुए सब बातों में उसमें जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते जाएँ (इफिसियों 4:11-15)।
परमेश्वर स्थानीय कलीसिया के लोगों को कलीसिया के मिशन को पूरा करने के लिए आवश्यक वरदान और क्षमताएँ प्रदान करता है। कलीसिया को लोगों को उद्देश्यपूर्ण ढंग से विकसित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
स्वदेशी कलीसिया को मजबूत बनाने के लिए
एक स्वदेशी कलीसिया की अगुवाई, सहयोग, और स्वामित्व स्थानीय लोगों के हाथों में होता है। यह विदेशी सहयोग या दिशानिर्देशों पर निर्भर नहीं है। कलीसियाओं के स्वास्थ्य और बढ़ोतरी के लिए स्थानीय लोगों का बल महत्वपूर्ण है।
एक स्वदेशी कलीसिया अपनी संस्कृति से परिचित होती है। यह कोई विदेशी कलीसिया नहीं है।
एक स्वस्थ स्वदेशी कलीसिया के कई लाभ होते हैं:
1. यह अपनी संस्कृति में प्रभावी रूप से प्रचार करती और शिष्यता देती है।
2. मण्डली परिपक्व होती चली जाती है और विदेशी निर्भरता के बिना मसीह की देह के रूप में कार्य करती है।
3. अगुवे अपनी पूरी क्षमता को विकसित कर लेते हैं।
4. स्थानीय प्रतिभागी सेवकाई को सहयोग और जवाबदेही उपलब्ध करवाते हैं।
कुछ स्वदेशी कलीसियाएँ स्वस्थ नहीं होती हैं, क्योंकि उनमें शिक्षा सम्बन्धी स्थिरता और मसीही जीवन के बाइबल मानकों का अभाव रहता है। वे अपने समुदायों को एक शक्तिशाली, सुसंगत गवाही से प्रभावित करने में असफल रहती हैं। वे उन अगुवों के भरमावे में आने के जोखिम में होती हैं, जिनमें प्रतिभा तो होती है, परन्तु उनमें चरित्र की कमी होती है। उनके पास अगुवों के विकास के लिए एक कार्यक्रम की कमी होती है। उन्हें स्थानीय सेवकाई प्रशिक्षण के लिए एक कार्यक्रम की आवश्यकता है।
कई बार किसी कलीसिया को विदेशी मिशनरियों द्वारा इस लक्ष्य के साथ शुरू किया जाता है कि वह कलीसिया अन्त में स्वदेशी बन जाएगी। प्रगति को मापने के लिए स्थानीय सहयोग में वृद्धि और स्थानीय अगुवों की बढ़ती जिम्मेदारी शामिल है।
उन स्थानीय अगुवों के विकास के लिए स्थानीय प्रशिक्षण आवश्यक है, जो शिक्षा के विषय में सिखाते हैं, व्यावहारिक जीवन के लिए विश्वास को अपनाते हैं, और अच्छी सेवकाई शैलियों और रणनीतियों का विकास करते हैं।
कलीसियों की स्थापना के लिए
यह दुःख की बात है कि बहुत सी कलीसियाएँ अन्य समुदायों तक सुसमाचार भेजे बिना वर्षों तक कार्य करती रहती हैं। कलीसियाओं को प्रचारकों के समूहों को प्रशिक्षित करना चाहिए और उन क्षेत्रों में भेजना चाहिए जहाँ कलीसियाएँ नहीं हैं। ऐसे समूहों का लक्ष्य मन फिराने वाले लोगों का एक नया समूह बनाना होना चाहिए जो बाद में एक कलीसिया बन जाते हैं।
कुछ प्रचारकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए जिससे वे मन फिराने वाले लोगों के समूहों की कलीसिया बनने में सहायता कर सकें। उन्हें नए विश्वासियों को मसीही जीवन जीने का तरीका सिखाकर शिष्य बनाने के योग्य करना चाहिए। उन्हें मन फिराने वाले लोगों को सुसमाचार प्रचार करने और सेवकाई की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रशिक्षित करने योग्य होना चाहिए।
अधिकाँश नई कलीसियाओं की अगुवाई एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा की जाएगी, न कि किसी ऐसे पास्टर द्वारा जो उस समुदाय में रहने के लिए कहीं और से आया है। शैक्षणिक प्रशिक्षण वाले अधिकाँश पास्टर किसी नई कलीसिया में पास्टर बनने या छोटे शहर में सेवा करने के इच्छुक नहीं होते हैं। हमें उस स्थानीय विश्वासी को सेवकाई का प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए जिसे परमेश्वर ने कलीसिया की अगुवाई करने के लिए बुलाया है।
मिशनरियों को तैयार करने के लिए
मिशनरी वह व्यक्ति होता है, जिसे कलीसिया द्वारा सुसमाचार के प्रभाव को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कहीं भेजा जाता है। शब्द मिशनरी विशेष रूप से एक ऐसे व्यक्ति के लिए उपयोग किया जाता है, जो दूसरे देश और/या अन्य संस्कृति में जाता है, परन्तु कभी-कभी यह उस व्यक्ति को भी दर्शाता है, जो अपने ही देश के किसी दूसरे समुदाय में जाता है।
संसार के कुछ क्षेत्रों में तेजी से सुसमाचार अधिकाँश उन मिशनरियों के द्वारा फैल रहा है, जो अपने देश के दूसरे क्षेत्र में जाते हैं। प्रशिक्षण उनकी प्रभावशीलता और शिक्षा सम्बन्धी स्थिरता को बढ़ा देगा।
10/40 की खिड़की भूमध्य रेखा के 10 डिग्री दक्षिण से 40 डिग्री उत्तर का एक क्षेत्र है, जो उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी एशिया में फैला हुआ है और इसमें चीन और भारत के देश शामिल हैं। 10/40 खिड़की में संसार की 2/3 आबादी रहती है। 10/40 खिड़की में रहने वाले 80% से अधिक लोगों तक सुसमाचार नहीं पहुँचा है।
संसार के कुछ देशों में काफी हद तक सुसमाचार नहीं पहुँचा है, हालाँकि उनके बड़े शहरों में कई सालों से कलीसियाएँ मौजूद हैं। एक व्यक्ति एक कलीसिया में कई वर्षों तक सेवा कर सकता है, परन्तु फिर भी हो सकता है कि वह यह न जानता हो कि किसी नए स्थान पर सेवकाई कैसे शुरू की जाती है। वह केवल इतना ही जानता हो कि कलीसिया की इमारत में विश्वासियों के समूह से कैसे बात करनी है। कलीसिया को मिशनरियों को सुसमाचार के संदेश और विश्वासियों के स्थानीय परिवार बनाने के लक्ष्य के साथ जाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।
► जिन कलीसियाओं को आप जानते हैं, उनके संदर्भ में सेवकाई प्रशिक्षण के लिए ऊपर दिए गए कारणों में से कौन-से कारण सबसे अधिक आवश्यक लगते हैं? क्यों?
[1]David Livermore. "American or American't: A Critical Analysis of Western Training to the World." 
Evangelical Missions Quarterly 40, no. 4 (Oct 2004): 456.
 
[2]Bryierley, Justin. “Richmond Wandera: Theological and spiritual revival in Africa”. 
Unbelievable?. Podcast audio, March 21, 2023. https://podcasts.apple.com/us/podcast/unbelievable/id267142101?i=1000605211864