बाइबल आधारित सुसमाचार का प्रचार और शिष्‍यत्‍व
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Lesson 1: महान आज्ञा को स्वीकार करना

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by Stephen Gibson


परिचय

► एक छात्र को समूह के लिए मत्ती 28:18-20 को पढ़ना हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि यह आज्ञा सिर्फ प्रेरितों के लिए थी।

क्या यह आदेश केवल उन लोगों के लिए था जिन्होंने इसे उस दिन सुना था? अपना उत्तर बताएं।

विलियम कैरी का जीवन काल 1761-1834 तक का था। वह इंग्लैंड के रहने वाले थे। वह एक जूता बनानेवाले थे, जिन्होंने सुसमाचार फैलाने की तीव्र इच्छा महसूस की। उनकी कलीसिया विदेशी सेवकाई के काम में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखती थी। उनका मानना था कि परमेश्वर ने पहले ही तय कर रखा था कि वह किसे बचाएंगे, और वह मानव सहायता पर निर्भर नहीं है।

पासवानों के एक सम्मेलन में, केरी ने विचार-विमर्श के लिए एक विषय का सुझाव दिया: उन्होंने पूछा कि जैसे यीशु ने महान आज्ञा के साथ-साथ संसार के अंत तक कलीसिया के साथ रहने का वादा किया, क्या कलीसिया का भी काम संसार के अंत तक उस महान आज्ञा को मानना नहीं है। सम्मेलन के अगुए ने कहा, "बैठ जाओ, जवान। आप एक उत्साही [कट्टरपंथी] हैं। यदि परमेश्वर बुतपरस्त को परिवर्तित करना चाहते हैं, तो वह आपकी या मेरी मदद के बिना करेंगे।“

हम जानते हैं कि कलीसिया को संसार के अंत तक निर्देशों को मानने की आज्ञा दी गई है। यीशु ने उन लोगों के साथ युगों के अंत तक रहने का वादा किया जो सुसमाचार की ज़िम्मेदारी को उठाते हैं, जो दर्शाता है कि कलीसिया को दी गयी ज़िम्मेदारी तमाम पीढ़ियों तक की है। प्रेरित अपने जीवन काल के दौरान कार्य पूरा नहीं कर सके, लेकिन यीशु ने कहा कि सुसमाचार का प्रचार प्रत्येक राष्ट्र में किया जायेगा (मत्ती 24:14)।

इसलिए सुसमाचार के प्रचार की जिम्मेदारी कलीसिया की प्रत्येक पीढ़ी को मीरास में मिली है।

मत्ती 28:18-20 के विवरण पर फिर से गौर कीजिए। विशेष रूप से आज्ञा क्या है?

यीशु की विशिष्ट आज्ञा थी कि कलीसिया हर जगह जाए और उसके लिए शिष्य बनाए।

आज्ञा में सुसमाचार का प्रचार करना शामिल है क्योंकि एक व्यक्ति तब तक शिष्य नहीं हो सकता जब तक कि वह परिवर्तित न हो।

आज्ञा का अर्थ है कि कलीसिया पुरे उत्साह के साथ सुसमाचार और शिष्यत्व को अपनी प्राथमिकताएं बनाये; अन्यथा, ये उसके होने के कारण को पूरा नहीं कर रहा है।

वाक्यांश "सम्पूर्ण विश्व" (हर देश का मतलब हर जातीय समूह) से पता चलता है कि विदेशी सेवकाई की आज्ञा है, क्योंकि जातीय समूहों के पास तब तक सुसमाचार नहीं पहुँचता है जब तक उन्हें बताया नहीं जाता। किसी भी श्रेणी के लोगों को छोड़ा नहीं जाना चाहिए।

[1]आदेश केवल सुसमाचार प्रचार करने के लिए नहीं है। शिक्षण की प्रक्रिया आवश्यक है क्योंकि हमें परिवर्तित लोगों को जो कुछ भी यीशु ने आज्ञा दी थी, उसे सिखाना है।

एक शिक्षक व्यक्तिगत रूप से मसीह की आज्ञाओं को मानने के लिए पूर्ण रूप प्रतिबद्ध होना चाहिए क्योंकि उसे एक अच्छा उदाहरण होने की आवश्यक्ता है, जो यह दर्शाए कि मसीह की आज्ञाकारिता का जीवन कैसे जीना है।

विश्वासी भी मसीह की आज्ञाओं को मानने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए क्योंकि मसीह की आज्ञा का पालन किये बिना मसीह की आज्ञाओं को सीखना पर्याप्त नहीं है। यदि वह जो सीख रहा है उसका पालन नहीं करता है, तो वह शिष्यत्व के कार्य का विरोध कर रहा है। शिष्यत्व की प्रक्रिया केवल शैक्षिक नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण है।


[1]

मैं पहले से कहीं ज्यादा आश्वस्त हूं कि अगर हम अपने गुरु और अपने पहले शिष्यों को दिए गए आश्वासन को अपने मार्गदर्शक के रूप में पूरी तरह से लेना चाहते हैं, तो हम उसे हमारे समय के अनुकूल ले सकते हैं, जैसे वे मूल रूप में दिए गए थे।

(जे. हडसन टेलर, "कॉल टू सर्विस")।