(1) यदि संभव हो तो साप्ताहिक मिलने के लिए समूह का समय निर्धारित करें। कुछ लोगों को बच्चे की देखभाल की व्यवस्था करने में मदद की आवश्यकता हो सकती है।
(2) बैठकों का प्रारूप ऐसा हो (1) अध्ययन का समय हो, फिर (2) प्रार्थना के लिए व्यक्तिगत आवश्यकताओं को साझा करना हो, फिर (3) प्रार्थना करना हो।
यदि समूह का प्राथमिक उद्देश्य अध्ययन है तो अध्ययन का समय लंबा हो सकता है और अन्य भाग छोटे हो सकते है; लेकिन तीन हिस्सों को अभी भी शामिल किया जाना चाहिए। यदि समूह का उद्देश्य आत्मिक जवाबदेही है तो अध्ययन का समय कम हो सकता है, लेकिन उनके पास कुछ सामग्री होनी चाहिए जो वे अध्ययन कर रहे हैं।
यदि किसी समूह के पास व्यक्तिगत बातें साझा और विचार करने को है, लेकिन अध्ययन के लिए कोई पाठ सामग्री नहीं है तो यह अव्यवस्थित हो सकता है। इसमें कुछ सदस्यों के व्यक्तित्व का दबदबा रहेगा। पाठ सामग्री उन सभी को उनके दिमाग से परे सच्चाई पर प्रतिउत्तर देने के लिए तैयार करती है।
(3) समय पर बैठकों को शुरू करना और समाप्त करना।
यदि आप देर से शुरू करते है और समाप्त करते है तो जो लोग अपने स्वयं के समय को महत्व देते है, वे देर से आने लगेंगे या कुछ बैठकों को छोड़ देंगे।
(4) समूह के समाप्त होने की तारीख निर्धारित करें।
सदस्यों को यह जानने की आवश्यकता होती है कि उनकी प्रतिबद्धता कितने समय के लिए है। आम तौर पर, नए सदस्यों को कुछ बैठकों के बाद समूह में तब तक शामिल होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि समूह नए विश्वासियों के लिए पाठों को दोहरा न रहा हो। यदि समूह एक पाठ श्रृंखला का अध्ययन कर रहा है, तो पाठों की संख्या उनके द्वारा मिलने वाले सप्ताहों की संख्या निर्धारित कर सकती है। यदि वे आत्मिक जवाबदेही के लिए मिल रहे हैं तो वे छह महीने की अवधि निर्धारित कर सकते हैं। अंत में, वे फिर से इसे व्यवस्थित कर सकते हैं। उस समय कुछ सदस्य छोड़ सकते है, और समूह विचार कर सकता है कि नए सदस्यों को शामिल होने की अनुमति दी जाए या नहीं।
(5) अध्ययन करते समय, स्वयं के लिए ज्ञान के बजाय जीवन-बदलते उद्देश्य पर जोर दें।
एक सदस्य महसूस करेगा कि समूह सार्थक है यदि वह अध्ययन से व्यक्तिगत, खाश बातों को लागू करने योग्य पाता है।
(6) प्रतिबद्धताओं का पालन करें।
अगर किसी ने एक समस्या साझा की है तो सहमति दिखाएं कि वह एक निश्चित कदम उठाए, और अगली बैठक में पूछें कि क्या उसने वह किया जो उसने कहा था कि वह करेगा।
(7) अगुए को आत्मिक मार्गदर्शन देने के लिए किसी भी सदस्य के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए उपलब्ध होना चाहिए।
अन्य सदस्य भी प्रोत्साहन के लिए अन्य समय पर एक साथ मिल सकते है।
(8) बैठक के लिए एक अच्छे स्थान को चुने।
यह घर जैसे माहौल के साथ एक अनौपचारिक बैठक का स्थान होना चाहिए। बैठने का तरीका जितना संभव हो उतना गोलाकार होनी चाहिए, ताकि प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्य के चेहरे को देख सकें। यह भागीदारी को प्रोत्साहित करेगा। ऐसी जगह पर बैठें, जहां कोई बाधा या गड़बड़ी नहीं होगी।
(9) अच्छा सुनने की आदतों का अभ्यास करें।
अच्छे सुनने के लक्षण हैं आँख से संपर्क साधना, एकाग्र अभिव्यक्ति, विकर्षणों को नज़रअंदाज़ करना, और वक्ता के हास्य या अन्य भावनाओं के प्रति प्रतिक्रिया।
(10) सुनिश्चित करें कि कोई भी सदस्य हमेशा चुप न रहे।
उस सदस्य को प्रश्न निर्देशित करें जो ज्यादा नहीं बोलता ("आप इस बारे में क्या सोचते हैं, नरेन्द्र?")।
(11) किसी सदस्य पर कुछ व्यक्तिगत साझा करने के लिए दबाव न डालें।
इसके बजाय, ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करें जहां वह बेझिझक बात कर सके। किसी सदस्य को आँख मिला कर और उसके द्वारा कही गई किसी बात की प्रशंसा करके उसका आत्मविश्वास विकसित करें।
(12) उन सवालों को पूछने की कोशिश करें जो वे अपने आत्मविश्वास का निर्माण करने के लिए कर सकते है।
यदि कोई गलत उत्तर देता है, तो आलोचना करने से पहले उत्तर के बारे में कुछ अच्छा बताने की कोशिश करें।
(13) हर टिप्पणी की आलोचना करने से पहले उसकी किसी न किसी तरह से पुष्टि करने की कोशिश करें।
(14) यदि किसी के पास बहुत अधिक बात करने और सभी सवालों के जवाब देने की प्रवृत्ति है तो उसे सीमित करने का तरीका खोजें।
एक तरीका यह है कि विशिष्ट सदस्यों के लिए प्रश्नों को निर्देशित करना। या आप पूछ सकते है, "आप बाकि लोग इसके बारे में क्या सोचते है?" चर्चा में, आप कह सकते है, "आइए किसी ऐसे व्यक्ति से सुनें जिसने अभी तक इस बारे में बात नहीं की है।"
यदि कोई सदस्य अभी भी बहुत अधिक बातचीत करता है तो अगुआ सभा के बाहर उससे बात कर सकता है। वह कुछ इस तरह कह सकता है: " नरेन्द्र, आप एक त्वरित विचारक हैं और चर्चाओं में जल्दी प्रतिक्रिया देने में सक्षम हैं, लेकिन मुझे चिंता है कि अगर हम सब कुछ जल्दी से जवाब देंगे तो अन्य भाग नहीं लेंगे। क्या आप मुझे सभी को शामिल करने में मदद कर सकते है? "
(15) समूह की उपेक्षा करते हुए दो या तीन सदस्यों को अपनी चर्चा न करने दें।
यदि कोई किसी बात को लेकर लंबे समय तक बहस करना चाहता है तो उसे बताएं कि चर्चा को बैठक से बाहर बाद में समाप्त कर लें।
(16) किसी को भी दूसरों को बाधित करने की अनुमति न दें।
अपना हाथ उठाएं, मुख्य रूप से टोकनेवाला को रोकें, और पहले वक्ता को खत्म करने की अनुमति दे। अन्यथा, एक चर्चा हमेशा कम तमीजवाले सदस्यों द्वारा हावी होगी। जो लोग कम कम मुखर है वे निराश महसूस करेंगे कि वे अपने वाक्य समाप्त नहीं कर सकते है।
(17) शिकायतें सुनें।
कोई भी शिकायत एक समस्या दिखा सकती है जिसे ठीक किया जा सकता है। असंतोष के संकेतों को नजरअंदाज न करें। यदि कोई व्यक्ति समूह की सभा से असंतुष्ट है तो हो सकता है कि वह उद्देश्यों को नहीं समझा है, या उसके पास एक जायज़ शिकायत हो सकती है।
(18) यदि कोई सदस्य लगातार शत्रुतापूर्ण, विघटनकारी, तर्कपूर्ण या ऊब गया है, तो हो सकता है कि वह समूह के उद्देश्यों को स्वीकार ना करे।
हो सकता है कि समूह वह ना हो जिसकी उसने अपेक्षा की थी। समूह के उद्देश्य को बताने के लिए निजी तौर पर उससे बात करें।
(19) अगुए को हर समस्या का उत्तर जानने की जरूरत नहीं है।
उसकी भूमिका हर बात का उत्तर पाने की नहीं बल्कि प्रार्थना में बोझ उठाने के लिए समूह का नेतृत्व करने की है।
(20) समय सारिणी मे रुकावट के साथ लचीले और धैर्यवान रहें।
याद रखें कि हमारे जीवन की घटनाएँ हमारे लिए परमेश्वर के विकास का हिस्सा हैं। समस्या एक अवसर है।
(21) यदि कोई सदस्य अक्सर अपनी जरूरतों को साझा करने के लिए पूरी सभा का समय लेता है तो उसे किसी अन्य समय में परामर्श देने की पेशकश करें। 
नहीं तो बाकी सदस्यों को लगेगा कि उनसे सभा को चुराया जा रहा है। समूह को अपना उद्देश्य न खोने दें, जब तक कि सदस्य एक साथ सहमत न हों कि उद्देश्य को बदलना चाहिए।
(22) चर्चाओं को विध्वंसक बनने की अनुमति न दें।
समूह को स्थानीय कलीसिया और अन्य अगुओं की आलोचना करने का मंच न बनने दें।
(23) याद रखें कि समूह की प्रभावशीलता परमेश्वर की शक्ति पर निर्भर करती है जो इसके माध्यम से काम कर रहे है।
समूह केवल एक वचन आधारित संरचना है जिसका उपयोग परमेश्वर करता है।